भारत-चीन गतिरोध
डॉ सलीम अहमद राजनीतिक विश्लेषक बीते दिनों चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के लगभग 50 सैनिक उत्तराखंड के बाराहोती क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का उल्लंघन करते हुए भारतीय क्षेत्र में एक किमी अंदर तक आ गये, जिनको शीघ्र ही भारत-तिब्बत सीमा पुलिस द्वारा रोक लिया गया. भारत को उकसाने के लिए चीन नये-नये […]
डॉ सलीम अहमद
राजनीतिक विश्लेषक
बीते दिनों चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के लगभग 50 सैनिक उत्तराखंड के बाराहोती क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का उल्लंघन करते हुए भारतीय क्षेत्र में एक किमी अंदर तक आ गये, जिनको शीघ्र ही भारत-तिब्बत सीमा पुलिस द्वारा रोक लिया गया.
भारत को उकसाने के लिए चीन नये-नये अवसर तलाश रहा है, जिससे दोनों देशों के मध्य युद्ध की स्थिति बन जाये. चीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को धूमिल करना चाहता है. भारत और चीन एशिया के दो बड़े राष्ट्र हैं, जिनकी आबादी लगभग 2.7 अरब है और दोनों ही राष्ट्रों के पास परमाणु हथियार हैं. यदि इनके बीच युद्ध होता है, तो निश्चित रूप से विनाश बहुत बड़े पैमाने पर होगा, और दोनों ही देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. विद्वानों का मत है कि चीन भारत के साथ युद्ध नहीं करेगा, गतिरोध ऐसे ही बना रहेगा और यह सिर्फ चीन की राजनीतिक लफ्फाजी है, जो भारत पर दबाव बनाने के लिए की जा रही है. चीन घरेलू राजनीति में अपना वैश्विक दबदबा बनाये रखना चाहता है, इसलिए वह अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि को खराब नहीं करेगा. दूसरी ओर, भारत भी युद्ध की पहल अपनी तरफ से नहीं करेगा और न ही चीन के दबाव में आकर अपने सैनिकों को वापस बुलायेगा. बहरहाल, भारत और चीन को आपस में मिल कर और बात कर ही इसका कोई राजनयिक हल निकालना होगा.
पचपन वर्ष बाद भारत-चीन के मध्य डोकलामपठार को लेकर जो गतिरोध उत्पन्न हुआ है, उसके चलते दोनों के मध्य तनाव बढ़ता जा रहा है. डोकलाम पठार भूटान की संप्रभुता क्षेत्र के अंतर्गत आता है. यह एक भू-रणनीतिक त्रि-संधि क्षेत्र है, जहां भारत, भूटान और चीन तीनों देशों की सीमाएं मिलती हैं.
चीन इस भू-रणनीतिक क्षेत्र में सड़क बनाना चाहता है, जिससे वह इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा सके. भारत की भू-रणनीतिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से, इस क्षेत्र में चीन की उपस्थिति भविष्य में खतरा उत्पन्न कर सकती है. चिकन-नेक के नाम से मशहूर सिलीगुड़ी-गलियारा यहां से मात्र 21 किमी की दूरी पर है, जो उत्तर-पूर्व के राज्यों के लिए जीवन रेखा का काम करता है. इस क्षेत्र को चीनी प्रभाव से सुरक्षित रखना भारत के लिए बहुत ही जरूरी है.
भारत और भूटान के मध्य घनिष्ठ संबंध हैं. भूटान ने जब भारत से सहायता का आग्रह किया, तो भारत ने एक क्षण की भी देरी न करते हुए अपनी सेना की टुकड़ी को डोकलाम क्षेत्र की सुरक्षा के लिए भेज दिया.
एक ओर, भारत की इस सैन्य कार्यवाही से दोनों देशों के भू-रणनीतिक हितों की सुरक्षा को बल तो मिला, लेकिन दूसरी ओर, भारत-चीन के बीच गतिरोध उत्पन्न हो गया और दोनों देशों की सैनिक टुकड़ियां डोकलाम में कैंप लगा कर लगभग 150 मीटर की दूरी पर एक-दूसरे के आमने-सामने तैनात हैं. यदि समय रहते इसका कूटनीतिक हल नहीं निकाला गया, तो जिस तरह के हालात बन रहे हैं, उससे लगता है कि भारत-चीन के मध्य कभी युद्ध छिड़ सकता है.
मजेदार बात यह है कि डोकलाम विवाद भूटान और चीन के मध्य का मुद्दा है, न कि भारत और चीन के मध्य का, लेकिन भारत अपनी सुरक्षा के दृष्टिकोण से संवेदनशील होकर इस विवाद में भूटान की ओर से भाग ले रहा है. साथ ही, भारत का कहना है कि भारत-चीन के मध्य सीमा रेखा बटांग-ला पर है, जबकि चीन का मानना है कि यह सीमा रेखा माउंट गिम्पोची पर है, जो कि यह दक्षिण की ओर तीन मील की दूरी पर है. अगर चीन सही है, तो यह डोकलाम पठार तक पहुंच हासिल कर लेगा. फलतः यहां से चीनी सेना बहुत आसानी से चिकन-नेक क्षेत्र को अपने कब्जे में कर सकती है.
इस पूरे मसले पर भारत और चीन दोनों के तरफ से बीते दिनों कई बयान आये. चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता, कर्नल वू किआन, ने कहा है, ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को हिलाने के बजाय पहाड़ को हिलाना आसान है.
हम दृढ़ता से आग्रह करते हैं कि भारत व्यावहारिक कदम उठाये और चीन को उकसाना बंद करे. चीन भारत को याद दिलाना चाहता है कि भारत के तर्क अनुसार, भविष्य में पाकिस्तान सरकार के अनुरोध पर तीसरे देश की सेना भारत और पाकिस्तान के विवादित क्षेत्र में प्रवेश कर सकती है.’ वहीं दूसरी ओर, भारतीय सेना के प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने भी भारत-चीन युद्ध की संभावना को स्वीकार करते हुए कहा कि ‘भारतीय सेना पूरी तरह से ढाई मोर्चा युद्ध के लिए तैयार है.
भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का कहना है कि डोकलाम पठार में चीन की एकतरफा कार्यवाही भारत की सीमा सुरक्षा को खतरा उत्पन्न करती है, और इसको सुरक्षित करना भारत के लिए राष्ट्रीय सम्मान की बात है. परिणामतः दोनों ही राष्ट्र अपने-अपने राष्ट्रीय हितों को लेकर पूरी तरह से अडिग हैं और कोई भी राष्ट्र पीछे हटना नहीं चाहता है. यदि दोनों ही राष्ट्र ऐसे ही अपनी-अपनी स्थिति पर बने रहते हैं, तो लड़ाई की संभावना बढ़ जायेगी. और दोनों देशों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.