प्रात-स्मरणीय व्हॉट्सपनीय
आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार पुराने वक्त के लोग याद कर सकते हैं कि उनके बुजुर्ग बताते थे कि अच्छे बच्चे सुबह चार बजे उठ कर पढ़ते हैं. अब कोई चार बजे उठ कर पढ़ रहा है, तो उसे हर हाल में अच्छा बच्चा समझने की भूल ना कर लीजिये. तमाम इंटरनेट डेटा कंपनियों ने सस्ते […]
आलोक पुराणिक
वरिष्ठ व्यंग्यकार
पुराने वक्त के लोग याद कर सकते हैं कि उनके बुजुर्ग बताते थे कि अच्छे बच्चे सुबह चार बजे उठ कर पढ़ते हैं. अब कोई चार बजे उठ कर पढ़ रहा है, तो उसे हर हाल में अच्छा बच्चा समझने की भूल ना कर लीजिये. तमाम इंटरनेट डेटा कंपनियों ने सस्ते प्लान चला रखे हैं- रात एक बजे से सुबह पांच बजे तक बहुत ही सस्ता इंटरनेट मिलता है.
सुबह चार बजे उठ कर कोई कोई प्रात-स्मरणीय और व्हाॅट्सपनीय को भी याद कर रहा हो सकता है, सन्नी के वीडियो भी शेयर कर रहा हो सकता है. सुबह चार बजे सिर्फ प्रार्थनाएं और गुड मार्निंग ही शेयर नहीं होता. इसलिए सस्ते इंटरनेट को धन्यवाद दें. पुराने जमाने के लोग आशिकी में जागते थे कि नींद नहीं आती, अब तो सस्ते इंटरनेट से आशिकी जगा रही है. मेरा देश बदल रहा है.
सस्ते इंटरनेट ने एक तरह से समतावादी समाज की स्थापना कर दी है, कुछ सालों पहले लास एंजेल्स के बंदे दावा करते थे कि उनके मोबाइल पर सन्नी लियोनी आती हैं, अब तो लहकमपुर के नौजवान भी सन्नी लियोनी को मोबाइल में लिये घूमते हैं, सस्ते इंटरनेट को धन्यवाद दें. लहकमपुर के नौजवान भी पामेला एंडरसन पर बखूबी विमर्श कर सकते हैं, पामेला एंडरसन पर विमर्श की काबिलियत अब सिर्फ अमेरिकनों के पास ही नहीं है.
अब सुबह चार बजे सिर्फ भगत लोग ही नहीं जागते हैं, उल्लू, आशिक, चोर और सस्ते इंटरनेट के यूजर भी जागते हैं. मुल्क की युवा शक्ति सस्ते इंटरनेट से प्रेरणा ले रही है और प्रेमालाप व्हाॅट्सअप पर हो रहा है. इंटरनेट ने एक काम तो किया है कि जिनकी शक्ल-अक्ल सचमुच की दुनिया में एक मिनट बात करने काबिल नहीं है, वो भी व्हाॅट्सएप-फेसबुक प्रोफाइल पर जॉन अब्राहम से लेकर नाेम चोम्स्की की फोटो लगा कर खुद को सुपर स्मार्ट-महान बुद्धिजीवी तो दिखा ही सकते हैं.
फेसबुक के प्रोफाइल फोटो में लगभग हर नौजवान जाॅन अब्राहम टाइप स्मार्ट है और हर बुद्धिजीवी नाेम चोम्स्की के आसपास का है. फेसबुक ने भी एक तरह से समतावाद की स्थापना की है. फर्जी प्रोफाइल फोटो डालते ही यहां एकैदम समता आ जाती है, हर नौजवान जाॅन अब्राहम हो जाता है.
वैसे मुल्क कमाल है, टमाटर महंगे हो रहे हैं, इंटरनेट सस्ता हो रहा है. यह मुल्क कृषि-प्रधान देश है, यह बयान अब आउटडेटेड है, अब तो मुल्क इंटरनेट प्रधान है. टमाटर महंगे हैं तो क्या हुआ, इंटरनेट पर सर्च करके टमाटर की फोटू देखें और टमाटर फील करें.
काश कोई बड़ा कारोबारी टमाटर के धंधे में उतर आये और 1,500 रुपये लेकर तीन साल तक सैट रेट से टमाटर सप्लाई का प्लान आॅफर कर दे.