हिंसा पर लगे लगाम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक महीने से भी कम समय में दो बार चेतावनी के स्वर में कहना पड़ा है कि गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा की घटनाएं बर्दाश्त नहीं की जायेंगी. बीते जून के आखिरी हफ्ते में एक लंबी चुप्पी के बाद प्रधानमंत्री ने अहमदाबाद में कहा था कि गौभक्ति के नाम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 18, 2017 6:05 AM
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक महीने से भी कम समय में दो बार चेतावनी के स्वर में कहना पड़ा है कि गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा की घटनाएं बर्दाश्त नहीं की जायेंगी. बीते जून के आखिरी हफ्ते में एक लंबी चुप्पी के बाद प्रधानमंत्री ने अहमदाबाद में कहा था कि गौभक्ति के नाम पर हत्या को स्वीकार नहीं किया जा सकता है और किसी को भी अपने हाथ में कानून लेने का अधिकार नहीं है.
उन्होंने ऐसी चिंता 2016 के अगस्त में भी जाहिर की थी. तब उन्होंने कहा था कि 70-80 प्रतिशत गोरक्षक फर्जी होते हैं. गोरक्षा के नाम पर होनेवाली हत्याएं न तो 2016 के अगस्त के बाद रुकीं, न ही जून में जाहिर उनकी चिंता के बाद ही उनमें कोई कमी आयी.
देश के विभिन्न इलाकों में कथित गोरक्षक भीड़ हत्याओं और हमलों को अंजाम देती रही. जून में जब प्रधानमंत्री मोदी का बयान अखबारों की सुर्खी बना, तकरीबन उसी वक्त झारखंड में अल्पसंख्यक समुदाय के एक व्यक्ति की हत्या गौरक्षा के नाम पर हुई. संसद के मॉनसून सत्र शुरू होने से तुरंत पहले विपक्ष चूंकि सरकार पर हमलावर होने के लिए अपने तर्कों की धार तेज कर रहा है, तो प्रधानमंत्री को फिर से कहना पड़ा है कि गोरक्षा के नाम पर भीड़ की हिंसा बर्दाश्त नहीं की जायेगी और राज्य सरकारों को चाहिए कि वे ऐसे हमलावरों पर कड़ी कार्रवाई करें. मुश्किल यह है कि ऐसी भलमनसाहत जमीनी स्तर पर साकार होती नहीं दिख रही है.
आंकड़े बताते हैं कि 2010 से 2017 के 25 जून के बीच गौरक्षा के नाम पर हिंसा की कुल 63 घटनाएं हुईं और 28 लोगों की जान गयी. जान गंवानेवालों में सबसे ज्यादा (86 प्रतिशत) अल्पसंख्यक समुदाय के लोग थे. एक चिंताजनक तथ्य यह भी है कि गाय की रक्षा के नाम पर होनेवाली सर्वाधिक हत्याएं (97 प्रतिशत) 2014 की मई यानी मोदी सरकार के शासन में आने के बाद हुई हैं. गोरक्षा के नाम पर बढ़ती हत्याओं से जुड़ा मुख्य सवाल यह नहीं है कि केंद्र सरकार या राज्य सरकार के स्तर पर इसकी कितनी कड़ी भर्त्सना की जाती है.
इस समस्या का मुख्य सवाल यह है कि खुद को गौरक्षक बतानेवाली भीड़ को दंड-भय से मुक्त होकर अपराध-कर्म करने का हौसला किन वजहों से हासिल हुआ है? जब तक शासन के स्तर से यह नहीं स्वीकारा जाता है कि गोरक्षा और राष्ट्र रक्षा का विचार दो अलग-अलग बातें हैं और गोरक्षक भीड़ कोई राष्ट्ररक्षक भीड़ नहीं है, तब तक भय के कायम माहौल में कमी की उम्मीद नहीं की जा सकती.

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