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शिक्षा व्यवस्था और चिंतन

डॉ सय्यद मुबीन जेहरा शिक्षाविद् इन दिनों बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में प्रवेश को लेकर भागदौड़ मची हुई है. बारहवीं की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास करनेवाले बच्चे तक ऐसे परेशान घूम रहे हैं, जैसे दो-चार अंक कम लाकर उन्होंने कोई अपराध कर दिया हो. कई ऐसे भी बच्चे मिले जिनका यह दावा है कि उन्हें किसी […]

डॉ सय्यद मुबीन जेहरा
शिक्षाविद्
इन दिनों बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में प्रवेश को लेकर भागदौड़ मची हुई है. बारहवीं की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास करनेवाले बच्चे तक ऐसे परेशान घूम रहे हैं, जैसे दो-चार अंक कम लाकर उन्होंने कोई अपराध कर दिया हो. कई ऐसे भी बच्चे मिले जिनका यह दावा है कि उन्हें किसी एक विषय में जितने अंक मिलने चाहिए थे, वे नहीं मिले हैं, लेकिन स्नातक में प्रवेश की चिंता में वे परीक्षा बोर्ड से उलझना नहीं चाहते हैं. कई बच्चे जो बोर्ड से उलझे, उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि जिस परीक्षा के लिए बच्चों और उनके अभिवावक रात-दिन एक कर देते हैं, उसको कुछ लोग इतनी गंभीरता से लेते ही नहीं हैं. उन्हें इस बात का एहसास ही नहीं है कि एक नंबर के इधर से उधर हो जाने से उनके जीवन की राह कितनी बदल जाती है.
न जाने क्यों छात्रों की समस्याओं में बढ़ोतरी करते हुए केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसइ) ने परीक्षा परिणाम के बाद उत्तर पुस्तिका के दोबारा मूल्यांकन कराने की व्यवस्था खत्म कर दी है. बोर्ड के इस फैसले से हजारों छात्र, जिन्हें अपेक्षित नंबर नहीं मिले, वे दोबारा अपनी काॅपी जांच कराने से वंचित हो गये हैं.
दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिकतर अच्छे काॅलेजों में पहली ही कट ऑफ लिस्ट में प्रवेश पूरा हो जाता है. इनमें भी कट ऑफ लिस्ट 100 से बस दो-चार अंक ही नीचे होती है. ऐसे में 90 से 95 प्रतिशत अंक पानेवाले बच्चे भी अच्छे काॅलेजों में प्रवेश पाने से चूक जाते हैं. वे जरूर यह सोचते होंगे कि यहां पूरे परिश्रम के बाद भी मनचाहा वरदान प्राप्त नहीं होता है.
ये बच्चे उन बच्चों से अलग होते हैं, जो डॉक्टरी और इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण करने के लिए न जाने कितनी प्रवेश परीक्षाओं से होकर गुजरते हैं. ये बच्चे विज्ञान या सामाजिक विज्ञान के विषयों में आगे अपनी शिक्षा जारी रखना चाहते हैं. तब इन्हें इतना मुकाबला करने को मिलता है. ऐसे बच्चे जब अपने मनचाहे विषय में कुछ नहीं कर पाते हैं, तब उन्हें इधर-उधर झांकना पड़ता है, जिसके कारण निजी काॅलेजों की चांदी कटती है. इस तरह शिक्षा अगर बाजार के हाथ में चला जाये, तो सोचिए क्या हो सकता है?
ऐसे में सीबीएसइ के परीक्षा परिणाम के बाद उत्तर पुस्तिका के दोबारा मूल्यांकन कराने की व्यवस्था समाप्त करने के निर्णय से छात्रों का भविष्य कितना बरबाद होगा, यह सोचा जा सकता है. एक विद्यालय में तो एक ही विषय में सभी बच्चों के अंक कम हैं. विद्यालय का कहना है कि उसके विद्यार्थियों के साथ न्याय नहीं हुआ है. वैसे सीबीएसइ के दोबारा मूल्यांकन न कराने के निर्णय को ओडिशा के कुछ छात्रों ने हाइकोर्ट में चुनौती दे रखी है. सीबीएसइ ने आश्वासन दिया है कि पुनर्मूल्यांकन को लेकर कोर्ट का जो भी अंतिम निर्णय होगा, उसका बोर्ड अनुपालन करेगा. हालांकि, कोर्ट जानेवाले सभी छात्रों की काॅपी दोबारा मूल्यांकन कराने का आदेश हाइकोर्ट पहले ही दे चुका है.
छात्रों की मांग के मद्देनजर सीबीएसइ ने 10वीं-12वीं कक्षा की उत्तर-पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन की प्रक्रिया शुरू की है. इसके लिए 7 जुलाई तक ही आवेदन किया जा सकता है. प्रत्येक प्रश्न के लिए 100 रुपये का भुगतान करना होगा. दिल्ली हाइकोर्ट के आदेश के बाद सीबीएसइ ने बोर्ड परीक्षाओं के 10 पेपरों के पुनर्मूल्यांकन करने के लिए बात मान ली है. 12वीं में अंगरेजी कोर व अंगरेजी इलेक्टिव (सीबीएसइ और एनसीइआरटी), हिंदी कोर व इलेक्टिव, गणित, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, बिजनेस स्टडीज, अर्थशास्त्र और अकाउंटेंसी विषयों के अधिकतम 10 सवालों का पुनर्मूल्यांकन कराया जा सकता है.
सीबीएसइ ने फैसला किया है कि सिर्फ उन्हीं छात्रों की उत्तर पुस्तिका की जांच करेगा, जिन्होंने अपनी मूल्यांकित उत्तर पुस्तिका की फोटोकॉपी का आवेदन किया था. बोर्ड ने इससे पहले अंकों के सत्यापन या पुनर्मूल्यांकन की अनुमति नहीं देने का फैसला किया था. हालांकि, बोर्ड ने यह साफ कर दिया है अंकों की जांच के विरुद्ध कोई अपील या समीक्षा पर गौर नहीं किया जायेगा.
आये दिन हमें कोटा से ऐसे समाचार सुनने को मिल जाते हैं, जिनमें पढ़ाई के दबाव में आकर कई बच्चे अपना जीवन ही समाप्त करने की ठान लेते हैं. चिंता की बात यह है कि उत्तर पुस्तिका के मूल्यांकन को खारिज करने के कारण ऐसे बच्चों के साथ न सिर्फ नाइंसाफी होती है जो रात-दिन एक करके परीक्षा में बैठते हैं, बल्कि उनके जीवन को किसी और दिशा में बहा दिया जाता है. जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए, लेकिन पुनर्मूल्यांकन पर जिस तरह पाबंदी लगायी गयी है, उससे हम देश के भविष्य को भटकाने का काम जरूर करते हैं.
अच्छे अंकों से बारहवीं पास हुए बच्चे, जिन्होंने खूब परिश्रम किया है, जब इन दिनों मायूस नजर आते हैं, तब सोचना पड़ता है कि यह सब कहां जाकर रुकेगा? जिस प्रकार बच्चे 90-95 प्रतिशत आसानी से ला रहे हैं, उन विषयों में भी जो कभी अपने बस के नहीं होते थे, इससे यह जरूर साबित हो रहा है कि या तो यह पीढ़ी बहुत आगे की है, या फिर हम इस पीढ़ी के लायक नहीं हैं. अफसोस की बात तो यह है कि इस पीढ़ी के इतने नंबर लाने के बाद भी जरूरी नहीं है कि इन्हें अपनी पसंद के काॅलेजों में प्रवेश मिल जाये. यहीं हमें सोचने की जरूरत है कि अच्छे नंबर लाना जरूरी है या अच्छा इंसान बनना?
जहां तक शिक्षा की परिभाषा की बात है, तो यह पिछले कुछ वर्षों में कई बदलाव से गुजरी है. जो शिक्षा हम सब के लिए एक साथ चलने और आगे बढ़ने की जमानत होती थी, अब वह रात के अंधेरे में किसी कॉल सेंटर में दम तोड़ दे रही है.
सोचना होगा कि हम शिक्षा के हिसाब से चल रहे हैं या शिक्षा हमें अपने हिसाब से चला रही है? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम शिक्षा को लेकर एक राष्ट्रीय परिपक्व चिंतन के साथ आगे बढ़ें? शिक्षा एक ऐसा गहना है, जो पहननेवाले को कभी बूढ़ा लगने नहीं देता. लेकिन हमारी सोच अक्सर बूढ़ी हो जाती है और नये ख्वाब और ख्याल आने बंद हो जाते हैं. इसलिए जरूरी है कि हम सब मिल कर इस बारे में अच्छी तरह से सोचें.

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