पंद्रह अगस्तीय चिंतन

आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता प्राप्त निबंध इस प्रकार है- 15 अगस्त का हमारे जन-जीवन में बहुत महत्व है, खास तौर पर उस पंद्रह अगस्त का जो शनिवार, रविवार के आसपास पड़ता हो. अगर 15 अगस्त मंगलवार को पड़ रहा हो, तो शनिवार, रविवार की छुट्टी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 14, 2017 6:35 AM

आलोक पुराणिक

वरिष्ठ व्यंग्यकार

स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता प्राप्त निबंध इस प्रकार है- 15 अगस्त का हमारे जन-जीवन में बहुत महत्व है, खास तौर पर उस पंद्रह अगस्त का जो शनिवार, रविवार के आसपास पड़ता हो. अगर 15 अगस्त मंगलवार को पड़ रहा हो, तो शनिवार, रविवार की छुट्टी वाले अगर सोमवार की छुट्टी लेकर एक साथ चार छुट्टियों का जुगाड़ कर सकते हैं. ऐसे पंद्रह अगस्त का घणा महत्व है, जो भारतीयों की छुट्टियों में इजाफा करवा पाये.

भारत कृषि प्रधान देश नहीं है, यह छुट्टी प्रधान देश है, हर सरकारी दफ्तर में दो विषयों पर सतत चर्चा चलती है. एक विषय-महंगाई भत्ते में अगली बढ़ोत्तरी कितने परसेंट होगी. विषय नंबर दो यह कि जन्माष्टमी, दीवाली, न्यू ईयर पर कैसे सेटिंग की जाये, एक साथ चार-पांच छुट्टियों की मौज ले ली जाये.

आजादी के दिन (15 अगस्त, 1947) शुक्रवार था. इसमें सारे सरकारी-कर्मियों की भावनाओं का ध्यान रखने की कोशिश की गयी कि भविष्य में शनिवार, इतवार की छुट्टी के साथ शुक्रवार को जोड़ कर सीधे तीन दिन की छुट्टी ली जा सकती है. शुक्रवार को ही आजादी का दिन चुनने के पीछे गहरा संकेत छिपा था.

छुट्टियों का बहुत महत्व है भारतीय जनजीवन में. तमाम कर्मचारियों को अपमान की वैराइटी का स्वाद मिल जाता है, वरना दफ्तर में बंदा सिर्फ बाॅस से बेइज्जत होकर परेशान होता है. छुट्टी लेकर जब बंदा घूमने जाता है कहीं और वहां उसकी पत्नी उससे 15,000 की चेन्नई सिल्क की साड़ी की मांग करती है, वह बंदा हाथ खड़े कर देता है और सुनता है- तुम्हारे बस का तो कुछ भी नहीं है.

इस तरह बंदे के जीवन में अपमान की वैराइटी आ जाती है. उसे पता लगता है कि अपमान सिर्फ बास ही नहीं करता. वह जब चाहे टूर पर जाकर, छुट्टी पर जाकर नये तरीके से अपमानित हो सकता है. समझने की बात यह है कि भारत में आम आदमी के सामने इसी तरह के चुनाव होते हैं कि इस या उस तरीके से अपमानित हो ले. इस या उस तरीके से अपनी जेब कटवा ले. लोकतंत्र चुनाव के अवसर देता है, यह बात इस तरह के चुनाव के अवसरों से बार-बार प्रमाणित होती है.

अगर बंदा अपने शहर में होता है, तो कोई राहजन चाकू की नोंक पर उसकी जेब से रकम निकलवा लेता है. अगर बंदा टूर पर निकला होता है, तो सौ रुपये के आइटम के हजार उससे वसूल लिये जाते हैं. जो काम अपने शहर में राहजन करता है, दूसरे शहर में पर्यटकों को तमाम आइटम बेचनेवाले दुकानदार कर लेते हैं. इस तरह से बंदे का भारतीय एकता में भरोसा पक्का होता है कि जेब काटनेवाले सिर्फ उसके शहर में ही नहीं हैं. इस मामले में हमारा राष्ट्र एक है.

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