नयी सोच नयी राह
शफक महजबीन स्वतंत्र टिप्पणीकार आज टेक्नोलाॅजी के बढ़ते प्रयोग ने दुनियाभर में अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है. बात चाहे कोई जानकारी पाने की हो, दोस्तों और रिश्तेदारों से संपर्क में रहने की हो या फिर प्रचार-प्रसार कर अपने कारोबार को सफल बनाने की हो. मसालों का कारोबार करनेवाली लाहौर की तहमीना चौधरी अपने उत्पाद […]
शफक महजबीन
स्वतंत्र टिप्पणीकार
आज टेक्नोलाॅजी के बढ़ते प्रयोग ने दुनियाभर में अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है. बात चाहे कोई जानकारी पाने की हो, दोस्तों और रिश्तेदारों से संपर्क में रहने की हो या फिर प्रचार-प्रसार कर अपने कारोबार को सफल बनाने की हो.
मसालों का कारोबार करनेवाली लाहौर की तहमीना चौधरी अपने उत्पाद को आॅनलाइन बाजार में बेचना चाहती थीं, पर बिजनेस को प्रमोट करने के तरीके की जानकारी न होने से उन्हें मुश्किलें आ रही थीं. प्रिंट मीडिया में विज्ञापन देने के पैसे बहुत लगते थे. सोशल मीडिया इसमें प्रसार की भूमिका अदा कर सकता है, इसलिए उन्होंने फेसबुक पर अपना पेज भी बनाया. लेकिन, उनका उत्पाद कितना बढ़िया है, इसकी जानकारी तो लोगों तक पहुंचानी ही थी. इसमें तहमीना कामयाब भी हुईं और उनका कारोबार चल निकला.
जहां एक ओर सोशल नेटवर्किंग साइटों ने डिजिटल दुनिया को एक नया और सकारात्मक आयाम दिया है, वहीं इसकी नकारात्मकता भी सामने आयी है. लेकिन, अगर इसकी नकारात्मकता को परे रख दें, तो यह तहमीना की तरह हर किसी को कामयाबी दे सकता है.
शायद यही सोच कर ही फेसबुक ने एक बिजनेस प्रोग्राम ‘शी बिजनेस’ की शुरुआत की है. तहमीना जैसी बिजनेस वुमेन की मुश्किलों का हल सोचनेवाली ‘वुमन डिजिटल लीग’ नामक एक फर्म की संस्थापक मारिया उमर ने फेसबुक की टीम को महिलाओं तक पहुंचाने की जिम्मेवारी ली है.
मारिया मानती हैं कि महिलाएं व्यापार के क्षेत्र में योग्य हैं, बस उन्हें प्रशिक्षण की जरूरत है. उनके मुताबिक, फेसबुक की टीम महिलाओं को तीन चरणों में प्रशिक्षित करेगी. पहले चरण में उन महिलाओं को प्रशिक्षित किया जायेगा, जिन्हें फेसबुक के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. दूसरे चरण में ऐसी महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जायेगा, जो पहले से ही व्यापार के लिए फेसबुक का प्रयोग कर रही हैं. और तीसरे चरण में वे महिलाएं शामिल होंगी, जो फेसबुक के बारे में अच्छी तरह से जानकारी रखती हैं.
ऐसा ही यहां भी हो सकता है. अगर भारतीय महिलाओं को शी बिजनेस जैसे कार्यक्रम से प्रशिक्षण मिले, तो उनके हाथ की जादूगरी सोशल मीडिया के जरिये हर जगह पहुंच जायेगी.
कपड़े की कशीदाकारी हो या लकड़ी के खूबसूरत सजावट के सामान, मिट्टी के बरतन हों या यूजलेस चीजों से बनी आरास्तगी की चीजें, या फिर गांव-देहात के लोगों का कौशल हो या उनका शानदार हुनर, इन सबको अगर प्रचार-प्रसार मिले, तो न सिर्फ उनके स्वरोजगार को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि उनके हुनर को अंतरराष्ट्रीय मंच के साथ पहचान भी मिलेगी. सोशल साइट्स को सिर्फ फालतू की चीजों को शेयर करने का जरिया बनाने के बजाय एक नयी सोच के साथ नयी राह बनाने का जरिया भी बनाया जा सकता है.