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प्रतिभा पहचानिए कम नहीं अवसर

।। अखिलेश्वर पांडेय।। (प्रभात खबर, जमशेदपुर) होनहार बिरवान के होत चीकने पात.. लंबी-लंबी छोड़ने की आदत है तो आप सफल नेता बन सकते हैं. तुक्के मारने की आदत है, तो टेलीविजन पर ज्योतिषी का धंधा हिट हो जायेगा. बात को तोड़-मरोड़ कर पेश करना आता हो और सफेद को स्याह सिद्ध करने में सिद्धस्थ हों, […]

।। अखिलेश्वर पांडेय।।

(प्रभात खबर, जमशेदपुर)

होनहार बिरवान के होत चीकने पात.. लंबी-लंबी छोड़ने की आदत है तो आप सफल नेता बन सकते हैं. तुक्के मारने की आदत है, तो टेलीविजन पर ज्योतिषी का धंधा हिट हो जायेगा. बात को तोड़-मरोड़ कर पेश करना आता हो और सफेद को स्याह सिद्ध करने में सिद्धस्थ हों, तो वकालत से उम्दा धंधा कोई नहीं. कानून आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता. आप चाहें पुलिस का भी सिर फोड़ें या कानून तोडं़े, सब जायज है. वकालत का धंधा न चल रहा हो, तो राजनीति में आ जाओ. थोड़े जुगाड़ू हैं, तो मंत्री पद पा जाओ. एक बार मंत्री बन गये, तो बाबा रामदेव हो या जनता, किसी को भी चराना बायें हाथ का खेल है. इसमें शरमाना कैसा.

हमारे देश में ब्रेन ड्रेन (प्रतिभा पलायन) को तो बड़ी प्रतिष्ठा की नजर से देखा जाता है. एमबीए करनेवाले 60 प्रतिशत से ज्यादा इंजीनियरिंग से आये हुए होते हैं.एक्टिंग में हाथ आजमाने के बाद कई लोग राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी बन गये, तो कई खिलाड़ी मंजे हुए राजनेता बन चुके हैं. कई लोग डकैती का धंधा मंदा पड़ा, तो साधु बन गये. आज बड़े ठाठ से गेरुआ पहने अहिंसा पर प्रवचन पर प्रवचन ठोंके जा रहे हैं. कई हथियार छोड़ राजनीति में आ गये. उनका कहना है कि धंधा बुनियादी तौर पर तो वही है बस ड्रेस कोड बदल गया है. काली पगड़ी की जगह, पार्टी अनुसार नीली, केसरिया, सफेद या हरी हो गयी है.घोड़ों की बजाय गाड़ियां हैं. खुद बंदूकें उठाने की आवश्यकता नहीं, सरकारी बॉडीगार्ड मिले हैं. गैंग को गैंग नहीं, अब पार्टी बोला जाता है. बीहड़ के स्थान पर विधानसभा या लोकसभा में चौकड़ी भरनी है.

अपनी सेटिंग हो गयी तो बेटे की चिंता सताने लगती है. पुत्र पढ़ाई में गोते लगा रहा है. न इधर का है न उधर का. तो क्या..फिकर नॉट! आज हवा युवा-शक्ति की चल रही है. बहती गंगा में जिसने हाथ नहीं धोये या बयार का रु ख नहीं पहचाना, आज उससे बड़ा बेवकूफ कोई नहीं. बेटे को किसी राजनीतिक पार्टी का प्राथमिक सदस्य बनवा दो. एक बार दाखिला मिल गया, तो बस उसका कॅरियर पक्का. क्या कहा- कोई पार्टी घास नहीं डालती. नो प्रॉब्लम. उसे निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर खड़ा करवा दो. प्रशासन सिक्योरिटी देगा, मीडिया पब्लिसिटी. हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा. वोट डलने से एक दिन पहले किसी बड़े उम्मीदवार के पक्ष में बैठ जाओ. नाम के साथ दाम की वसूली अलग से होगी. अगर इतना भी न करना चाहें, तो भी निराश होने की कोई बात नहीं. एक अचूक उपाय और है. बेटे को दो-चार धार्मिक पुस्तकें पढवाइये, 10-20 पारंपरिक भजन रटवाइये, किसी भी धार्मिक चैनल से बात करिए. बस 80-90 साल के भक्तगण भी उसके लेटेस्ट गानों पर आधारित भजनों पर सलमान और करीना की तरह फुदकने से तब तक नहीं रु केंगे जब तक किसी की डिस्क स्लिप न हो जाए.

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