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योगी सरकार का पहला बजट

बृजेश शुक्ल पत्रकार brijeshshukla01@gmail.com साल 2019 में होनेवाले लोकसभा चुनाव का डंका भले ही अभी नहीं बजा हो, लेकिन उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अभी से ही चुनावी मूड में आ गयी है. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने देश के अन्य राज्यों के सामने एक बड़ी लकीर खींच दी है. बजट में बिना […]

बृजेश शुक्ल
पत्रकार
brijeshshukla01@gmail.com
साल 2019 में होनेवाले लोकसभा चुनाव का डंका भले ही अभी नहीं बजा हो, लेकिन उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अभी से ही चुनावी मूड में आ गयी है. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने देश के अन्य राज्यों के सामने एक बड़ी लकीर खींच दी है. बजट में बिना कोई टैक्स लगाये किसानों की कर्जमाफी के लिए 36 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था कर पूरे देश की अन्य सरकारों के सामने यह सवाल खड़े कर दिये हैं कि यदि बिना केंद्र सरकार की मदद से उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में यदि किसानों का कर्ज माफ हो सकता है, तो यह काम संकट में घिरे किसानों के लिए देश के अन्य राज्य भी क्यों नहीं कर सकते हैं.
गौरतलब है कि नीति आयोग के मंशा के अनुरूप बने इस बजट में कुछ क्रांतिकारी कदमों के भी दर्शन होते हैं. इस बजट ने काफी समय से चले आ रहे प्लान व नाॅन प्लान की व्यवस्था खत्म कर दी है. इससे उम्मीद है कि अफसरशाही पर नकेल कसेगी. अब सरकार खर्च पर निगाह रख सकेगी. यूपी के बजट में वे सारे प्रयास किये गये हैं कि पैसा उस जगह तक जाये, जहां दरिद्र नारायण यह देखे कि सरकार उसके लिए कहां और कैसे धन खर्च कर रही है.
विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने यह वादा किया था कि सत्ता में आते ही वह किसानों का कर्ज माफ करेगी. इसके साथ ही उसने एक बड़ा वादा किसानों को बिना ब्याज के फसली कर्ज उपलब्ध कराने का भी किया था. अपने पहले बजट में उत्तर प्रदेश सरकार ने बजट में किसानों के कर्ज पर कोई चर्चा नहीं की है. लेकिन, कर्ज माफी के लिए धन की व्यवस्था करने पर सफलता के बाद यह साफ हो गया है कि अगले बजट में सरकार किसानों को बिना ब्याज के कर्ज उपलब्ध करने की ओर बढ़ेगी.
इस बजट से यह साफ परिलक्षित होता है कि योगी सरकार 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों की ओर बढ़ गयी है.सरकार जल्दबाजी में है. उसके पास समय कम है और लक्ष्य बहुत बड़ा है. कर्जमाफी के लिए धन की व्यवस्था एवरेस्ट पर चढ़ाई जैसा ही था. यह साफ है कि इस बजट के साथ ही अगला बजट भी पूरी तरह चुनावी ही होगा. अकसर यह देखा गया है कि सरकार सत्ता में आने के पहले वर्ष पर कुछ अप्रिय व कड़े फैसले करती है. लेकिन, तमाम आर्थिक परेशानियों के बावजूद सरकार ने अपने पहले बजट में टैक्स नहीं लगाया है.
यह अलग बात है कि योगी सरकार ने अपनी पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार की कई योजनाओं को बंद तो कर दिया. सरकार किसी तरह अपने वादे पूरा करते दिखना चाहती है. बालिकाओं को मुफ्त शिक्षा देने की व्यवस्था भी बड़ा कदम माना जा रहा है. सामूहिक विवाह के लिए 250 करोड़ रुपये की व्यवस्था भी उस वर्ग तक पहुंचने की कोशिश है, जो धनाभाव के कारण अपनी बेटियों के ब्याह की हिम्मत तक नहीं जुटा पाता. अब विवाह के लिए मिलनेवाला अलग-अलग अनुदान बंद हो गया है.
इससे साफ है कि अब सरकार गांवों तक में सामूहिक विवाह का आयोजन कर यह संदेश देना चाहती है कि वह उन लोगों के साथ खड़ी है, जिनके पास बेटी के विवाह के लिए भी पैसे तक नहीं है. यह सरकार का एक बड़ा सामाजिक दायित्व पूरा करनेवाला काम होगा. जाहिर है, सरकार अपने बुनियादी एजेंडे को नहीं भूली है. काशी, मथुरा, वंृदावन, अयोध्या, नैमिषारण्य, विंध्याचल जैसे तीर्थ स्थलों के विकास के लिए दो हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था कर योगी आदित्यनाथ हिंदुत्ववादी ऐजेंडे का संदेश देते हैं.
इस उपलब्धि के बावजूद बजट उन लोगों को निराश भी करेगा, जिन्हें अखिलेश सरकार के शासन में लाभ मिल रहा था. कन्या विद्याधन योजना बंद कर दी गयी है. समाजवादी पेंशन भी खत्म हो गयी है. बजट से समाजवादी नाम गायब हो गया है और जनसंघ के सस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय का नाम छाया हुआ है. यह अपने कार्यकर्ताओं को खुश करने का प्रयास है.
इस पेंशन का लाभ लगभग 50 लाख लोगों को मिलता था. यह संख्या बहुत बड़ी है. इसके साथ ही, यशभारती पुरस्कार अब नहीं मिलेगा. कब्रस्तान की बाउंड्री को बनवाने लिए पिछली सरकार की योजना को समाप्त कर दिया गया है. भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकार कहते हैं कि पंेशन योजना को अगले बजट में नये रूप में लाया जायेगा. अब यह कितना हो पाता है, यह तो देखनेवाली बात होगी.

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