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किदांबी की जीत

वैसे कहा तो सिर्फ क्रिकेट के लिए जाता है कि वह अनिश्चितताओं का खेल है, लेकिन जहां तक नतीजों से चौंकाने की बात है, यह बात किसी भी खेल पर लागू हो सकती है. बेशक अगर कोई टीम या खिलाड़ी कुछ दिनों से लगातार अच्छा प्रदर्शन करता आया है, तो एक अनुमान लगाने का आधार […]

वैसे कहा तो सिर्फ क्रिकेट के लिए जाता है कि वह अनिश्चितताओं का खेल है, लेकिन जहां तक नतीजों से चौंकाने की बात है, यह बात किसी भी खेल पर लागू हो सकती है. बेशक अगर कोई टीम या खिलाड़ी कुछ दिनों से लगातार अच्छा प्रदर्शन करता आया है, तो एक अनुमान लगाने का आधार रहता है कि मुकाबले में वह कैसा प्रदर्शन कर सकता है.
लेकिन, खेल के मैदान ने ऐसे आकलनों को कुछ अंतराल पर हमेशा चौंकाया है. दरअसल, खेल और जिंदगी इस मायने में बिल्कुल एक जैसे हैं, हालात पर आपका चाहे जितना नियंत्रण हो, लेकिन आजमाइश की घड़ी में आप सौ फीसदी निश्चितता के साथ नहीं कह सकते हैं कि नतीजा वही आयेगा, जो आपने सोचा है. इसकी वजह भी बड़ी जानी हुई है. आपका उठा हुआ कोई भी कदम, चाहे वह जिंदगी का हो या फिर खेल के मैदान का, बहुत सधा हुआ हो सकता है और उसे कामयाबी मिल सकती है, लेकिन हर बार संतुलन और परिस्थितयां अनुकूल नहीं होतीं. जीवन में निरंतरता का नियम है, तो अनिश्चितता का भी.
अनिश्चितता के इसी नियम ने ऑस्ट्रेलियाई ओपन सुपर सीरीज में अपने को दोहराया और भारत को बैडमिंटन का एक नया सुपर स्टार मिला. चले आ रहे ट्रैक रिकार्ड के आधार पर कयास धरे-के-धरे रह गये और बैडमिंटन की दुनिया के एक नवोदित सितारे ने विश्वविजेता चेन लोंग के अनुभव और कौशल को अपने दम-खम से मात दे दी. यह जीत चौंकाऊ है, क्योंकि किदांबी श्रीकांत छठी बार चेन लोंग के मुकाबले खड़े थे और इसके पहले चेन लोंगे के हाथों उन्होंने हर बार मुंह की खायी थी. पांच बार की हार को इस बार किदांबी ने एक सबक में बदला और ओलिंपिक के स्वर्ण पदक विजेता को सीधे सेटों में 22-20 और 21-16 से मात देकर उसकी विश्वविजयी चमक को फीका कर दिया.
ऑस्ट्रेलियाई ओपन सीरीज जीत कर किदांबी ने एक और कीर्तिमान की बराबरी की. एक खिलाड़ी का लगातार तीन सुपर सीरीज के फाइनल में पहुंचना कोई आये दिन की बात नहीं. साल 2015 में ऐसा करिश्मा बैंटमिंटन के मलेशियाई दिग्गज ली चोंग वेई ने किया था और अब यही हैट्रिक श्रीकांत ने लगायी है. इंडिया ओपन, चाइना ओपन और इंडोनेशियाई ओपन सीरीज के बाद श्रीकांत की यह चौथी खिताबी जीत है और उनके हुनर को देखते हुए यह सपना पाला जा सकता है कि पीवी संधू, सायना नेहवाल या फिर किदांबी श्रीकांत में से कोई ना कोई बैडमिंटन का ओलिंपिक स्वर्णपदक अबकी बार भारत को दिलायेगा.

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