अगलगी रोकने के उपाय होने चाहिए

गरमी का मौसम आते ही अगलगी की घटनाएं (खासकर देहाती इलाकों में) काफी बढ़ जाती है. बिहार-झारखंड में पिछले कुछ दिनों में अगलगी में एक दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो गयी है. शनिवार को गिरिडीह जिले में चार मासूम बच्चे जिंदा जल गये. हर साल सैकड़ों जानें जाती हैं. हजारों लोग बेघर होते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 31, 2014 3:12 AM

गरमी का मौसम आते ही अगलगी की घटनाएं (खासकर देहाती इलाकों में) काफी बढ़ जाती है. बिहार-झारखंड में पिछले कुछ दिनों में अगलगी में एक दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो गयी है. शनिवार को गिरिडीह जिले में चार मासूम बच्चे जिंदा जल गये. हर साल सैकड़ों जानें जाती हैं. हजारों लोग बेघर होते हैं. सवाल उठता है कि इन लोमहर्षक घटनाओं पर लगाम कैसे लगे?

इसका आज तक शिद्दत के साथ कोई उपाय नहीं ढूंढ़ा जा रहा है. यही वजह है कि स्थिति काफी भयावह है. अगलगी की घटनाओं से निबटने के परंपरागत तरीके ही अपनाये जाते हैं. अग्निशमन सेवाएं जिला मुख्यालयों तक ही सीमित हैं. विभाग का विस्तारीकरण जरूरी हो गया है. यदि इन सुविधाओं को प्रखंड स्तर तक सुलभ बनाया जा सके तो जन, धन की क्षति काफी हद तक कम की जा सकती है. जनता को जागरूक बनाने की दिशा में भी कारगर प्रयास अब तक नहीं हुआ है. आजादी के बाद से किसी सरकार ने इस दिशा में ध्यान नहीं दिया.

मौसमी आपदाओं की तरह इससे निबटने की भी कारगर व्यवस्था की जरूरत है. ध्यान रहे कि अगलगी कोई प्राकृतिक आपदा नहीं, अपितु मानवीय कारणों से उत्पन्न हादसा है और इसे सहीइंतजाम व सतर्कता से काबू में किया जा सकता है. आग से बचाव के तरीकों और सावधानी के बारे में लोगों को जागरूक किया जा सकता है. शहरों में आग लगने पर स्थिति और भी भयावह होती है. जगह की कमी के चलते अग्निशमन सेवाओं की पहुंच इतनी आसान नहीं होती. बिजली के शॉर्ट सर्किट या गैस सिलिंडरों की वजह से लगी आग से निबटना तो और मुश्किल होता है.

बड़ी इमारतों में दम घुटने की वजह से भी मौत होने का खतरा बना रहता है. इनके अलावा बर्न इंज्युरी के इलाज के लिए पर्याप्त सुविधाओं से युक्त अस्पतालों का नहीं होना, मौत के आंकड़े बढ़ने की सबसे बड़ी वजह है. देखा जाये तो इस मामले में झारखंड व बिहार के लगभग सभी इलाके सुविधाहीन हैं. संताल परगना में तो न कोई ऐसा विशिष्ट अस्पताल है और न ही कहीं कोई विशेष व्यवस्था. आश्चर्य है कि इतनी घटनाओं के बावजूद चुनाव की इस घड़ी में किसी भी राजनीतिक दलों के लिए यह मुद्दा नहीं बन पाया है. इस मसले पर लोगों की सजगता भी जरूरी है.

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