”दलित” शब्द का उपयोग कब तक
हमारे देश के नये राष्ट्रपति का चुनाव 17 जुलाई को होना है. इसके लिए दो दलित नेताओं में से किसी एक को चुना जाना है. इस चुनाव को ‘दलित बनाम दलित’ की संज्ञा दी जा रही है. अब सवाल यह उठता है कि क्या ये दोनों वास्तव में दलित कहलाने लायक हैं? सिर्फ अनुसूचित जाति, […]
हमारे देश के नये राष्ट्रपति का चुनाव 17 जुलाई को होना है. इसके लिए दो दलित नेताओं में से किसी एक को चुना जाना है. इस चुनाव को ‘दलित बनाम दलित’ की संज्ञा दी जा रही है.
अब सवाल यह उठता है कि क्या ये दोनों वास्तव में दलित कहलाने लायक हैं? सिर्फ अनुसूचित जाति, जनजाति के आधार पर दलित होना किस हद तक उचित है, जबकि दलित का वास्तविक अर्थ होता है – दबा, कुचला, जो अपने जीवन यापन के लिए संसाधनों को जुटाने में बहुत हद तक अक्षम है. तो फिर संपन्न परिवारों से भी ताल्लुक रखने वाले दलित कैसे हुए? आखिर राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग कब तक? ऐसी राजनीति से तो जात-पात की समस्या जस की तस बनी रहेगी और समाज बंटा रहेगा.
बादल कुमार आनंद, इमेल से