यह तो होना ही था : अप्रत्याशित नहीं था इस्तीफा

हरिवंश वरिष्ठ पत्रकार व राज्यसभा सांसद जो नीतीश कुमार को नजदीक से जानते हैं, उनके लिए यह अप्रत्याशित घटना नहीं है. वह उन राजनीतिक नेताओं की पृष्ठभूमि से आते हैं, जिनकी संख्या लगातार देश के राजनीतिक क्षितिज पर दुर्लभ हो रही है. बहुत धैर्य और संयम के साथ, उन्होंने प्रतीक्षा की कि जिन लोगों पर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 27, 2017 6:13 AM
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हरिवंश
वरिष्ठ पत्रकार व राज्यसभा सांसद
जो नीतीश कुमार को नजदीक से जानते हैं, उनके लिए यह अप्रत्याशित घटना नहीं है. वह उन राजनीतिक नेताओं की पृष्ठभूमि से आते हैं, जिनकी संख्या लगातार देश के राजनीतिक क्षितिज पर दुर्लभ हो रही है.
बहुत धैर्य और संयम के साथ, उन्होंने प्रतीक्षा की कि जिन लोगों पर गंभीर आरोप लगे हैं, वे बिंदुवार उनका जवाब जनता के बीच दें. ऐसा वह पहली बार कर या सोच नहीं रहे थे. उनकी सरकार में रहते जिन लोगों पर आरोप लगा, तुरंत फैसला किया. गठबंधन दल के किसी व्यक्ति पर आरोप लगा, वह अगर सरकार में हुए, तो उन्हें भी जाना पड़ा. इस तरह महागठबंधन के दलों के वरिष्ठ लोगों से अपेक्षा थी कि वे ऐसे सवालों पर कदम उठायेंगे. ऐसे मुद्दों पर नीतीश कुमार का स्वभाव और मिजाज सार्वजनिक रहा है. वह कोई समझौता नहीं करेंगे.
जदयू के प्रवक्ताओं ने साफ तौर पर इस अपेक्षा को स्पष्ट किया था कि जो गंभीर आरोप लगे हैं, उनके प्रामाणिक जवाब जनता के बीच स्पष्ट होने चाहिए. अपनी स्थिति नीतीशजी ने राहुल गांधी को स्पष्ट कर दी थी. इस्तीफा देने के ठीक पहले उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व बिहार के प्रभारी सीपी जोशी को सूचित किया. इस तरह महागठबंधन के धर्म का धैर्यपूर्वक पालन किया. पर, जो लोग उन्हें जानते हैं, उन्हें स्पष्ट रहा होगा कि पद के लिए वह अपनी मूल नीतियों, सिद्धांत और मिजाज से समझौता नहीं करेंगे. आज वह जयप्रकाश आंदोलन के सबसे कद्दावर नेता के रूप में अपनी जगह बना चुके हैं.
लोहिया और जयप्रकाश, जो आजीवन परिवारवाद और राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़े, उनके सिद्धांतों-आदर्शों पर चलने वाले नीतीश कुमार अकेले हैं, जिनकी धवल राजनीतिक छवि पर कोई दाग नहीं है. यह कदम उठा कर, देश के वह विशिष्ट नेता बन गये हैं, जो नैतिक राजनीति के लिए सत्ता व गद्दी ठुकरा सकता है. उनके परिवार का कोई सदस्य राजनीति में नहीं है. वह बिहार में न्याय के साथ विकास के लिए सभी वर्गों के लिए काम करते रहे हैं.
बिहार जो कुशासन व अविकास का पर्याय बन गया था, उसे बदलने का श्रेय तो नीतीश कुमार के नाम ही है. वह बहुत साफ और स्पष्ट राजनीति करते रहे हैं. नोटबंदी के समर्थन का जब उन्होंने फैसला किया, तो अपने साथ के बड़े घटक दलों को तत्काल इसकी सूचना दी. साथ ही बेनामी संपत्ति के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. जेपी आंदोलन से निकले व्यक्ति से यही अपेक्षा थी कि सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को वह आगे बढ़ायेंगे.
आज की राजनीति में नीतीश कुमार सिर्फ यह कहने वाले अकेले राजनेता हैं कि कफन में जेब नहीं होती, बल्कि अपने जीवन आचरण में वह इसको जीते हैं. उनके कामकाज में कहीं कोई संवादहीनता नहीं है. सामंती बिहार के मिजाज को बदलने के लिए महिलाओं को पंचायत चुनाव में 50 फीसदी आरक्षण, नौकरी में महिलाओं को 35 फीसदी आरक्षण, यह बहुत साहस का काम था. 95 हजार अपराधियों को, जिनमें बड़े-बड़े दिग्गज थे, जेल भेजना, असाधारण उपलब्धि रही है. विकास के मोरचे पर बिहार का औसत जीडीपी ग्रोथ रेट, बड़े राज्यों के बीच दशकों सबसे अधिक रहा.
अल्पसंख्यकों के हित, कल्याण व सुरक्षा के लिए उन्होंने जो साहसिक कदम उठाये, उनकी लंबी सूची है. उन्हें लगा कि बिहार के राज्यपाल रहे माननीय कोविंद जी का राष्ट्रपति बनना बिहार के लिए गौरव की बात होगी, तो बेहिचक फैसला लिया. भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष से ही उनका उदय हुआ (जेपी आंदोलन). शुरू से ही देश के सवाल पर उनकी नीति बहुत साफ रही है. चाहे वह एनडीए में रहे हों या महागठबंधन से जुड़े रहे हों, वह विदेश नीति पर और सेना पर कभी सवाल नहीं उठाते.
ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर वह केंद्र सरकार के साथ खड़े दिखते हैं, क्योंकि बुनियादी तौर पर वह मानते हैं कि देश एक नहीं रहेगा, तो अंदर राजनीति कैसे होगी? बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में उनका इस्तीफा, राजनीतिक शुचिता और सार्वजनिक जीवन में पारदर्शी आचरण को स्थापित करने वाला साहसिक कदम है. भारतीय राजनीति पर इसका गहरा असर होगा.
(यह िटप्पणी भाजपा के समर्थन देने से पहले िलखी गयी है.)
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