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130 करोड़ उम्मीदों का राष्ट्रपति
भारतीय लोकतंत्र की यह भी एक खूबसूरती है कि 70 सालों बाद भी दलित की पहचान ‘दलित’ ही है. सत्ता पक्ष का सिर गर्व से ऊंचा है क्योंकि उनका राष्ट्रपति उम्मीदवार एक दलित है. वे कहते हैं जो ‘राम’ का विरोध करते हैं, वो दलित विरोधी हैं. माना ‘कोविंद’ राष्ट्रपति बन गये, तो क्या दलितों […]
भारतीय लोकतंत्र की यह भी एक खूबसूरती है कि 70 सालों बाद भी दलित की पहचान ‘दलित’ ही है. सत्ता पक्ष का सिर गर्व से ऊंचा है क्योंकि उनका राष्ट्रपति उम्मीदवार एक दलित है.
वे कहते हैं जो ‘राम’ का विरोध करते हैं, वो दलित विरोधी हैं. माना ‘कोविंद’ राष्ट्रपति बन गये, तो क्या दलितों की पहचान भी कुछ अलग हो जायेगी? वैसे विपक्ष ने भी मैदान में दलित उतारा है. क्या विपक्षी उम्मीदवार राष्ट्रपति नहीं बन सकते सिर्फ इसलिए कि सत्ता पक्ष के पास संख्या बल है? रामनाथ कोविंद और मीरा कुमार दोनों की छवि बेदाग है. अच्छा होता राष्ट्रपति उम्मीदवार की पहचान एक अच्छे इनसान के रूप में होती. वह 10 लाख वोटों से चुना गया राष्ट्रपति न होकर 130 करोड़ उम्मीदों का राष्ट्रपति होता!
एमके मिश्रा, रातू, रांची
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