आयकर की बढ़त
काले धन पर अंकुश लगाने के सरकारी प्रयासों के सकारात्मक नतीजे मिलने शुरू हो गये हैं. आयकर विभाग के नये आंकड़ों के मुताबिक आयकर-विवरण भरनेवालों की संख्या पिछले निर्धारण वर्ष के मुकाबले 24 प्रतिशत बढ़ गयी है. पिछले वर्ष 2.27 करोड़ लोगों ने आयकर-विवरण भरा था, जबकि इस साल आखिरी तारीख यानी 5 अगस्त तक […]
काले धन पर अंकुश लगाने के सरकारी प्रयासों के सकारात्मक नतीजे मिलने शुरू हो गये हैं. आयकर विभाग के नये आंकड़ों के मुताबिक आयकर-विवरण भरनेवालों की संख्या पिछले निर्धारण वर्ष के मुकाबले 24 प्रतिशत बढ़ गयी है. पिछले वर्ष 2.27 करोड़ लोगों ने आयकर-विवरण भरा था, जबकि इस साल आखिरी तारीख यानी 5 अगस्त तक 2.82 करोड़ लोगों ने आयकर संबंधी अपनी देयताओं का विवरण दिया है.
विभाग के मुताबिक नोटबंदी के दौरान किये गये उपायों जैसे डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देना और वित्तीय बर्ताव को आधार से जोड़ने से पारदर्शिता आयी है. अब आमदनी को छुपाना पहले की तरह आसान नहीं है. ताजा आंकड़े वित्त मंत्रालय के अप्रैल में जारी तथ्यों से भी मेल खाते हैं. उस समय ही जाहिर हो गया था कि सरकार को कर-वसूली में कामयाबी मिल रही है. तब खबर आयी थी कि नोटबंदी से उत्पन्न नकदी की किल्लत के बावजूद 31 मार्च 2016 को खत्म हुए वित्त वर्ष में सरकार का कर-राजस्व 18 फीसदी की बढ़त के साथ 17.1 अरब रुपये तक जा पहुंचा है.
केंद्र को उत्पाद-शुल्क के जरिये हुई आय में 33.9 फीसदी का इजाफा हुआ था और सेवा-कर के मार्फत हुई वसूली में 20.2 फीसदी का. तब वित्त मंत्रालय का कहना था कि रिफंड में लौटायी गयी रकम को हटा दें, तो भी निजी आयकर से हुई राजस्व प्राप्ति 2016-17 में 21 प्रतिशत बढ़ी है और कॉरपोरेट टैक्स से हुई प्राप्तियों में 6.7 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. अर्थशास्त्री ध्यान दिलाते रहे हैं कि हमारे कुल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में करों से प्राप्त राजस्व का हिस्सा आश्चर्यजनक तौर पर कम रहा है. साल 1965 में भारत की जीडीपी में कर-राजस्व का अंशदान लगभग 10 प्रतिशत था, जो 2013 में बढ़ कर 17 प्रतिशत के आस-पास पहुंचा है. यह अनेक विकसित देशों की तुलना में काफी कम है.
जाहिर है, कर-राजस्व को बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को कर-ढांचे के भीतर आना जरूरी है. भारत में मध्यवर्गीय आबादी की तादाद अच्छी-खासी होने के बावजूद आयकर दाताओं की तादाद बहुत कम (व्यस्क आबादी का करीब चार फीसदी) है. सरकार का ज्यादा जोर अब तक अप्रत्यक्ष करों पर रहा है, जिसका बोझ अमीर-गरीब दोनों को उठाना पड़ता है. यह कहना ज्यादा सही होगा कि अप्रत्यक्ष करों का भार अपेक्षाकृत गरीब आबादी पर ज्यादा है. आयकर दाताओं की तादाद बढ़ाने के साथ सरलीकरण की प्रक्रिया के संबंध में भी निरंतर प्रयासों की जरूरत है, क्योंकि आयकर-विवरण भरनेवालों की संख्या पिछले निर्धारण वर्ष से अधिक है, लेकिन निर्धारण-वर्ष 2012-13 की 2.90 करोड़ की संख्या के मुकाबले कम है.