इस्राइल में मोदी
ग्यारह साल पहले एक इतिहास बना जब गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी इस्राइल पहुंचे थे, तब उनकी छवि राज्य की आर्थिक प्रगति के लिए हर संभव कोशिश करनेवाले नेता की थी. और, दूसरी बार भी एक इतिहास बना है, जब वे कूटनयिक संबंधों की शुरुआत की 25वीं वर्षगांठ पर भारत के पहले […]
ग्यारह साल पहले एक इतिहास बना जब गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी इस्राइल पहुंचे थे, तब उनकी छवि राज्य की आर्थिक प्रगति के लिए हर संभव कोशिश करनेवाले नेता की थी. और, दूसरी बार भी एक इतिहास बना है, जब वे कूटनयिक संबंधों की शुरुआत की 25वीं वर्षगांठ पर भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में इस्राइल में हैं. इस घड़ी वे दुनिया के सबसे ताकतवर नेताओं में शुमार हैं. इस्राइली मीडिया उन्हें बेधड़क दुनिया का सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री कह रहा है. इस दौरे पर जो गर्मजोशी दिखी, वह भी मौके के ऐतिहासिक होने की गवाही है.
इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू अपनी पूरी कैबिनेट के साथ हवाई अड्डे पर आगवानी के लिए आये. इस्राइल यह सम्मान अब तक सिर्फ अमेरिकी राष्ट्रपति और कैथोलिक चर्च के प्रमुख पोप को देता आया है. तीस मिनट की मुलाकात में तीन दफे उन्होंने नरेंद्र मोदी को मेरे दोस्त कह कर पुकारा और एक से ज्यादा दफे गले लग कर दोनों देशों के नेताओं ने आपसी रिश्तों की सीमा यह बतायी कि आकाश से परे जो वह अनंत अंतरिक्ष है, वहां तक हम साथ-साथ चलने को तैयार हैं.
यह साथ-सहयोग रक्षा सौदों, सिंचाई, पनबिजली और अंतरिक्ष विज्ञान में सहयोग से लेकर आतंकवाद के खतरे से मिल कर निपटने तक कुछ हो सकता है. प्रधानमंत्री का इस्राइल दौरा एक तरफ चली आ रही कोशिशों की तार्किक परिणति है, तो दूसरी तरफ विश्व में महाशक्तियों के बन रहे नये समीकरणों का एक संकेत भी. इस्राइल बना 1948 में, पर भारत ने उसे एक देश के रूप में स्वीकार किया 1950 में. नेहरू सोचते थे कि इस्राइल और फिलिस्तीन दो देश के रूप में नहीं, बल्कि एक संघ के रूप में मिल कर रहें. सो एक दूरी बनी रही.
पीवी नरसिम्हा राव के वक्त में कूटनीतिक संबंध बने. भारत ने औपचारिक तौर पर मान लिया कि इस्राइल और फिलिस्तीन में मौजूद ऐतिहासिक कटुता इन दोनों देशों से भारत के संबंधों की निर्धारक नहीं बनेगी. करगिल युद्ध में इस्राइल ने सैन्य साजो-सामान से भारत की सहायता की और प्रधानमंत्री वाजपेयी के दौर में इस्राइली प्रधानमंत्री एरियल शेरॉन भारत आये, तो ये रिश्ते और भी मजबूत हुए.
मोदी की रूस और अमेरिका यात्रा की उपलब्धियों को ध्यान में रखें और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से पश्चिम यूरोप के देशों के नेताओं में पनपते रोष का ख्याल करें, तो इस्राइल दौरे का एक संकेत यह भी है कि ताकतवर मुल्कों के शक्तिशाली नेता एक तरफ हो रहे हैं और खुद को उदारवादी लोकतंत्र बतानेवाले देशों के नेता एक तरफ. आनेवाले समय में यह समीकरण वैश्विक भू-राजनीति को कई स्तरों पर प्रभावित कर सकता है.