देश की शासन-व्यवस्था के सुचारू संचालन के लिए सक्षम और ईमानदार नौकरशाही का होना जरूरी है. इसी कारण से भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) को ‘स्टील फ्रेम’ यानी लौह ढांचा कहा जाता है, लेकिन भ्रष्टाचार से इस लौह ढांचे में जंग लग चुकी है.
अक्सर ऐसी खबरें आती हैं कि अमुक अधिकारी से अकूत धन-संपत्ति बरामद हुई है. प्रशासनिक भ्रष्टाचार के कारण सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों का लाभ आम जनता तक नहीं पहुंच पाता है तथा देश के सर्वांगीण विकास की राह बाधित होती है. नियमानुसार प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को हर साल अपनी अचल संपत्ति का ब्योरा देना होता है. संसद में सरकार द्वारा दी गयी जानकारी के मुताबिक, 379 आइएएस अधिकारियों ने अभी तक बीते साल का विवरण जमा नहीं किया है, जबकि इसकी आखिरी तारीख 31 जनवरी थी. इनमें से 38 अधिकारी सेवा-निवृत्त हो चुके हैं और दो की मौत हो चुकी है.
इन अधिकारियों को इस चूक के चलते सतर्कता विभाग की मंजूरी नहीं दी जायेगी, लेकिन सिर्फ इतने से ही इस गलती को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. इनकी आमदनी और संपत्ति की समुचित जांच बहुत जरूरी है. पिछले सप्ताह सरकार ने बताया था कि भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे 48 प्रशासनिक, पुलिस और राजस्व अधिकारियों के खिलाफ मुकदमे की अनुमति दी गयी है. वर्ष 2014-15 से अब तक के कार्यकाल के दौरान उनकी हरकतों पर सुनवाई होगी.
इसी अवधि में 13 अधिकारियों को बर्खास्त भी किया जा चुका है. प्रशासनिक सेवाओं में सुधार के पक्षधर अनेक जानकारों का मानना है कि मौजूदा नियमों के चलते उन अधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई करने में देरी होती है, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप होते हैं. सरकार की मंजूरी में दबाव और पैरवी की भी भूमिका होती है.
अधिकारी अंततः लोकसेवक हैं. ऐसे में यदि वे भ्रष्टाचार में लिप्त पाये जाते हैं या किसी गंभीर लापरवाही को अंजाम देते हैं, तो उन पर कार्रवाई भी होनी चाहिए. अधिकारियों का भ्रष्टाचार इस लिहाज से भी एक बड़ा अपराध है कि इस कारण से इसकी जड़ें प्रशासन के निचले स्तर तक जाती हैं. प्रशासनिक भ्रष्टाचार का एक सिरा राजनीतिक भ्रष्टाचार से भी जुड़ता है. यही कारण है कि ऐसे अधिकारियों को राजनेताओं का संरक्षण भी प्राप्त होता है.
प्रशासनिक सुधार के साथ भ्रष्टाचार पर नकेल मोदी सरकार की प्रमुख प्रतिबद्धताओं में है. उम्मीद है कि सरकार इस दिशा में उठाये जा रहे कदमों में सख्ती और तेजी लायेगी.