पर्यावरण बने प्राथमिकता

यह आम समझ है कि पर्यावरण और प्राकृतिक स्रोतों की समुचित सुरक्षा की परवाह किये बगैर आर्थिक विकास करना आत्मघाती है. जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान के वैश्विक खतरे की चुनौती से निपटने के लिए पर्यावरण को लेकर सचेत रहना बेहद जरूरी है. लेकिन, भारत समेत दुनिया के अनेक देशों में प्राकृतिक संसाधनों के सीमित […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 4, 2017 6:39 AM

यह आम समझ है कि पर्यावरण और प्राकृतिक स्रोतों की समुचित सुरक्षा की परवाह किये बगैर आर्थिक विकास करना आत्मघाती है. जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान के वैश्विक खतरे की चुनौती से निपटने के लिए पर्यावरण को लेकर सचेत रहना बेहद जरूरी है. लेकिन, भारत समेत दुनिया के अनेक देशों में प्राकृतिक संसाधनों के सीमित होते जाने के प्रति हमारी लापरवाही लगातार जारी है.

संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बान की मून ने सही कहा है कि जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए हमारे पास कोई वैकल्पिक राह नहीं हैं, क्योंकि हमारे पास कोई वैकल्पिक ग्रह भी नहीं है. प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन और अवैध खनन जैव विविधता के लिए तबाही तो लाते ही हैं, साथ ही करोड़ों लोगों के लिए बड़ी मानवजनित आपदा को भी निमंत्रित करते हैं.

सर्वोच्च न्यायालय ने जिस प्रकार ओड़िशा में बिना मंजूरी के लोहे और मैगनीज के खनन में लगी कंपनियों से 100 प्रतिशत का जुर्माना वसूलने का आदेश दिया है, निश्चित ही इसे सख्त संदेश के रूप में देखा जाना चाहिए. खंडपीठ ने मौजूदा चुनौतियों से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए केंद्र सरकार को दिसंबर से पहले राष्ट्रीय खनिज नीति में कारगर बदलाव करने का भी आदेश दिया है. भूमि अधिकारों, खनन लाइसेंस, खनिज खोज और परिवहन अनुमति के नियमों के उल्लंघन पर होनेवाले अवैध खनन के ज्यादातर मामले जोखिमों से भरे होते हैं.

इससे दूषित हवा, मिट्टी, भूमिगत जल, जैव विविधता और रासायनिक पदार्थों के रिसाव के खतरे वर्षों तक स्थानीय आबादी के जीवन को प्रभावित करते हैं. दुनियाभर में ऐसी समस्याओं की मार झेल चुके देशों से सबक लेते हुए इस पर अंकुश लगाने के लिए तत्काल प्रभावी पहल करने की आवश्यकता है. पर्यावरण प्रदूषण का सर्वाधिक दुष्प्रभाव गरीबों पर ही पड़ता है, लेकिन दुर्भाग्य से दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में किसी भी राजनीतिक दल के लिए यह कोई गंभीर मुद्दा नहीं है.

यह भी बड़े अफसोस की बात है कि कई वर्षों से केंद्र और राज्य सरकारें पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन बचाने का दावा करते हुए और विकास की आड़ में ऐसे कायदे-कानून बना रही हैं, जिनसे फायदे की जगह नुकसान ज्यादा हो रहा है. आम लोगों को खुद भी इस मसले पर जागरूक होकर सरकारों पर दबाव बनाना होगा तथा सरकारों को भी गंभीरता के साथ पर्यावरण की चिंता करने की जरूरत है.

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