लोकसभा चुनाव के एलान के साथ ही लोकतंत्र के महापर्व का बिगुल बज गया है. जोड़-तोड.की सियासत करनेवाली पार्टियों में अब टिकटों की बंदरबांट हो रही है. मौकापरस्ती और दलबदल की राजनीति का सबसे बड़ा मंच सज कर तैयार है.
चुनावी नेता बरसाती मेंढकों की तरह अपनी मौजूदगी दर्शाने में लग गये हैं. राजनीति का ककहरा न जाननेवाले जनता का मूड भांपने में लग गये हैं. पांच साल तक दर्शन न देने की कसम खा चुके नेताजी अब घड़ी-घड़ी दर्शन देने लगे हैं.
किराये के समर्थक और भाड़े की भीड.नेताजी की रैली को हिट कराने की गारंटी बन चुके हैं. लोगों को लोक -लुभावने वादे और घोषणाओं के तोहफे मिलने शुरू हो चुके हैं. किसी नेता की लहर समुद्र की लहरों से बड़ी हो गयी है, तो किसी का विज्ञापन उसके किये कामों से बड़ा. देखें, जनता को कौन कितना बहला पाता है?
सौरभ पाठक, बुंडू