अनुज कुमार सिन्हा
भारत की बेटियाें से अंतिम क्षणाें में कुछ चूक हुई आैर वह वर्ल्ड कप जीतते-जीतते रह गयी. इतिहास रचते-रचते रह गयी. सिर्फ नाै रन से सपना टूट गया. पर यह वक्त गम मनाने का नहीं है.
तारीफ कीजिए भारत की इन बेटियाें का, जिसने दुनिया के कई देशाें काे हराते हुए फाइनल तक का सफर ताे पूरा किया. वर्ल्ड कप ताे भारत लगभग आ ही गया था,लेकिन इंग्लैंड की श्रबसाेल ने (छह विकेट लेकर) हमारे मुंह से जीत छीन ली. हर किसी काे दुख ताे हुअा, क्याेंकि जीत के काफी करीब पहुंच कर टीम इंडिया हारी. जब भारत का स्काेर चार विकेट पर 191 रन था, ताे वर्ल्ड कप जीतने के लिए सिर्फ 38 रन चाहिए था. छह विकेट हाथ में थे. गेंद भी 43 थी, पूनम राउत बल्लेबाजी कर रही थी. यानी जीत तय थी. लगा था कि राउत शतक बनायेगी. शान से जीत दिला कर लाैटेगी, लेकिन एक मनहूस गेंद ने सभी का सपना ताेड़ दिया. 86 रन बनाने के बाद राउत आउट हुई आैर वहीं से शुरू हुआ भारतीय टीम का पतन. 10 रन के अंदर चार विकेट गिर गये. जब स्काेर सात विकेट पर 201 हुअा, ताे लगा कि अब हार जायेंगे.
लेकिन इस माैके पर पर दीप्ति शर्मा आैर शिखा पांडेय ने 17 रन की साझेदारी कर कुछ उम्मीद जगा दी थी. अंतिम सात आेवर भारत का नहीं था. एक के बाद एक विकेट गिरते जा रहे थे आैर सपना टूटते जा रहा था. हर विकेट के बाद एक आवाज उठती-काश, हरमनप्रीत कुछ देर आैर खेल जाती. राउत का विकेट नहीं गिरता. अंतिम सात आेवर काे छाेड़ दें, ताे पूरे मैच में भारतीय टीम हावी रही आैर वह जीत की हकदार थी, लेकिन किस्मत भारत के साथ नहीं थी. ठीक है इस मैच में मिताली राज नहीं चली.
पर इसी मिताली ने इस वर्ल्ड कप में कई इतिहास रचे हैं. दुनिया में सबसे ज्यादा रन बनानेवाली महिला क्रिकेट खिलाड़ी ताे मिताली ही बनी है. यह क्या कम बड़ी उपलब्धि है. इसलिए फाइनल के परिणाम काे भूल कर इसके अच्छे क्षणाें काे याद रखिए. यह कह कर संताेष कीजिए कि इस हार के बावजूद भारतीय लड़कियाें ने क्रिकेट में अपना लाेहा मनवाया है आैर इसलिए इस टीम की, इसके हर सदस्य की तारीफ करनी चाहिए, मनाेबल बढ़ाना चाहिए. फाइनल में खेलने के लिए सेमीफाइनल जीतना पड़ता है. यह काम ताे भारतीय लड़कियाें ने किया था.
अॉस्ट्रेलिया के खिलाफ क्या जीत थी. हरमनप्रीत काैर ने 171 रन की क्या पारी खेली थी. फाइनल में भी उसने अर्द्धशतक बनाया. राउत ने फाइनल में 86 रन की पारी खेली. ऐसी पारियाें के लिए ये लड़कियां शाबासी की हकदार हैं. इस मैच का महत्व काफी था. पूरा देश इन लड़कियाें का मनाेबल बढ़ा रहा था. लग रहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र माेदी खुद मैच देख रहे थे. जब भी इन बेटियाें ने कमाल दिखाया, प्रधानमंत्री ने ट्विट कर इनका मनाेबल बढ़ाया.
सभी काे भराेसा था कि लॉर्ड्स पर आज 25 जून 1983 वाला करिश्मा दाेहराया जायेगा. उसी दिन कपिल की टीम ने पहली बार भारत काे वर्ल्ड कप दिलाया था. इस हार के बावजूद यह कहा जा सकता है कि भारत की बेटियां अब खेलाें में देश का नाम राैशन कर रही हैं.
याद कीजिए गत वर्ष यानी 2016 का आेलिंपिक. भारत काे सिर्फ दाे मेडल मिले आैर दाेनाें ही मेडल (एक रजत आैर एक कांस्य) भारत की लड़कियाें ने ही जीता. जीतनेवाली थी बैडमिंटन में पीवी सिंधु आैर कुश्ती में साक्षी मल्लिक. टेनिस आैर बैडमिंटन में भारतीय लड़कियां एक के बाद एक कप जीत रही हैं. यानी भारत की ये बेटियां दुनिया काे यह बता रही है कि वह किसी मामले में किसी से कमजाेर नहीं है.