बिन पानी सब सून

कविता विकास टिप्पणीकार रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून, पानी गये न ऊबरै, मोटी मानुष चून. ‘श्लेष अलंकार की परिभाषा समझाते हुए जब शिक्षक रहीम के इस दोहे को बताते थे, तब नंबर पाने के मकसद से इसे हम समझ लेते थे. लेकिन, इस दोहे की सार्थकता अब समझ में आ रही है, जब […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 2, 2017 6:24 AM

कविता विकास

टिप्पणीकार

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून, पानी गये न ऊबरै, मोटी मानुष चून. ‘श्लेष अलंकार की परिभाषा समझाते हुए जब शिक्षक रहीम के इस दोहे को बताते थे, तब नंबर पाने के मकसद से इसे हम समझ लेते थे. लेकिन, इस दोहे की सार्थकता अब समझ में आ रही है, जब घर की चारदीवारी से निकल कर पानी गांव-शहर और देश-विदेश में चर्चा का विषय बन चुका है.

जीवन में रंगों का बहुत महत्व है, पर रंग सर्वत्र व सदा हों, जरूरी नहीं. बेरंग पदार्थ भी अमोल होते हैं. शायद इसलिए कुदरत के इस नायाब तोहफे को बिना रंग का रखा गया है.

जो सहजता से किसी भी रूप में ढल कर नया आकार ले ले, वह पानी है. जो किसी भी रंग में रंग जाये, वह पानी है. जीवन में सामंजस्य की अद्भुत शक्ति और लचीले दृष्टिकोण की केंद्रिता को समझ कर संवेदनाओं को तराशना कोई पानी से सीखे. चराचर प्राणियों का जीवन पानी है, क्योंकि पानी से ही जीवन का पोषण और संवर्धन होता है. अंतरिक्ष में यह मेघ रूप में और जमीन पर नदी-निर्झर में प्रवाहमान है.

जल है तो जंगल है, जंगल है तो जल है. जल है तो जहान है, इसलिए तो वह भुवन कहलाता है. यह सबको प्रक्षालित कर शीतल और पवित्र करता है.

हमारे शरीर में औसतन 60 से 70 प्रतिशत पानी है. धरती में 78 प्रतिशत पानी है. क्षिति, जल, पावक, अग्नि और अंबर, इन पंचमहाभूतों से पर्यावरण भी बनता है और प्राणियों के भौतिक पिंड की संरचना भी होती है.

पानी का सीधा संबंध हमारे सुख-दुख से है, इसलिए दोनों अवस्थाओं में आंख से पानी बह जाता है. अाज जब रिश्तों की मर्यादा खो रही है, तो किसी आत्मीय की मृत्यु या बेटी की विदाई के समय भी बमुश्किल आंसू बहता है. आंख में पानी बना रहे, इसके लिए आवश्यक है कि मन में संवेदनशीलता बनी रहे. अति परिश्रम व विपद में ललाट पर पानी की बूंदें छलछला जाती हैं. कहीं यह स्वेद है, कहीं आंसू, पर है तो पानी ही.

पानी के पारदर्शी परतों को सच्चाई से जोड़ कर देखा जाता है. यह मानव-कल्याण के लिए निःस्वार्थ भाव से बहता रहेगा. जब इसके प्रवाह को रोक दिया जाता है, तब यह पंक बन जाता है. गंदा-मटमैला पानी मर्त्यमान होता है.

इसलिए पानी को बचा लें. बरसात के पानी में भीग कर पानी-पानी हो जाना रोमांचक है. यह रोमांच बना रहे, इसलिए स्वार्थवश पानी को बांधने का कोई प्रयास न करे, नहीं तो हम आजीवन अपने कुकर्म पर पानी-पानी होते रहेंगे. गलत दिशा से वापस लौटने में कभी देर नहीं होती. सघन वन हो, रंग-बिरंगी तितलियां, ढेर सारी चिड़ियां, विविध वन्य-प्राणी, चहुंओर हरियाली और आंखों में जरा सा पानी. और क्या चाहिए जीने के लिए!

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