पानी-पानी रे!

मिथिलेश राय टिप्पणीकार आदमी शहरी हो या देहाती, मौसम-पूर्व तैयारी में जुटा रहता है. मौसम के मद्देनजर क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, इस विषय पर सलाह दी जाने लगती है, सलाह ली जाने लगती है. मौसम के हिसाब से बाजार भी खुद को सजाता-संवारता है. मौसम रोजगार भी देता है. जैसे कुछ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 18, 2017 6:04 AM
मिथिलेश राय
टिप्पणीकार
आदमी शहरी हो या देहाती, मौसम-पूर्व तैयारी में जुटा रहता है. मौसम के मद्देनजर क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, इस विषय पर सलाह दी जाने लगती है, सलाह ली जाने लगती है. मौसम के हिसाब से बाजार भी खुद को सजाता-संवारता है. मौसम रोजगार भी देता है. जैसे कुछ दिन पहले जब तीखी धूप निकलती थी, तो आइस्क्रीम वाले गली-गली भोंपू बजाते-फिरते थे. आजकल छाता वाले हांक लगाते हुए मिल जाते हैं.
आदमियों की तरह मौसम में भी कुछ मौसम बड़े खास होते हैं. हमेशा चर्चा में बने रहते हैं. जैसे बारिश का मौसम. यह वसंत से भी ज्यादा चर्चा बटोरता है. जिन लोगों को पता भी नहीं चलता कि वसंत का मौसम कब आया और कब चला गया, उन्हें भी बारिश का मौसम शिद्दत से महसूस होता है. बरसात का मौसम गांव-शहर को पानी-पानी कर देता है! पानी तो पानी है, लेकिन पानी-पानी हो जाना तो एक अलग चीज है न!
बारिश के मौसम की चर्चा गांव वाले तो इसलिए करते हैं कि उनके पास धान की रोपाई की चिंता रहती है.
गांव में टूटी नहरें होती हैं जिनमें कभी पानी नहीं छोड़ा जाता. उनके हाथ में डीजल के पैसे नहीं होते हैं. जम कर बारिश होने के बाद कीचड़-कीचड़ जिंदगी की ये कभी किसी के पास चर्चा नहीं करते, उपर वाले को बड़ा सा धन्यवाद देते हैं कि डीजल के पैसे बच गये! गांव के बगल की नदी में उफान के चर्चे भी होते हैं. स्वभाविक है, नदी की कमजारे बांध को सावन-भादो एक धक्का जरूर देते हैं.
लेकिन, शहर और अर्द्ध-शहरों का क्या? बारिश की चर्चा करते ये भी नहीं थकते. जबकि इनके पास रेनकोट है, छत नहीं टपकनेवाले आलीशान बिल्डिंग है. इनके पास सड़कों-वाहनों की अच्छी सुविधाएं हैं. बाहर बारिश हो रही है, तो अंदर गरम चाय के साथ पकौड़े की परिकल्पना है.
लेकिन चर्चा इन सुविधाओं को लेकर नहीं की जाती. बारिश की बूंदें इन शहरी मजे की किरकिरी कर देती हैं. फिर चर्चा महल्लों में जमे पानी की शुरू होती है. बारिश के पानी में तैर रहे कचरे की होती है. सड़ते पानी की गंध से जो जीना मुहाल हो जाता है, कोफ्त का कारण तो यह होता है. वरना तो इसी मौसम में पेड़ों पर झूले डाले जाते हैं. सावनी और कजरी गायी जाती है.
लेकिन पानी है कि पोल खोल कर रख देता है. चर्चा होनी चाहिए कि बारिश ने निर्दयी धूप से निजातदिला दी. लेकिन, चर्चा यह हो रही है कि नालियों की हालत इतनी खराब है कि पानी किसी ओर बह नहीं रहा है. शहर में आकर पानी भी अपना स्वभाविक गुण भूल जाता है. सड़कों में इतने गड्ढे हैं, तो पथ-निर्माण विभाग काम क्या कर रहा है? इतना गंदा शहर है कि पानी में तैर रहे कचरे ने जीना मुहाल कर दिया है.

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