विरोधी हितों का जमावड़ा जी-20
अजीब सा दृश्य था. हैम्बर्ग के एल्फिलहारमोनी कंसर्ट हाॅल में 20 देशों के शासन प्रमुख, जर्मन सिम्फनी बीथहोवेन का ‘आॅड टू ज्वाॅय’ का आनंद ले रहे थे, और बाहर मारकाट मची थी. ऐसा मंजर, जी-20 के किसी शिखर सम्मेलन में न तो देखा गया था, न सुना गया. जी-20 सम्मेलन के समापन वाले दिन का […]
अजीब सा दृश्य था. हैम्बर्ग के एल्फिलहारमोनी कंसर्ट हाॅल में 20 देशों के शासन प्रमुख, जर्मन सिम्फनी बीथहोवेन का ‘आॅड टू ज्वाॅय’ का आनंद ले रहे थे, और बाहर मारकाट मची थी. ऐसा मंजर, जी-20 के किसी शिखर सम्मेलन में न तो देखा गया था, न सुना गया. जी-20 सम्मेलन के समापन वाले दिन का नाम विरोधियों ने ‘ब्लैक फ्राइडे’ रख दिया है. हिंसक प्रदर्शन में शामिल 143 लोग गिरफ्तार किये गये. प्रदर्शन का सिलसिला गुरुवार से शुरू था, उसके अगले दिन समापन की शाम प्रदर्शनकारी अचानक से हिंसक हो उठे. लूट, आगजनी और अराजकता पुलिस के नियंत्रण से बाहर हो गयी थी. जर्मन चांसलर आंगेला मैर्केल ने जिस अजीमुश्शान से यह सम्मेलन कराते हुए ‘विन-विन सिचुएशन’ का नारा दिया था, सत्य के धरातल पर उसे ‘लूज-लूज सिचुएशन’ करार दिया गया है.
क्या मैर्केल ने जी-20 सम्मेलन के वास्ते हैम्बर्ग जैसी जगह का चुनाव करके बुनियादी गलती कर दी थी? बर्लिन के बाद हैम्बर्ग, जर्मनी का दूसरा सबसे बड़ा शहर है. ‘नार्थ सी’ और एल्बे नदी से जुड़ा यह बंदरगाह नगर निश्चित रूप से प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है. मैर्केल ने यही सोच कर इस जगह को जी-20 शिखर समारोह के लिए तय किया था, ताकि विश्व नेता इससे अभिभूत होंगे. मगर, चांसलर मैर्केल यह भूल गयीं कि हैम्बर्ग उग्र वामपंथियों का गढ़ है. क्या कुछ लोग चाहते थे कि चुनाव के वर्ष में चांसलर मैर्केल को ऐसे आयोजन के वास्ते विफल मेजबान करार दिया जाये?
पूंजीवाद और वैश्वीकरण का विरोध करते हुए प्रदर्शनकारी, शरणार्थियों के लिए खुली सीमा की मांग कर रहे थे. यूरोप के कई हिस्सों से हैम्बर्ग आयी 78 हजार की भीड़ में कुर्द समूह और स्काॅटिश समाजवादी के कार्यकर्ता भी थे. भीड़, 30 हजार की संख्या वाली जर्मन पुलिस पर भारी पड़ रही थी. शुक्रवार की रात सबसे बड़ा हंगामा शांसेनफियर्टेल इलाके में हुआ, जो सम्मेलन स्थल से ज्यादा दूर नहीं था. उनका गुस्सा नेताओं के खिलाफ कम, पुलिस के विरुद्ध ज्यादा था. प्रदर्शनकारियों की निगाह में पुलिस, निरंकुश सत्ता की प्रतीक रही है. प्रदर्शनकारियों ने मोटरसाइकिलों, साइकिल के बैरिकेड्स जगह-जगह बनाये, आगजनी की और डिपार्टमेंटल स्टोर्स, एटीएम में लूटपाट शुरू की. सैकड़ों संकरी गलियों से भरे इस नगर में पुलिस के लिए झड़पों को रोकना, प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करना कठिनाई भरा काम था. पुलिस फिर भी कामयाब हुई, और जर्मन चांसलर ने उनकी तारीफ के साथ ग्रुप फोटो में शामिल होकर हौसला बढ़ाया, जो अमूमन भारत जैसे मुल्क में नहीं होता है.
गौर से देखा जाये, तो इस बार जी-20 परस्पर विरोधी हितों का सम्मेलन बन कर रह गया. 19 देशों और यूरोपीय संघ के नेता एक पन्ने पर सम्मेलन की कामयाबी की इबारत लिखने में सफल क्यों नहीं हो पाये? क्यों घोषणापत्र में यह लिखना पड़ा कि अमेरिका पैरिस समझौते से बाहर है, बाकी 19 ‘पैरिस समझौते’ के साथ हैं? घोषणापत्र से ही नेताओं के बीच असहमतियों की असल तस्वीर नुमाया हो रही थी. यह कुछ विचित्र था कि बातचीत की मेज पर ‘रीयल डेमोक्रेट’, निरंकुश शासकों और मानवाधिकारों का हनन करनेवालों के साथ बैठे थे. इनमें कैदियों को मार डालने का विश्व रिकाॅर्ड बनानेवाले चीन के नेता शी थे, और ‘अमेरिका फर्स्ट’ के निरंकुश नारे को साथ लिये चलनेवाले ट्रंप भी थे, जिन्हें यह समझाना मुश्किल था कि दुनिया में इससे इतर भी समस्याएं हैं, जिसके लिए जी-20 की शिखर बैठक होती है.
बैठक में संरक्षणवाद को बहुमत से अस्वीकार किया गया. शासन प्रमुख चाहते थे कि विश्व व्यापार संगठन के तय मानकों का पालन हो. मैर्केल ने ‘बहुपक्षवाद’ का बढ़िया नारा दिया था, जिसे फ्रांसीसी व रूसी राष्ट्रपतियों, और पीएम मोदी ने भी पसंद किया था. मगर, ट्रंप के तौर-तरीके जी-20 की भावनाओं के विपरीत जिस तरह दिखे, वे खुद-ब-खुद पृथक होते चले गये. इससे लगता है कि अमेरिकी कूटनीति की अकुशलता का दौर आरंभ हो गया है. अब अमेरिकी कूटनीति जैसे गंभीर विषय को इवांका के ग्लैमर के इर्द-गिर्द रख दिया जाये, तो और क्या उम्मीद की जा सकती है?
ऐसा भी नहीं है कि जी-20 की इस शिखर बैठक में सबकुछ नकारात्मक रहा है. एक काम की बात यह हुई कि अफ्रीका में निवेश और वहां पर उद्योग को विकसित करने पर सहमति बनी. जी-20 के शासन प्रमुख दक्षिणी सीरिया में सीजफायर सहमत हुए. आतंकवाद और टैक्स चोरी रोकने पर राजी हुए. वित्तीय बाजारों का नियमन जारी रखा जाये, इस पर सहमति बनी. प्रधानमंत्री मोदी आतंकवाद के हवाले से पाकिस्तान को एक बार फिर बेनकाब करने में सफल हुए हैं. मोदी विश्व नेताओं से बगलगीर दिखे, ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे से विजय माल्या के प्रत्यर्पण के वास्ते तरकीब निकालने की बात की. इसे आप कम उपलब्धि मानते हैं क्या? और इस बीच पीएम मोदी को इवांका ट्रंप से एक बार फिर हाथ मिलाने का मौका भी तो मिला!
पुष्परंजन
ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक