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राजनीतिक एजेंडे से बाहर हिंदू वेदना!

।। तरुण विजय।। (राज्यसभा सांसद) दो दिन पूर्व एक चैनल पर एंकर महोदया ने आम आदमी पार्टी के प्रतिनिधि से पूछा कि वैसे तो आपके नेता अरविंद केजरीवाल सांप्रदायिकता से लड़ने की बातें करते हैं, पर वाराणसी पहुंचते ही उन्होंने गंगा स्नान किया और मंदिर में दर्शन किया. ‘आप’ प्रतिनिधि बेचारे शब्द ढूंढ़ने लगे कि […]

।। तरुण विजय।।

(राज्यसभा सांसद)

दो दिन पूर्व एक चैनल पर एंकर महोदया ने आम आदमी पार्टी के प्रतिनिधि से पूछा कि वैसे तो आपके नेता अरविंद केजरीवाल सांप्रदायिकता से लड़ने की बातें करते हैं, पर वाराणसी पहुंचते ही उन्होंने गंगा स्नान किया और मंदिर में दर्शन किया. ‘आप’ प्रतिनिधि बेचारे शब्द ढूंढ़ने लगे कि क्या जवाब दें और यही कह पाये कि वे परिवार सहित काशी गये थे, इसलिए गंगा स्नान किया. ‘इंटेलेक्चुअल मॉडर्निटी’ जैसा भारी-भरकम अंगरेजी शब्द हिंदी कार्यक्रम में इस्तेमाल करते हुए उन एंकर बहन का एक ही प्रहार था कि अगर सांप्रदायिकता से लड़ना है, तो मंदिर जाने का क्या अर्थ है? मैंने उनसे पूछा कि क्या इंटेलेक्चुअल मॉडर्निटी का अर्थ सिर्फ हिंदुओं पर इस रूप में लागू होता है कि जब तक वे मंदिर जायेंगे, तब तक वे सेक्यूलर नहीं कहलायेंगे? क्या गैर-हिंदुओं से वह यह प्रश्न करने का साहस कर पातीं?

अभी पिछले सप्ताह पेशावर में जेहादियों ने सिख गुरुद्वारे पर हमला किया. एक सिख नागरिक- पेशावर के प्रसिद्ध वैद्य परमजीत सिंह- की हत्या कर दी गयी. वहां हड़ताल हुई. पूरे पाकिस्तान में उसका शोर उठा, लेकिन हिंदुस्तान और उसकी राजधानी दिल्ली में सिर्फ चुनाव पसरा रहा. एक-दूसरे पर अभद्र भाषा में आरोप-प्रत्यारोप. मोहल्ले की भाषा राष्ट्रीय चुनाव चर्चा का माध्यम बनती रही, लेकिन पाकिस्तान के हिंदुओं और सिखों पर आघात पर न तो किसी ने प्रदर्शन किया, न ही कोई बयान आया. यह स्थिति तब थी, जब कुछ समय पहले बांग्लादेश में जमाते-इसलामी के तालिबानों ने सैकड़ों हिंदू घर जला दिये थे, महिलाओं पर अत्याचार किया था और फिर हिंदू शरणार्थियों की एक बाढ़ भारत की ओर मुड़ी थी. तमिलनाडु के जिन मछुआरों को श्रीलंका सरकार द्वारा अवैध रूप से पकड़ कर दो-दो महीने जेल में रखा जाता है, उनकी नौकाएं तथा जाल तोड़ दिये जाते हैं, वे लगभग सभी हिंदू मछुआरे होते हैं. उनके विषय में सामान्यत: ऐसा मान लिया जाता है कि अगर किसी को बोलना भी है, तो तमिलनाडु के नेताओं और संगठनों को बोलने दीजिये. हमारा उनसे क्या संबंध है? एक समय था जब रामसेतु पर पूरे देश में हजारों प्रदर्शन हुए और एक करोड़ से ज्यादा हस्ताक्षर राष्ट्रपति को सौंपे गये. पर अब न तो रामसेतु पर और न ही तमिलनाडु के हजारों मंदिरों को डॉ सुब्रrाण्यम स्वामी की जनहित याचिका पर सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले पर कोई राष्ट्रव्यापी विचार तरंग दौड़ती है. मेरठ में कुछ भटके कश्मीरी लड़कों ने भारत-पाक मैच के दौरान पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाये तो हर पार्टी के नेता बोले, मुख्यधारा के संपादकों ने संपादकीय लिखे, भाषण और सेमिनार हुए. पांच लाख कश्मीरी अब भी शरणार्थी हैं, शंकराचार्य पहाड़ी को तख्ते सुलेमान और अनंतनाग को इस्लामाबाद लिखा जा रहा है- सरकारी वेबसाइट और पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के नामपट्टों में ऐसे नामों का जिक्र होता है, लेकिन यह राजनीतिक मुद्दा ही नहीं है, चुनाव घोषणापत्र या भाषण और सेमिनारों की तो बात ही छोड़ दीजिए.

भारत का एक मन भी है, उसका चैतन्य है, वह सिर्फ रोटी-कपड़ा और मकान पर जिंदा भौतिक काया मात्र ही नहीं है. इसीलिए श्री अरविंद ने भवानी-भारती की कल्पना सामने रखते हुए कहा था कि हमारे लिए भारत नदियों, पहाड़ों, मकानों, जंगलों और भीड़ का समुच्चय नहीं, वरन साक्षात जगत-जननी माता है. भारत हमारे लिए भवानी-भारती का जीवंत स्वरूप है और हम उसकी संतान हैं. अगर केवल बिजली, पानी और सड़क का मामला लिया जाये, तो यह हिंदुत्व की परम वैभव की कल्पना में स्वत: सन्निहित है. जिस धर्म के अनुयायी जीवन में लक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती के बिना अपने भाव विश्व की कल्पना नहीं कर सकते, उनके बारे में यह कहना कि हिंदुत्व की बात छोड़ कर सड़क, पानी, बिजली की बात करो, क्योंकि हिंदुत्व का अर्थ है पिछड़ापन, सांप्रदायिकता, अल्पसंख्यक विरोध, बैलगाड़ी युग और प्रगतिशीलता का विरोध, तो यह सत्य से मुंह मोड़ना होगा.

तालिबानवाद और जेहाद केवल बंदूक और शारीरिक हिंसा से ही नहीं होता. हिंदुओं के विरुद्ध शब्द हिंसा तथाकथित सेक्यूलर मीडिया और जेहादी मानसिकता के तत्वों का एक बड़ा हथियार रहा है. वे यह कभी स्वीकार नहीं कर सकते कि लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती की आराधना का अर्थ ही है उद्योग, व्यापार, आर्थिक विकास, शिक्षा और प्रौद्योगिकी, वैज्ञानिक मानसिकता के साथ नित्य नूतन मानवहितवर्धक अन्वेषण तथा गवेषणाएं, सैन्य विकास, शत्रु को परास्त करने के लिए हर प्रकार की शक्ति का अर्जन और आत्मनिर्भरता. केवल घंटी बजा कर कर्मकांड करना हिंदू का स्वभाव नहीं है, बल्कि वैदिक परंपराओं और विरासत को समसामायिक संदर्भो में पुन: व्याख्यायित करते हुए धर्म पर छानेवाली काई, कीचड़, धूल को साफ करने के लिए पाखंड खंडिनी पताका का स्वागत हमने करके दिखाया है. वास्तव में 2014 में यदि आदिशंकर और स्वामी विवेकानंद के जीवन आदर्श जीते हुए धर्म की नयी सामाजिक व्याख्या कोई कर रहा है, तो वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक हैं, जो अपना नाम, अपना भविष्य, अपनी विद्या और कृतित्व समाज में विलीन करते हुए अनथक कर्मरत हैं.

साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता सर विद्याधर नायपॉल ने पांचजन्य के साथ बातचीत करते हुए कहा था कि हिंदू समाज स्मृतिभ्रंश का शिकार है. स्मृति जगाओ तो देश का पुरुषार्थ और चैतन्य स्वत: जगेगा. यदि आज हिंदुओं पर आक्रमण चरचा और चिंता का विषय नहीं बनता, तो यही स्मृतिलोप का परिणाम है. भारत का अभ्युदय, श्री अरविंद के शब्दों में, नियति का अटल विधान है और यह विश्वास हृदय में संजो कर चलना होगा कि भले ही राजनीति के विषफल पर जीवित वर्ग इकट्ठा हो जाये, लेकिन दुनिया की कोई ताकत इस भारत अभ्युदय को रोक नहीं सकती. एक ऐसे समय में जब विश्व की प्रबल शक्तियां भारत के पुनरोदय के विरुद्ध जी-जान से षड्यंत्रों में व्यस्त हैं और विश्व की सबसे कठिन एवं दीर्घकालिक अग्निपरीक्षा से गुजरते हुए सोमनाथ की धरती से एक स्वयंसेवक पुन: भारत-भारती की आराधना के लिए प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण करने चला है, उस समय अपनी विरासत पर टेक बराबर जमाये रखनी होगी और आंतरिक झगड़ों तथा कोलाहल से दूर रहना होगा. यह समय बहस और तर्क-वितर्क का नहीं, चेहरे, नाम और पहचान पर सवाल जड़ने का नहीं, अपनी विरासत और हिम्मत को बिसारने का नहीं. एक बड़ी हुंकार से विजय को थामना, यही अपने हिंदुत्व और नागरिकत्व को सार्थक करना है.

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