देशी हथियारों की गुणवत्ता
हम एमके-3 जैसा रॉकेट बना सकते हैं, जिसका वजन पूरी तरह से भरे पांच बोइंग विमान यानी 200 हाथियों के बराबर हो, जो 4000 किलोग्राम तक भारी संचार-उपग्रह को पलक झपकते अंतरिक्ष में नियत स्थान पर स्थापित कर दे. अभी इसी महीने हमारे इंजीनियरों ने यह करिश्मा कर दिखाया. और, जहां तक प्रौद्योगिकी के ऐसे […]
हम एमके-3 जैसा रॉकेट बना सकते हैं, जिसका वजन पूरी तरह से भरे पांच बोइंग विमान यानी 200 हाथियों के बराबर हो, जो 4000 किलोग्राम तक भारी संचार-उपग्रह को पलक झपकते अंतरिक्ष में नियत स्थान पर स्थापित कर दे. अभी इसी महीने हमारे इंजीनियरों ने यह करिश्मा कर दिखाया. और, जहां तक प्रौद्योगिकी के ऐसे करिश्मे कमखर्ची से करने का सवाल है, हमारी देशी प्रतिभाएं वह मंगलयान भी बना सकती हैं, जो प्रति किलोमीटर ऑटो के किराये से भी कम में हजारों किलोमीटर दूर अंतरिक्ष के अपने गंतव्य पर जा पहुंचे.
लेकिन, एक तथ्य यह भी है कि हम अपनी फौज की जरूरतों के लायक कायदे का एक राइफल तक नहीं बना सकते हैं. एके-47 तथा इनसास (इंडियन स्मॉल आर्म्स सिस्टम्स) रायफल से ज्यादा बेहतर और कारगर स्वदेशी हथियार बना पाने की हमारी कोशिशें लगातार नाकाम हो रही हैं. सेना ने सरकारी आर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड की बनायी स्वदेशी असॉल्ट रायफलों को लौटा दिया है. ऐसा पिछले साल भी हुआ था. तब स्वदेशी एक्जकैलिबर रायफल को अपने मानकों पर खरा न पाकर सेना ने इस्तेमाल करने से मना कर दिया था.
कोई चीज एक बार हो तो भूल कहलाती है, पर बार-बार हो तो अक्षमता का सूचक बन जाती है. आर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड के कामकाज पर पहले भी सवालिया निशान लगे हैं. दो साल पहले सीएजी की एक रिपोर्ट के हवाले से खबर आयी थी कि सेना के पास इतने ही आयुध बचे हैं कि युद्ध की स्थिति में केवल 10 दिनों तक चल सकें. सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में सैन्य साजो-सामान की कमी के लिए बोर्ड को दोषी माना था. यह बोर्ड सेना की जरूरतों का सही आकलन ही नहीं करती है और इसी कारण वह सरकार से जो खर्च सैन्य सामग्री के लिए मांगती है, वह हमेशा सेना की अपेक्षाओं से कम होता है.
जाहिर है, सेना के मानकों पर खरा उतरनेवाला स्वदेशी रायफल न बना पाने की बड़ी वजह प्रौद्योगिकी अक्षमता नहीं, बल्कि नौकरशाही की खास बनावट में खोजी जानी चाहिए. बात यहीं समाप्त नहीं होती है कि सेना ने स्वदेशी रायफल लौटा दिये हैं. आगे जो होगा, वह भी बहुत स्पष्ट है. भारतीय फौज को फिलहाल तीन लाख अत्याधुनिक रायफलों की दरकार है और इसकी पूर्ति को अनंत काल के लिए नहीं टाला जा सकता है. इसके लिए हमें बाहर की कंपनियों की तरफ देखना होगा. संक्षेप में कहें, तो रक्षा उपकरणों के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने का हमारा सपना अभी दूर है. अभी अगले कुछ सालों तक हम हथियारों के सबसे बड़े खरीदार देशों में शामिल रहेंगे.