मैन्युफैक्चरिंग में कमजोरी
आर्थिक मोर्चे पर सरकार नये प्रयोग करे, तो उसके नतीजों को लेकर बाजार का आशंकित होना स्वाभाविक है. वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के बारे में सरकार ने वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण और उपभोग से जुड़े तमाम पक्ष को बार-बार आश्वस्त किया है कि कर प्रणाली में सुधार के दूरगामी फायदे होंगे और […]
आर्थिक मोर्चे पर सरकार नये प्रयोग करे, तो उसके नतीजों को लेकर बाजार का आशंकित होना स्वाभाविक है. वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के बारे में सरकार ने वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण और उपभोग से जुड़े तमाम पक्ष को बार-बार आश्वस्त किया है कि कर प्रणाली में सुधार के दूरगामी फायदे होंगे और लाभ सभी को प्रत्यक्ष दिखायी देगा, फिर भी बाजार में सवाल बने रहे.
जीएसटी को लेकर उपजी आशंका का एक असर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर दिखायी दे रहा है, जहां उत्पादन प्रभावित हुआ है. एक सर्वेक्षण के अनुसार, एक जुलाई यानी जीएसटी के लागू होने के बाद से कंपनियों ने अपने उत्पादन में कटौती की है. कंपनियों के डिस्पैच की गति भी धीमी हुई है और वे नये आॅर्डर लेने में विशेष उत्साहित नहीं हैं.
विनिर्माण और खरीद की स्थिति के आकलन से जुड़ा मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआइ) पिछले लगभग नौ साल के मुकाबले सबसे ज्यादा गिरावट की स्थिति ( 47.6 अंक) दिखा रहा है. पीएमआइ किसी भी समय 50 से कम रहे तो माना जाता है कि विनिर्माण क्षेत्र सिकुड़ा है और उत्पादन अपेक्षित गति से नहीं हो रहा है. इस क्षेत्र की इतनी खराब स्थिति नोटबंदी के तत्काल बाद भी नहीं थी. बीते दिसंबर में पहली बार (2016 में) पीएमआइ 50 के अंक से नीचे गिर कर 49.6 पर पहुंचा था.
उस समय नकदी की किल्लत थी और माना गया कि अर्थव्यवस्था के औपचारिक क्षेत्र में नकदी का प्रवाह बाधित होने से उत्पादन तात्कालिक तौर पर गिरा है. लेकिन छह महीने बाद भी स्थिति में सुधार की जगह गिरावट दिख रही है, जबकि नकदी की किल्लत पहले जैसी नहीं रही है.
इस स्थिति को रिजर्व बैंक के नये आंकड़ों के साथ मिला कर पढ़ा जाना चाहिए. रिजर्व बैंक के साप्ताहिक आंकड़ों से यह तथ्य सामने आया है कि 26 मई, 2017 तक सकल बैंक ऋण की सालाना बढ़वार 3.5 फीसदी रही, जबकि 27 मई, 2016 को यह दर 8.0 फीसदी थी. इससे संकेत मिलता है कि उत्पादक अनुकूल स्थिति न देख कर बैंकों से कर्ज हासिल करने को लेकर उत्साहित नहीं हैं, वे नये निवेश से बच रहे हैं. विनिर्माण क्षेत्र में उत्पादन की गिरावट का सीधा असर नौकरियों पर पड़ेगा. विभिन्न आंकड़ों का संकेत है कि रोजगार के नये अवसर अपेक्षित गति से तैयार नहीं हो रहे हैं.
अर्थव्यवस्था में सालाना सवा करोड़ आबादी श्रम-बाजार में प्रवेश करती है और इस आबादी के लिए रोजगार के अवसरों का पर्याप्त संख्या में न होना वांछित आर्थिक वृद्धि तथा सामाजिक प्रगति में बाधक है. ऐसे में सरकार को संतुलित और सधा हुआ कदम उठाने की जरूरत है, ताकि नकारात्मक आर्थिक और वित्तीय स्थिति में सुधार हो सके.