गांठ पालना रोग!
प्रभात रंजन कथाकार जो सेफ नीधम की किताब ‘साइंस एंड सिविलाइजेशन इन चाइना’ पढ़ रहा था. इसमें चीन की गांठ कला के बारे में पढ़ कर चौंक गया. हजार साल से वहां की स्त्रियां किसी घटना को याद करने के लिए कपड़े में गांठ बांध लेती थीं. घटना छोटी तो गांठ छोटी, घटना बड़ी तो […]
प्रभात रंजन
कथाकार
जो सेफ नीधम की किताब ‘साइंस एंड सिविलाइजेशन इन चाइना’ पढ़ रहा था. इसमें चीन की गांठ कला के बारे में पढ़ कर चौंक गया. हजार साल से वहां की स्त्रियां किसी घटना को याद करने के लिए कपड़े में गांठ बांध लेती थीं. घटना छोटी तो गांठ छोटी, घटना बड़ी तो गांठ बड़ी. गांठ इसलिए, ताकि जब वे उसे देखें, तो उनको उस घटना की याद आ जाये. उन्होंने लिखा है कि यह चीन की प्राचीन परंपरा है और एक तरह से दुनिया को गांठ बांधने की कला से परिचय चीन के लोगों ने करवाया.
चीन की लोक कलाओं में गांठ बांधने की कला की भी बड़ी प्रतिष्ठा है. पश्चिमी देशों के पर्यटक महंगे दामों में वहां की गांठों को कलाकृति के रूप में खरीद कर ले जाते हैं. याद आया घर में जब कोई सामान खो जाता, तो मां साड़ी में गांठ बांध लेती थीं. जब खोयी चीज मिल जाती, तो गांठ को खोल कर राहत की सांस लेती थीं. उन्होंने अपनी नानीको ऐसा करते हुए देखा था. उनका ननिहाल नेपाल में है. मतलब वहां भी गांठ बांधने, गांठ खोलने की परंपरा थी. न जाने कब से.
याद आया, रहीम ने लिखा था- रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटखाए/ टूटे सो फिर न जुड़े, जुड़े गांठ पड़ जाए. गांठ, गांठ में अंतर होता है. एक बार प्रसिद्ध संस्कृतिविद् विद्यानिवास मिश्र ने कहा था- जानते हो, जो लोग कम पढ़े-लिखे होते हैं, उनके मन में बड़ी गांठें पड़ जाती हैं. इनसान अगर अपनी गांठों से मुक्त नहीं हो पाता, तो मन का रोगी बन जाता है.
जानते हो न शरीर में कोई गांठ बहुत दिन तक बनी रह जाये, तो कैंसर हो जाता है. सोच रहा हूं कि चीनी लोग मन से कितने मुक्त होते होंगे. परंपरा से पायी गांठ बांधने को उन्होंने कला का रूप देकर अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलायी. हमारी परंपरा में भी गांठ बांध कर खोल देना शामिल था. हम अपनी परंपरा को भूलते चले गये और बात-बात में गांठ बांधना सीख गये.
गांठ बांधना एक कला है, जबकि मन-ही-मन गांठ पालना रोग!
हिंदी में गांठ पर कई मुहावरे हैं- आंख का अंधा गांठ का पूरा. लेकिन सबसे अच्छा शब्द लगता है- गठबंधन. कभी यह शब्द विवाह के लिए प्रयोग किया जाता था. विवाह में वर-वधू के वस्त्रों को गांठ से बांध कर फेरे लगवाये जाते थे. गठबंधन का मतलब होता ऐसा रिश्ता जो कभी न टूटे.
गांठ बांधना मुहावरा भी शायद यहीं से निकला होगा, यानी कभी नहीं भूलना. लेकिन राजनीति ने गठबंधन शब्द का ऐसा हाल कर दिया है कि मत पूछिये. इधर हुआ नहीं कि उधर टूटने की तैयारी शुरू. शब्दों के अर्थ भले बदल जाते हैं, लेकिन गांठ वही है. क्या परंपरा भी एक गांठ है? जो कभी नहीं छूटता.