निराशा के भंवर में फंसती कांग्रेस!
इस आम चुनाव में भाजपा जहां नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनाने का जोरदार दावा पेश कर रही है, वहीं मैदान में अभी-अभी उतरी ‘आप’ सहित अन्य क्षेत्रीय दल भी शक्ति-प्रदर्शन के लिए उतारू हैं. दस साल से यूपीए सरकार का नेतृत्व कर रही कांग्रेस के लिए यह चुनाव बडी अग्नि-परीक्षा है. […]
इस आम चुनाव में भाजपा जहां नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनाने का जोरदार दावा पेश कर रही है, वहीं मैदान में अभी-अभी उतरी ‘आप’ सहित अन्य क्षेत्रीय दल भी शक्ति-प्रदर्शन के लिए उतारू हैं. दस साल से यूपीए सरकार का नेतृत्व कर रही कांग्रेस के लिए यह चुनाव बडी अग्नि-परीक्षा है.
हमारे देश में चुनाव मुद्दों और वायदों से अधिक ‘इमेज’ पर लडे जाने लगे हैं. मोदी की जोरदार ‘ब्रांडिंग’, केजरीवाल का संघर्षरत ‘चेहरा’ और राज्यों के क्षत्रपों की स्थानीय ‘पकड.’ राहुल गांधी की ‘छवि’ पर भारी पड.ते दिख रहे हैं. पार्टी चुनाव अभियान में अपने आत्मविश्वास को बनाये रखने की कोशिश तो कर रही है, लेकिन उसे हर मोरचे पर निराशा ही हाथ लग रही है.
भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन, चार राज्यों के हालिया चुनावों में करारी हार और अब पार्टी के नेताओं का भाजपा और अन्य दलों में जाना कुछ ऐसे कारक हैं जिनके झटकों से पार्टी उबर नहीं पा रही है. पहले खबर आयी कि उसके कई नेता चुनाव लड.ने के इच्छुक नहीं हैं. अब दो घोषित प्रत्याशी पाला बदल कर भाजपा में जा चुके हैं. पार्टी का नेतृत्व कांग्रेस-विरोधी प्रचार का समुचित जवाब नहीं दे पा रहा है. कांग्रेस के मुख्य रणनीतिकारों में एक जयराम रमेश ने इस स्थिति को स्वीकार करते हुए माना है कि मतदाताओं की नजर में कांग्रेस यह चुनाव हार चुकी है और इस हालात के लिए पार्टी नेतृत्व की संवादहीनता जिम्मेवार है.
कांग्रेस के सहयोगी दल एनसीपी के नेता शरद पवार ने भी कह दिया है कि चुनाव के बाद भाजपा सबसे बडी पार्टी होगी. शायद कांग्रेस की यह निराशा भी मोदी के इस अतिआत्मविश्वास को बल दे रही है, जिसमें वे यह कह रहे हैं कि चुनाव से पहले ही परिणाम आ चुके हैं. अपने प्रचार अभियान में अब तक कांग्रेस ने मोदी के भाषणों और दावों का जवाब देने की गंभीरता नहीं दिखायी है.
बनारस में केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी को सीधे चुनौती देकर कांग्रेस को बडा झटका दिया है. इसमें दो राय नहीं कि कांग्रेस अपनी सरकार के भ्रष्टाचार और निष्क्रियता के कारण इस स्थिति तक पहुंची है. जाहिर है, अगर वह भारतीय राजनीति में प्रासंगिक बने रहना चाहती है, तो उसे ‘इमेज बिल्डिंग’ की अपनी रणनीति पर नये सिरे से गौर करते हुए पार्टी के आदशरें को पुनर्जीवित करना होगा.