बारिश में गिरती निबौलियां

कई दिनों से बारिश के आसार बनते हैं, मगर बारिश होती नहीं. लगता है कि बादल अब बरसे तब बरसे, और अब बूंदों की रुनझुन सुनायी दे, मगर ऐसा होता नहीं है. भारी उमस है. पार्क में बैठ कर भी राहत नहीं मिलती. बार-बार काले उमड़ते बादल न जाने कितनी तूफानी गति से उड़े जा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 12, 2017 6:19 AM

कई दिनों से बारिश के आसार बनते हैं, मगर बारिश होती नहीं. लगता है कि बादल अब बरसे तब बरसे, और अब बूंदों की रुनझुन सुनायी दे, मगर ऐसा होता नहीं है. भारी उमस है. पार्क में बैठ कर भी राहत नहीं मिलती. बार-बार काले उमड़ते बादल न जाने कितनी तूफानी गति से उड़े जा रहे हैं कि रुक कर नीचे जरा सी नजर नहीं डालते. अगर वे नजर डालें, तो उन बादलों को लोगों की परेशानी पता चलती. उमस और गरमी से तड़पते लोगों पर कुछ दया खाकर झमाझम बरस जायें, मगर उन्हें न जाने कहां पहुंचना है, कौन बुला रहा है कि सारे एक तरफ भागे ही चले जा रहे हैं.

यों कई दिन पहले हुई बारिश से पार्क में घास हरी हो गयी है. पेड़ों के पत्तों पर बहार आ गयी है. वे चमकीले हरे दिखाई देने लगे हैं. और सबसे ज्यादा तो इठला रहे हैं पार्क में लगे दो छतनार नीम. वे छोटे-छोटे आम जैसे आकार की निबौलियों से लदे पड़े हुए हैं. निबौलियों की झालरों को देख ऐसा लगता है जैसे गुच्छे लहरा रहे हैं. उनसे पीली-हरी निबौलियां मोतियों की तरह झर रही हैं. पेड़ों के चारों तरफ पीले-हरे कालीन की तरह फैली हैं.

चालीस-पचास साल पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पकी निबौलियों को खूब चूसा जाता था, जिससे कि वर्षा जनित रोग शरीर से दूर रहें. बच्चों को इन्हें खिलाया जाता था. स्वाद में भी ये हलकी कसैली और मीठी होती थीं. कई बार गाय, भैंस या बकरियां इन्हें खा लेती थीं, तो उनके दूध में नीम की गंध ही नहीं आ जाती थी, बल्कि दूध कड़वा हो जाता था. पीने लायक भी नहीं रहता था. इसलिए घर के जानवरों को निबौलियों और नीम के पत्तों से दूर रखा जाता था.

तब घर-घर में लगे नीम के पेड़ों से मिलनेवाली इन निबौलियों को इकट्ठा कर लिया जाता था. इनकी बेहतरीन खाद बनायी जाती थी, जो फसलों में कीड़ा लगने से बचाती थी. निबौलियों से तेल भी निकाला जाता था, जो कई दवाएं बनाने और साबुन आदि बनाने के काम आता था. नीम के सूखे पत्तों को जला कर तो घर भर में धुआं किया जाता था, जिससे पतंगे और मच्छर दूर भाग जाते थे.

मैं देख रही हूं इन दिनों पार्क इन निबौलियों से भरा पड़ा है. वे घूमनेवालों के पैरों तले कुचली जा रही हैं. आज के युवा को शायद यह पता ही न हो कि पकी निबौलियों को खाया भी जा सकता है. नीम के पत्ते उबाल कर उसे पानी में मिला कर नहाने से त्वचा रोग दूर रहते हैं. और इस तरह घर बैठे रोगों से निजात पायी जा सकती है. जीवन में जितना तकनीक का दखल बढ़ा है, प्रकृति से हमारी दूरी भी बढ़ी है.शायद इसीलिए कृषि-जीवन से जुड़े नीम के प्रयोगों से शहराती सभ्यता बिल्कुल दूर चली आयी है.

Next Article

Exit mobile version