कूटनीति से निकालें राह

चीन और भारत के बीच बीते बीस दिन से चली आ रही तनातनी के नरम पड़ने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं. मौजूदा तनाव भारत-चीन-भूटान सीमा पर डोकलाम क्षेत्र में चीनी सेना द्वारा किये जा रहे सड़क निर्माण पर भारत की आपत्ति का नतीजा है. स्थिति की गंभीरता का अनुमान इससे लगाया जा सकता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 7, 2017 6:31 AM
चीन और भारत के बीच बीते बीस दिन से चली आ रही तनातनी के नरम पड़ने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं. मौजूदा तनाव भारत-चीन-भूटान सीमा पर डोकलाम क्षेत्र में चीनी सेना द्वारा किये जा रहे सड़क निर्माण पर भारत की आपत्ति का नतीजा है. स्थिति की गंभीरता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि दोनों तरफ से उच्च पदस्थ अधिकारियों ने लगातार तीखे बयान दिये हैं. चीनी आक्रामकता इस स्तर पर आ चुकी है कि सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा संचालित ग्लोबल टाइम्स अखबार के संपादकीय मेंसिक्किम की स्थिति पर पुनर्विचार करने की सलाह दी गयी है. वर्ष 2003 में ही चीन ने भारत में सिक्किम के विलय को मान लिया था.
संपादकीय में फिर से तनाव बढ़ाने का ठीकरा भारत के माथे फोड़ा गया है और सबक सिखाने की मांग की गयी है. साफ संकेत है कि भारत की एकता एवं अखंडता में खलल डाल कर चीन सीमा पर अपने स्वार्थों की सिद्धि के लिए दबाव बनाना चाहता है. यह स्थिति भारतीय कूटनीति के लिए बड़ी चुनौती है. एक तरफ भारत सिक्किम क्षेत्र में यथास्थिति में बदलाव की चीनी कोशिशों को स्वीकार नहीं कर सकता है, वहीं पूरी सीमा पर विकास कार्यों को रोकने के विकल्प को भी नहीं माना जा सकता है. राजनयिक स्तर पर यह प्रयास भी होने चाहिए कि तनाव को कम किया जाये.
साथ ही, चीन के साथ द्विपक्षीय संबंधों को अमेरिका के संदर्भ में रखने या चीन के साथ कनिष्ठ सहयोगी बनने के विकल्पों से परे होकर भी देखने की आवश्यकता है. इस प्रयास में अपने सामरिक और आर्थिक हितों का भी समुचित ध्यान रखा जाना चाहिए. हालांकि, बीते दशकों में सीमा पर दोनों पक्षों में खींचतान हुई है, पर 1975 के बाद एक-दूसरे पर गोलियां नहीं चली हैं. पर, इस बार चीन की ओर से युद्ध का हवाला दिया जा रहा है और भारत की ओर से भी जवाबी बयानबाजी हो रही है. कैलाश-मानसरोवर के तीर्थयात्रियों के लिए नाथू-ला दर्रे को चीन द्वारा बंद किया जाना और जी-20 में मोदी-जिनपिंग मुलाकात से इनकार अफसोस की बातें हैं.
जानकारों के मुताबिक, उसकी बौखलाहट के कारणों में भारत का ‘वन बेल्ट-वन रोड’ परियोजना में शामिल नहीं होना भी अहम है, क्योंकि भारत के सहयोग के बिना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे और दक्षिण एशिया की कई परियोजनाओं के सफल होने पर सवालिया निशान लग सकता है. ऐसे में दोनों देशों के पास संवाद और समझौते के जरिये समाधान निकालने के अलावा कोई और सकारात्मक विकल्प नहीं है. हिंसक झड़पें या तनावों का बहुत बढ़ना दोनों देशों के साथ पूरे दक्षिण एशिया के लिए घातक हो सकता है.

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