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अमेरिका-रूस तनाव : शीत युद्ध का नया दौर शुरू!

अमेरिकी सेना द्वारा एक सीरियाई लड़ाकू विमान को गिताये जाने के बाद रूस ने कह दिया है कि वह सीरिया के आकाश में उड़नेवाले किसी चीज को दुश्मन मानकर हमला कर देगा. रूस और ईरान सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद का साथ दे रहे हैं, तो अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश विद्रोहियों का साथ […]

अमेरिकी सेना द्वारा एक सीरियाई लड़ाकू विमान को गिताये जाने के बाद रूस ने कह दिया है कि वह सीरिया के आकाश में उड़नेवाले किसी चीज को दुश्मन मानकर हमला कर देगा. रूस और ईरान सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद का साथ दे रहे हैं, तो अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश विद्रोहियों का साथ दे रहे हैं. अमेरिकी सीनेट में रूस पर प्रतिबंध बढ़ाने का प्रस्ताव पारित होना तथा अमेरिकी राष्ट्रपति का ईरान-विरोधी तेवर भी इस तनाव को तेज कर रहे हैं. कतर पर खाड़ी देशों का प्रतिबंध भी एक कारक बन रहा है. यूरोप ने नये प्रतिबंधों पर चिंता जतायी है, तो ऑस्ट्रेलिया ने सीरिया में अपनी सैन्य गतिविधियों को रोक दिया है. अमेरिका और रूस में तनातनी अगर बढ़ती है, तो सीरिया समेत अरब में मौजूदा हालात और खराब हो सकते हैं. इस मुद्दे के विविध पहलुओं पर आधारित संडे-इश्यू की प्रस्तुति…

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका को यह चेतावनी दी है कि यदि उनकी वायुसेना के किसी विमान ने सीरियाई आकाश में अतिक्रमण किया, तो उसे शत्रु समान समझ कर निशाना बनाने में रूसी चूकेंगे नहीं. इस घोषणा ने मध्यपूर्व के मौजूदा तनाव को चिंताजनक रूप से बढ़ा दिया है. हालांकि, कुछ विश्लेषकों का यह मानना है कि यह महज नूरा कुश्ती है जिससे रणक्षेत्र में कोई फर्क पड़ने वाला नहीं, पर हमारी समझ में यह नादानी है. भले ही निकट भविष्य में अमेरिका अौर रूस के बीच सीधी सैनिक मुठभेड़ न हो, इससे उभयपक्षीय रिश्ते अौर उलझेंगे तथा दुखद गृह युद्ध में युद्ध विराम की बची खुची संभावना भी नष्ट हो जायेगी.

यहां दो बातों को रेखांकित करने की जरूरत है. अपने चुनाव प्रचार के दौरान कई बार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह कहा था कि पुतिन जैसे ताकतवर प्रतिपक्षी के साथ संवाद अौर सहकार उन जैसे ताकतवर नेता के लिए सहज होगा. पर तब से अब तक बहुत सारा पानी-अौर खून- जाने कहां-कहां बह चुका है. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रूसी खुफिया संगठनों की सेंधमारी का जो पर्दाफाश हुआ है, उससे ट्रंप की स्थिति अपने देश में डांवाडोल है. उनके साथ जुड़े अनेक सहयोगी गैरकानूनी तरीके से रूसियों से संपर्क साधने अौर रूसी सरकार से धन ग्रहण करने के आरोप में कटघरे में खड़े हैं. इस प्रकरण की जांच सीनेट की समिति भी कर रही है अौर न्याय विभाग भी. बहरहाल, इस समय ट्रंप यह नहीं दर्शा सकते हैं कि रूस की चुनौती का सामना करने में वह कमजोर पड़ रहे हैं. यूरोप में फ्रांस में मैक्रों अौर जर्मनी में एंगेला मरकेल के रहते उस महाद्वीप में भी उनके दिशा-निर्देशों को माननेवाले कम हो रहे हैं. ब्रिटेन कट्टरपंथी इस्लामी हमलों से लहूलुहान त्रिशंकु संसद में फंसा है. इस सब के बीच किसी को भी सीरिया के गृह युद्ध की चिंता नहीं है. कम-से-कम किसी की प्राथमिकता तो यह नहीं ही है.

दूसरी बात, मध्य पूर्व के गृह युद्धों से जुड़ी है. इराक में आइएसआइएस हार की कगार तक पहुंच चुका है. इसका यह अर्थ नहीं है कि वहां हालात जल्द ही सामान्य होंगे, परंतु यह निर्विवाद है कि मोसुल से उन्हें कमोबेश खदेड़ा जा चुका है अौर अपने पुराने तेवर अपनाना अब उनके लिए असंभव होगा. सीरिया की स्थिति बहुत अलग है. राष्ट्रपति बशर अल असद के खिलाफ न केवल आइएसआइएस के लड़ाके हैं, बल्कि उनकी सरकार से खिन्न बहुत सारे अन्य तत्व भी हैं जिनके हित-स्वार्थ आपस में बुरी तरह टकराते हैं. पुतिन अौर ईरान असद का साथ दे रहे हैं. अमेरिका असद को हटाने के लिए आमादा है, लेकिन इससे पहले वह आइएसआइएस का खात्मा कर देना चाहता है. वह क्षणभंगुर रणनीति के तहत पुतिन के साथ सहयोग करता रहा है. ईरान की मौजूदगी को अनदेखा करना अोबामा के शासनकाल वाले समझौते के साथ मुमकिन था, पर ट्रंप इसको खत्म करने का ऐलान कर चुके हैं. लेबनान तथा कुर्द पेशमर्गा मिलीशिया ने इस संकट को अौर भी जटिल बनाया है.

जहां तक रूस का प्रश्न है, पुतिन का यह सोचना तर्कसंगत है कि रूस की महाशक्तिवाली छवि को पुनः प्रतिष्ठित करने का इससे अच्छा मौका कुछ नहीं हो सकता है. अमेरिका यूक्रेन तथा क्रीमिया में रूस के नाजायज सैनिक हस्तक्षेप का प्रतिरोध करने में असमर्थ रहा था, इससे निश्चय ही रूस की दुस्साहसिकता बढ़ी है. मगर इस वक्त तनाव बढ़ाने के लिए पुतिन को दोष देना ठीक नहीं लगता. उत्तेजना इस कारण बढ़ी है कि अमेरिका ने सीरिया की वायुसेना के एक विमान को मार गिराया है. रूस बड़ी आसानी से दूर से मार करनेवाले प्रक्षेपास्त्रों से सीरिया के आकाश की रखवाली कर सकता है. यदि वह ऐसे हथियार असद की वायु सेना को सौंपता है, तो बिना रणक्षेत्र में उतरे अपने सामरिक हितों की रक्षा कर सकता है.

विडंबना यह है कि जिस असद की पीठ पर रूस अौर ईरान का हाथ है, वह एक ऐसे अलोकप्रिय सरकार के मुखिया हैं जिसका नियंत्रण अपनी जमीन के छठे हिस्से तक ही शेष रह गया है. यह झगड़ा शिया-सुन्नी विवाद के कारण भी उलझा है अौर तेल की राजनीति की वजह से भी. आनेवाले दिनों में कतर का घटनाक्रम और सऊदी अरब-अमेरिकी गठजोड़ का असर भी इस पर पड़ेगा. यह नूरा कुश्ती कभी भी घायल कर सकने वाली मारपीट में बदल सकती है. मेरी राय में पुतिन अौर रूस को ही धौंस-धमकी से सबसे अधिक फायदा हो सकता है.

पुष्पेश पंत

वरिष्ठ स्तंभकार

अमेरिका ने और गहरा दिया सीरिया गृहयुद्ध संकट

अमेरिका यह कहता रहा है कि वह सीरिया में आइएसआइएस को पराजित करने के लिए मौजूद है. लेकिन, लगभग हफ्ते भर से अमेरिका जिस तरह से कार्रवाई कर रहा है, उससे स्पष्ट है कि वह बसर-अल असद की सेना से सीधे लड़ रहा है. सीरियाई गृहयुद्ध में ट्रंप प्रशासन द्वारा अब तक का यह सीधा हस्ताक्षेप है.

गत रविवार को अमेरिकी सेना ने एक हमले में सीरियाई लड़ाकू विमान को मार गिराया. पिछला छह वर्षों से जारी इस युद्ध में पहली बार अमेरिकी सेना ने सीधे तौर पर सीरियाई सेना पर हमला किया है. पेंटागन के अनुसार उत्तरी सीरिया के शहर तबकाह में असद की सेनाएं आइएसआइएस विरोधी और अमेरिका समर्थित लड़ाकूओं पर हमले कर रही थीं. जब सीरियाई प्लेन ने संपर्क तोड़ने की कॉल को नजरअंदाज कर दिया, तो अमेरिकी एफ/ए-18इ सुपर हॉर्नेट ने एक पायलट समेत प्लेन को मार गिराया.

इस घटना के बाद सीरिया में अमेरिकी कार्रवाई नये सवाल खड़े करती है. पिछले एक महीने में चौथी बार अमेरिका ने असद समर्थित सेनाओं को निशाना बनाया है और युद्ध शुरू होने के बाद से पहली बार अमेरिका ने सीरियाई सैन्य विमान को मार गिराया है. हालांकि, इस कार्रवाई का उद्देश्य अमेरिकी सैनिकों का बचाना नहीं, बल्कि अमेरिका समर्थित लड़ाकूओं को सुरक्षा देना है.

इससे एक अलग प्रकार का अवांछित खतरा बढ़ रहा है, अमेरिका और रूसी लड़ाकू विमान एक-दूसरे को निशाना बना रहे हैं. इस वाकये के बाद मॉस्को ने घोषणा की है कि वह सीरिया के ऊपर से उड़नेवाले अमेरिका समर्थित एयरक्राफ्ट को निशाना बनायेगा. इससे अमेरिका से संपर्क कट रहा है, जोकि एक बुरी खबर है. सीरिया में सैन्य टकराव से बचने के लिए वाशिंगटन और मॉस्को अब तक एक-दूसरे के संपर्क में रहे हैं.

रविवार की घटना के बाद स्पष्ट हो गया है कि अमेरिका आइएसआइएस को हराने के अभियान ही नहीं, बल्कि असद सरकार और उनके विरोधियों के बीच जारी युद्ध में सीधे तौर पर शामिल हो रहा है. अमेरिकी रुख से यह असमंजस पैदा हो गया है कि सीरिया में ट्रंप की आखिर योजना क्या है.

सीरिया में अमेरिकी रणनीति में आ रहा बदलाव

मई माह में एक साक्षात्कार में डिफेंस सेक्रेटरी जेम्स मैटिस ने कहा था कि फिलहाल, अमेरिकी रणनीति आइएसआइएस के खिलाफ अभियान में तेजी लाने की है. उनके इस बयान के बावजूद अमेरिका की रणनीति असद पर ज्यादा केंद्रित होती प्रतीत हो रही है. लड़ाकू विमान पर हमले से पहले एक महीने के दौरान अमेरिका असद समर्थक लड़ाकूओं के साथ तीन बार जूझता दिखा है. तीनों ही मौकों पर अमेरिकी कमांडर असद और ईरान समर्थक लड़ाकूओं द्वारा अमेरिकी सैनिकों पर हमले की आशंका में चिंतित दिखे हैं. गत रविवार की घटना बिल्कुल अलग थी. सीरियाई विमान को मार गिराना सैकड़ों अमेरिकी सैनिकों की रक्षा करना नहीं है, बल्कि यह लड़ाकूओं को सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज यानी एसडीएफ से बचाने के लिए किया गया. एसडीएफ ने रक्का से आइएसआइएस के सफाये के लिए अमेरिका की मदद से अभियान छेड़ रखा है. रक्का इस आतंकी समूह की अघोषित राजधानी है.

असद की सेनाओं से टकराव, एयरक्राफ्ट को गिराने और अमेरिका की सहयोगी सेनाओं की मदद से युद्ध में अमेरिका का दबदबा बढ़ रहा है. इन सबसे यह स्पष्ट है कि अमेरिका एक ही देश में दो अलग-अलग युद्धों को लड़ रहा है. एक ओर असद और रूस से, तो साथ-साथ आइएसआइएस से भी. यही सबसे बड़ी समस्या भी है.

मध्य-पूर्व विशेषज्ञों इलन गोल्डबर्ग और निकोलस हेरस के अनुसार, जमीन पर अमेरिकी सेनाओं को आत्मरक्षा का पूरा अधिकार है, लेकिन यहां स्पष्ट नीति का न होना सबसे बड़ी समस्या है.

रूस की धमकी से लगातार खतरनाक स्थितियां पर पैदा हो रही हैं. विमान गिराने की कार्रवाई से हालात बिगड़ने की आशंका बढ़ गयी है. अगर अमेरिका असद और रूस से सीधे तौर पर बचता है, तो दुश्मनों को मौका मिल जायेगा. ऐसी स्थिति में तनाव का बढ़ना स्वाभाविक है. इसका मतलब साफ है कि सीरिया और रूसी सेनाओं के विरोधी रुख के पीछे अमेरिका जिम्मेवार होगा. रविवार को अमेरिकी कार्रवाई ने विवाद की जड़ें और गहरी कर दी है.

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