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कायरतापूर्ण हमला

अलगाववाद की हिंसक आंच में झुलसते कश्मीर में करीब डेढ़ देशक से मानो एक अलिखित करार चला आ रहा था. अमरनाथ यात्रा पर आये तीर्थयात्रियों को आतंकवादी हमले का निशाना नहीं बनाते थे. लेकिन, इस बार यह भरोसा टूट गया. इस भयानक खबर से 2002 का वाकया याद आना लाजिमी है. उस साल 30 जुलाई […]

अलगाववाद की हिंसक आंच में झुलसते कश्मीर में करीब डेढ़ देशक से मानो एक अलिखित करार चला आ रहा था. अमरनाथ यात्रा पर आये तीर्थयात्रियों को आतंकवादी हमले का निशाना नहीं बनाते थे. लेकिन, इस बार यह भरोसा टूट गया. इस भयानक खबर से 2002 का वाकया याद आना लाजिमी है. उस साल 30 जुलाई को श्रीनगर से अमरनाथ के रास्ते पर जा रही तीर्थयात्रियों की टैक्सी पर ग्रेनेड फेंका गया था. फिर 6 अगस्त को पुलवामा के शिविर पर आतंकियों ने गोलीबारी की थी. ऐसे हमले पहले 2000 और 2001 में भी हुए थे और बाद में एक दफे 2006 में तीर्थयात्रियों को आतंकियों ने निशाना बनाया था.

लेकिन 2002 की घटना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि तब जांच एजेंसियों को बिल्कुल स्पष्ट हो चुका था कि पाकिस्तानी शह से संचालित आतंकी गिरोह लश्कर-ए-तैयबा सांप्रदायिक वैमनस्य को हवा देने के लिए ऐसे कुकृत्य कर रहा है.

वर्ष 2008 में अमरनाथ मंदिर बोर्ड को सूबे की सरकार ने जमीन दी, तो इसके विरोध में बवाल भड़का, घाटी और जम्मू दोनों जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा हुई. इस घटना के बाद से अमरनाथ यात्रा ने पहले की तुलना में ज्यादा सियासी अहमियत अख्तियार कर ली. भारत की एकता और अखंडता के आख्यान से जुड़ने के कारण सरकार के लिए अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा का सवाल बहुत महत्वपूर्ण हो गया. इसका एक प्रमाण यह भी है कि बाद के समय में कश्मीर में स्थिति पर नियंत्रण की एक कसौटी यह भी हो गयी कि सुरक्षाबल मुस्तैदी से तीर्थयात्रा को सुरक्षित पूरा करा पाते हैं या नहीं. तीर्थयात्रियों पर इस बार हुआ हमला इतिहास के इसी बोझ के कारण ज्यादा पीड़ादायी और चिंताजनक है. यह हमला संकेत करता है कि घाटी में पड़ोसी देश के इशारे पर सक्रिय आतंकी सुरक्षाबलों की भरपूर तैनाती के बीच सेंधमारी कर सकते हैं और निर्दोष लोगों को निशाना बना सकते हैं.

चूंकि हमलावर गोलीबारी के बाद भागने में कामयाब रहे, इसलिए संकेत यह भी है कि उनके स्थानीय मुहाफिजों की ताकत या कह लें नेटवर्कज्यादा कमजोर नहीं हुआ है. सरकार को चंद रोज पहले आये आतंकी सरगना सैयद सलाहुद्दीन की धमकी को भी नजर में रखना होगा. खबरें आयी हैं कि घाटी में सलाहुद्दीन के हिजबुल मुजाहिद्दीन और लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी साथ-संगत में सक्रिय हैं. जितना जरूरी जांच के जरिये यह जानना है कि सुरक्षा इंतजाम में चूक कहां हुई, उतनी ही जरूरी है पुलिस और फौज की मुस्तैदी. सूबे और केंद्र सरकार दोनों को पहले से कहीं ज्यादा सतर्कता बरतते हुए सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने की करतूतों पर लगाम कसने के लिए तत्पर होना होगा.

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