कोच्चि मेट्रो की ऐतिहासिक पहल
आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक प्रभात खबर मेट्रो की शुरूआत अब एक आम खबर हो गयी है. देश के कई राज्यों में मेट्रो दौड़ रही है. लेकिन, केरल के कोच्चि शहर की मेट्रो अपने आपमें सबसे जुदा है. हाल में वहां मेट्रो का उदघाटन हुआ और वहां से दो खबरें आयीं- एक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने […]
आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक
प्रभात खबर
मेट्रो की शुरूआत अब एक आम खबर हो गयी है. देश के कई राज्यों में मेट्रो दौड़ रही है. लेकिन, केरल के कोच्चि शहर की मेट्रो अपने आपमें सबसे जुदा है. हाल में वहां मेट्रो का उदघाटन हुआ और वहां से दो खबरें आयीं- एक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहां मेट्रो की शुरुआत की और दूसरा, 23 किन्नरों को मेट्रो में नौकरी दी गयी.
लेकिन, किन्नरों को नौकरी की खबर को मीडिया ने कोई खास तवज्जो नहीं दी. उसे एक सामान्य खबर की तरह ट्रीट किया गया, जबकि यह अपने आपमें अनूठी पहल है. अगर यह प्रयोग सफल रहा तो और स्थानों में भी किन्नरों को नौकरी पर रखा जा सकेगा. एक और महत्वपूर्ण बात यह कि उनके चयन के बाद कोच्चि मेट्रो ने यह भी स्पष्ट किया कि चयन प्रक्रिया में कोई ढील नहीं दी गयी. चयन आम प्रतियोगी की तरह लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के माध्यम से हुआ है. किन्नरों को जरूरी प्रशिक्षण देने के बाद उन्हें मौजूदा सभी 11 स्टेशनों पर तैनात किया जा रहा है और उन्हें टिकट काउंटर से लेकर रखरखाव तक विभिन्न विभागों में योग्यता के हिसाब से नौकरी दी गयी है.
केरल देश का पहला राज्य है, जहां किन्नरों को लेकर एक सरकारी नीति है. अन्य राज्यों में उनको लेकर कोई संवेदनशीलता नहीं है. उनके साथ होने वाले दुर्व्यवहार, अपमान और भेदभाव को रोकने के लिए सरकारों के पास कोई कारगर तरीका नहीं है. किन्नरों को मुख्यधारा में लाने की केरल सरकार की यह कोशिश सराहनीय है, जिसकी जितनी भी तारीफ की जाये, वह कम है. मेरा मानना है कि लैंगिक न्याय की दिशा में उठाया गया यह ऐतिहासिक कदम है.
इसके अलावा एक और सराहनीय प्रयास किया गया है कि कोच्चि मेट्रो रेल सेवा में करीब एक हजार महिलाओं को नौकरी दी गयी है. मुझे जानकर यह आश्चर्य है कि किन्नरों को नौकरी पर रखने वाली कोच्चि मेट्रो पहला सरकारी कॉपरेशन बन गया है. कोच्चि मेट्रो की अन्य कई खूबियां हो सकती हैं. जैसे, यह मेट्रोमैन के नाम से जाने जाने वाले श्रीधरन के मार्गदर्शन में तैयार हुई है. दूसरे यह तकनीक के मामले में अन्य मेट्रो से आगे है. लेकिन कोच्चि मेट्रो ने जिस मानवीय पहलू को छुआ है, वह बेमिसाल है.
कोच्चि मेट्रो स्टेशनों पर किन्नरों को रोजगार दिया गया है, इसकी चर्चा पहले से ही शुरू हो गयी थी और लोगों में इसको लेकर भारी उत्सुकता थी. जिन किन्नरों को मेट्रो में नौकरी दी गयी है, उनका एक वीडियो वायरल हो गया था, जिसमें वे जनता से अपील करते दिखाई देते हैं कि लोग जब भी उन्हें देखें, बस एक इंसान की तरह देखें.
हमारे समाज में किन्नरों को छक्का, हिजड़ा जैसे अपमानजनक नामों से संबोधित किया जाता है. यह एक ऐसा समाज है, जो हमेशा उपहास और मनोरंजन का पात्र रहा है, लोगों की गालियां भी खाता है और तालियां बजाता है.
अगर आप गौर करें तो पायेंगे तो अखबारों में भी इनको लेकर हमेशा नकारात्मक खबरें छपती हैं. इस चेहरे के पीछे एक इंसान भी है, इस मानवीय पहलू को हम सभी नजरअंदाज कर देते हैं. किन्नर आर्थिक और सामाजिक रूप से हाशिए पर हैं और इनके साथ इंसानों जैसा बर्ताव नहीं किया जाता. लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में उन्हें थर्ड जेंडर का दर्जा दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि शिक्षण संस्थानों में दाखिला लेते वक्त या नौकरी देते वक्त ट्रांसजेंडर्स की पहचान तीसरे लिंग के रूप में की जाये. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि किन्नरों के साथ शिक्षा या नौकरी के क्षेत्र में भेदभाव नहीं किया जा सकता. इस फैसले के साथ देश में पहली बार तीसरे लिंग को औपचारिक रूप से पहचान मिली. लेकिन, हालात में कुछ खास बदलाव नहीं हुआ है.
यह सच है कि अदालत के एक आदेश से रातोंरात किन्नरों के प्रति लोगों की सोच नहीं बदलने वाली. इसमें समय लगेगा.लेकिन, जहां भी किन्नरों को मौका मिला है, उन्होंने साबित किया है कि वे किसी से कम नहीं हैं. वर्ष 2002 में मध्यप्रदेश के सुहागपुर विधानसभा क्षेत्र से शबनम मौसी देश की पहली किन्नर विधायक बनीं थीं. लेकिन, सबसे प्रतिष्ठित ट्रांसजेंडर पश्चिम बंगाल की मानबी बंद्योपाध्याय हैं.
उन्होंने पीएचडी की उपाधि हासिल की और पश्चिम बंगाल के एक कॉलेज की प्रिंसिपल बनीं. लेकिन, लोगों ने उन्हें इस पद पर टिकने नहीं दिया. पद्मिनी प्रकाश दक्षिण भारत के एक टीवी चैनल में जानी मानी न्यूज एंकर हैं. मधु किन्नर छत्तीसगढ़ के रायगढ़ से निर्दलीय मेयर के चुनाव में उतरीं और विजय रहीं थीं. समाजसेवा से लेकर फैशन डिजाइन तक के क्षेत्र में कई ट्रांसजेंडर सफलतापूर्वक काम कर रहे हैं. हालांकि ऐसे लोगों की संख्या गिनी चुनी है. देखने में यह आया कि उनकी उपलब्धि से सम्मान तो मिला, लेकिन किन्नर होने के कारण तिरस्कार का भाव नहीं गया. कोच्चि मेट्रो में भी किन्नरों को नौकरी तो मिल गयी है, लेकिन उन्हें रहने के लिए किराये पर घर नहीं मिल रहा है.
बिहार सरकार ने भी इस समुदाय की समाजिक स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए किन्नर सांस्कृतिक महोत्सव का आयोजन कर सराहनीय पहल की है. इस महोत्सव में अलग-अलग क्षेत्रों में बेहतर काम करने वाले देश भर के किन्नर हिस्सा लेते हैं. एक दौर था जब लोग किन्नरों को आमंत्रित करते थे, वे सौभाग्य का प्रतीक माने जाते थे. अब तो वे बिन बुलाये मेहमान हैं. उनको दुत्कारा जाता है. समाज के उपहास ने उनके व्यवहार में कठोरता ला दी है और आक्रामक बना दिया है. उनके जन्म-मृत्यु से लेकर अंतिम संस्कार तक को लेकर समाज में भ्रांतियां हैं.
कई लोगों को लगता है कि किन्नर किसी बीमारी के कारण बनते हैं, कहीं उन्हें ‘दूसरा’ नाम से संबोधित किया जाता है, यानी जितने मुंह उतनी बातें. ऐसा अनुमान है कि देश में किन्नरों की संख्या करीब 10 लाख तक है. यह सही है कि कोच्चि मेट्रो ने एक ऐतिहासिक पहल की है और किन्नरों के लिए नौकरियों का नया रास्ता खुला है, उम्मीद की एक किरण दिखाई दी है. लेकिन, मुश्किल यह है कि समाज ने उन्हें अब भी स्वीकार नहीं किया है और सामान्य जीवन जीने का उनका सपना अब भी बेहद कठिन है.