जन-प्रतिनिधियों की गलती

विश्वनाथ सचदेव वरिष्ठ पत्रकार हाल ही में देश के सर्वोच्च पद के लिए मतदान हुआ. इसमें मतदाता वे सांसद और विधायक थे, जिन्हें हमने देश की शासन-व्यवस्था की जिम्मेवारी सौंप रखी है. उनके विवेक से चुना व्यक्ति आज राष्ट्रपति-भवन में है. सांसद और विधायक अपने विवेक से मतदान करने के लिए स्वतंत्र होते हैं. यह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 28, 2017 6:20 AM
विश्वनाथ सचदेव
वरिष्ठ पत्रकार
हाल ही में देश के सर्वोच्च पद के लिए मतदान हुआ. इसमें मतदाता वे सांसद और विधायक थे, जिन्हें हमने देश की शासन-व्यवस्था की जिम्मेवारी सौंप रखी है. उनके विवेक से चुना व्यक्ति आज राष्ट्रपति-भवन में है. सांसद और विधायक अपने विवेक से मतदान करने के लिए स्वतंत्र होते हैं.
यह सही है कि चुनाव के मुख्य प्रत्याशी राजीतिक दल ही चुनते हैं, और सामान्यत: परिणाम संसद और विधानसभाओं में राजनीतिक दलों के संख्या-बल के अनुसार ही होता है, लेकिन मतदाता को अपने विवेक से, अंतरात्मा की आवाज से, मतदान का अधिकार होता है. मतदाता सांसदों और विधायकों से यह अपेक्षा तो की ही जानी चाहिए कि मतदान में पूरी सावधानी बरतेंगे. लेकिन तथ्य यह भी है कि राष्ट्रपति-पद के चुनाव में इकहत्तर वोट अवैध घोषित हुए! इसका मतलब है हमारे सांसदों और विधायकों में से इकहत्तर ऐसे हैं, जिन्होंने गलत ढंग से वोट डाला. यह गलती अपराध की श्रेणी में आती है. गलती हो जाती है, अपराध किया जाता है.
यह मानने को मन नहीं करता कि हमारे इन निर्वाचित प्रतिनिधियों को वोट डालना नहीं आता. इस मतदान में सांसदों-विधायकों को एक विशेष स्याही वाली कलम से राष्ट्रपति-पद के लिए अपनी पहली पसंद चिह्नित करनी थी. क्या हमारे सांसद या विधायक यह सामान्य-सा काम सही ढंग से नहीं कर सकते? यदि ऐसा नहीं है, तो मतपत्र के अवैध हो जाने के दो कारण हो सकते हैं: पहला, यह कि जान-बूझ कर मतदाता ने ऐसा कुछ किया कि मतपत्र अवैध हो जाये, और दूसरा यह कि अपेक्षित सावधानी नहीं बरती गयी. यह दोनों ही कारण शर्मनाक हैं. शर्म उनको भी आनी चाहिए, जिन्होंने ऐसा किया और हमें भी आनी चाहिए कि हमने ऐसे प्रतिनिधि चुने.
विधायक और सांसद शासन चलाने के लिए चुने जाते हैं. ये शासन की नीतियां बनाते हैं और यह भी सुनिश्चित करते हैं कि उनकी बनायी नीतियों के अनुसार शासन चले. बावजूद इसके कि सामान्यत: ये दलीय अनुशासन से बंधे होते हैं, इनसे अपेक्षा की जाती है कि ये अपने विवेक का उपयोग करके शासन को सही दिशा में चलायेंगे. बहुमत इनके मत से बनता है और सरकारें इनके सहारे चलती हैं.
नीतियां इनके मतों से निर्धारित होती हैं. हमारे ये चुने हुए प्रतिनिधि हमारा प्रतिनिधित्व ही नहीं करते, ये हमारे पथ-प्रदर्शक भी होते हैं. पंचायत से लेकर राष्ट्रपति-भवन तक देश की आम जनता की भागीदारी का प्रतीक होते हैं हमारे ये प्रतिनिधि. ऐसे में जब इनकी कोई गफलत सामने आती है तो दुख होता है. इसे न तो गलती कहा जाना चाहिए और न ही लापरवाही, यह सचमुच एक गंभीर अपराध है.
होती है मतदाता से भी गलती, जब वह सही व्यक्ति का चुनाव नहीं करता. यह सही है कि उम्मीदवारों का चयन मुख्यत: राजनीतिक दल ही करते हैं और इस चयन का सबसे बड़ा आधार व्यक्ति के जीतने की संभावना होती है, लेकिन ताले की चाबी तो मतदाता के हाथ में होती है.
उसके वोट के बल पर ही कोई व्यक्ति विधानसभा या संसद में जाकर बैठता है. यदि मतदाता यह निर्णय ले ले कि वह गलत व्यक्ति को वोट नहीं देगा, तो गलत व्यक्ति सांसद या विधायक बन ही नहीं सकता. सच तो यह है कि मतदाता की शह पर ही राजनीतिक दलों को गलत व्यक्तियों को अपना उम्मीदवार बनाने का हौसला मिलता है. मतदाता की इसी उदासीनता या गलती के फलस्वरूप आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति भी विधायक या सांसद बन जाते हैं.
राष्ट्रपति पद के लिए हुआ मतदान गोपनीय होता है. इसीलिए यह पता लगना संभव नहीं है कि किस सांसद का वोट अवैध घोषित हुआ है. लेकिन, यह तो जग-जाहिर है कि इक्कीस सांसदों के मत-पत्र अवैध पाये गये हैं.
यानी इन सांसदों को या तो वोट देना नहीं आता या फिर इन्होंने जान-बूझ कर गलत तरीके से वोट दिये हैं. सवाल उठता है, ऐसे प्रतिनिधियों से यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वे हमारा वर्तमान सुधारने या हमारा भविष्य सुनहरा बनाने के दायित्व का पालन सही ढंग से कर सकते हैं?
वैसे, सांसदों अथवा विधायकों का गैर-जिम्मेवाराना व्यवहार कोई नयी बात नहीं है. आये दिन हम संसद और विधानसभाओं में ऐसे दृश्य देखते हैं, जिनके औचित्य पर प्रश्नचिह्न लगना ही चाहिए. पीठासीन अधिकारियों की बेचारगी भी आये दिन दिखती है. सदन गंभीर विचार-विमर्श के लिए होता है.
सत्ता-पक्ष और विपक्ष दोनों से यह उम्मीद की जाती है कि वे उत्तरदायी आचरण का उदाहरण पेश करेंगे. पर अक्सर ऐसा होता नहीं. अवैध मतदान भी अंतत: इसी अनुत्तरदायी आचरण का ही एक उदाहरण है. हमारे निर्वाचित प्रतिनिधि कब यह समझेंगे कि उनके द्वारा प्रस्तुत उदाहरण हमारे जनतंत्र की सफलता-असफलता का ही प्रमाण नहीं हैं, आनेवाले कल की आधारशिला भी है? सदन में अनुचित व्यवहार करके वे जो गलती करते हैं, वह गलती नहीं अपराध होता हैö, जिसकी सजा हमारे वर्तमान के साथ-साथ हमारा भविष्य भी भुगतता है!

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