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कतर संकट और भारत

सुमित झा यूजीसी सेंटर फॉर साउथर्न एशिया स्टडीज, पांडिचेरी सेंट्रल यूनिवर्सिटी sumitjha83@gmail.com इस महीने के शुरुआत में कतर पर आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगा कर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, यमन, मिस्र, बहरीन आदि ने कतर के साथ राजनयिक संबंध तोड़ लिये. इन देशों ने अपने नागरिकों को कतर जाने से भी मना […]

सुमित झा

यूजीसी सेंटर फॉर साउथर्न एशिया स्टडीज,

पांडिचेरी सेंट्रल यूनिवर्सिटी

sumitjha83@gmail.com

इस महीने के शुरुआत में कतर पर आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगा कर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, यमन, मिस्र, बहरीन आदि ने कतर के साथ राजनयिक संबंध तोड़ लिये. इन देशों ने अपने नागरिकों को कतर जाने से भी मना कर दिया है और कतर के नागरिकों और राजदूतों को वापस भेज दिया गया है. वहीं, अरब देशों द्वारा लगाये गये आरोपों का खंडन करते हुए कतर ने मौजूदा तनाव को खत्म करने की इच्छा प्रकट की है.

हालांकि, 26 दिनों के बाद भी राजनयिक संकट खत्म होता दिख नहीं रहा हैं. इस विवाद को सुलझाने के लिए अरब देशों द्वारा कतर को दी गयी तेरह मांगों की सूची ने स्थिति को और भी गंभीर बना दिया है, क्योंकि कतर ने इन शर्तों को तर्कहीन बताते हुए मानने से इनकार कर दिया है.

वास्तव में, खाड़ी के इन देशों और कतर के बीच वर्तमान तनाव कोई नयी बात नहीं हैं, बल्कि यह सालों से चलता आ रहा है. सऊदी अरब सहित अन्य अरब देश आरोप लगाते रहे हैं कि कतर मुस्लिम ब्रदरहुड, इसलामिक स्टेट और ईरानी आतंकवादी संगठनों को मदद करता है. सऊदी अरब ने कतर पर ईरान को सऊदी अरब में आतंकवादी गतिविधियों में सहयोग कर देश तोड़ने का आरोप लगाया है. कतर पर यमन में भी आतंकवादी संगठनों को मदद करने का आरोप लगाया गया है.

इन देशों ने 2010 के अरब स्प्रिंग के दौरान मिस्र और ट्यूनीशिया के तानाशाह शासकों के पक्ष में खड़े होने पर कतर के इस निर्णय पर नाराजगी प्रगट की थी. अलजजीरा नेटवर्क के द्वारा प्रसारित इसलामिक कार्यक्रम भी अरब देशों और कतर के बीच टकराव का एक प्रमुख कारण रहा है.

कुल मिला कर, सऊदी अरब सहित अन्य खाड़ी के देशों को यह बात हमेशा से खटकती रही है कि कतर उनके प्रभाव क्षेत्र से बाहर निकल कर क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर स्वतंत्र रूप से निर्णय लेता है.

इन सब के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का सऊदी अरब की यात्रा पर जाना और वहां पर मुसलिम देशों को एकजुट होकर आतंकवाद से लड़ने की उनकी अपील से अरब देशों को कतर के पंख कतरने की योजना को पुरजोर बल मिला. यही कारण है कि जब पांच जून को यह खबर आयी कि शेख तमिन बिन हमद अल थानी ने ईरान के खिलाफ अमेरिका और खाड़ी के देशों का असहयोगात्मक रवैये का विरोध किया है और हमास, हिज्बुल्लाह तथा मुस्लिम ब्रदरहुड को केवल प्रतिरोधक आंदोलन बताया, तो इन देशों के लिए कतर को राजनयिक रूप से अलग-थलग करने का एक उपयुक्त अवसर मिल गया.

वर्तमान खाड़ी तनाव का कारण जो भी हो, इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि इस राजनयिक संकट का असर कतर पर साफ दिख रहा है. चूंकि, इन अरब देशों ने कतर के साथ सड़क, जल और वायु मार्ग बंद कर दिया है. कतर से दूसरे देशों की यात्रा बुरी तरह से प्रभावित हुई है.

ऐसी खबर है की कतर में भोजन सामग्री की बहुत किल्लत हो रही है, क्योंकि कतर का 40 प्रतिशत से अधिक खाद्य-सामग्री इन्हीं खाड़ी देशों से आयात होती है. कतर की वित्तीय और बैंकिंग व्यवस्था भी गंभीर रूप से प्रभावित हुई है. इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि कतर इस समय अमेरिकी डॉलर और अन्य देशों की मुद्रा के अभाव से जूझ रहा है. कतर को प्राकृतिक गैस को निर्यात करने में भी दिक्कत हो रही है. ऐसी स्थिति में जब कतर में आधा से ज्यादा श्रमबल बाहर से आता है, अरब देशों के द्वारा अपने नागरिकों को कतर जाने पर रोक लगाने से कतर के विकास की गतिविधि बहुत हद तक रुक जायेगी और इसका प्रभाव वहां आयोजित होनेवाले 2022 के फुटबॉल विश्वकप पर पड़ सकता है.

निश्चित रूप से कतर संकट का प्रभाव अन्य देशों पर भी पड़ेगा. इस क्षेत्र में अशांतिपूर्ण वातावरण भारत के लिए विशेष रूप से चिंता का विषय है. इस संदर्भ में भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती खाड़ी के देशों में रह रहे तकरीबन 6,50,000 भारतीय नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है. भारत कतर से सबसे अधिक प्राकृतिक गैस का आयात करता है, वहीं सऊदी अरब भारत को तेल निर्यात करनेवाला दूसरा सबसे बड़ा देश है. यही कारण है कि देश की सामरिक, आर्थिक और अन्य कारणों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने दोनों पक्षों को बातचीत के माध्यम से इस संकट को हल करने का आग्रह किया है.

मध्य-एशिया के देश कतर में अमेरिका का सबसे बड़ा सैन्य हवाई अड्डा है. खाड़ी देशों के मध्य उपजे इस संकट को जल्द-से-जल्द हल करने के लिए वैश्विक स्तर पर मजबूती के साथ आवाजें उठ रही हैं. ऐसे में इस बात की पूरी उम्मीद की जानी चाहिए कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस गतिरोध को खत्म करने के लिए जल्द ही कोई ठोस कदम उठायेंगे.

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