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सीमा पर सड़कें
दुर्गम इलाकों में लड़ने के मामले में भारतीय सेना बेजोड़ है. बीसवीं सदी के विश्वयुद्ध रहे हों, अंतरराष्ट्रीय शांति मिशन या भी पड़ोसी देशों से हुए युद्ध-सबमें भारतीय सेना की यह महारत झलकी है. लेकिन, एक सच यह भी है कि सेना की मारक-क्षमता को बरकरार रखने के लिए सुरक्षा के बुनियादी ढांचे पर लगातार […]
दुर्गम इलाकों में लड़ने के मामले में भारतीय सेना बेजोड़ है. बीसवीं सदी के विश्वयुद्ध रहे हों, अंतरराष्ट्रीय शांति मिशन या भी पड़ोसी देशों से हुए युद्ध-सबमें भारतीय सेना की यह महारत झलकी है.
लेकिन, एक सच यह भी है कि सेना की मारक-क्षमता को बरकरार रखने के लिए सुरक्षा के बुनियादी ढांचे पर लगातार निवेश करना पड़ता है, चौकस रहना होता है कि सेना को न साजो-सामान की कभी कमी पड़े और न ही कोई जगह ऐसी दुर्गम रह जाये, जिससे समय पर संसाधन पहुंचाने में दिक्कत हो. अफसोस की बात है कि इस मोर्चे पर देश का नेतृत्व मुस्तैदी नहीं दिखा पाया है.
पिछले दिनों जंगी साजो-सामान की कमी की खबरें आयी थीं. अब यह खबर है कि चीन के साथ वास्तविक नियंत्रक रेखा पर पर्याप्त सड़कें नहीं बनायी गयी हैं. रणनीतिक महत्व की कुल 73 सड़कों का निर्माण अभी तक हो जाना चाहिए था, लेकिन सिर्फ 27 सड़कें ही बन पायी हैं. इतनी सड़कों से लगभग 950 किलोमीटर की सीमा-रेखा तक ही भारतीय सेना की पहुंच सुगम हो सकती है, जबकि भारत-चीन सीमा करीब साढ़े चार हजार किलोमीटर लंबी है.
यह स्थिति विशेष चिंताजनक कही जायेगी, क्योंकि मौजूदा डोकलाम विवाद ही नहीं, बल्कि इसके पहले भी थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद ऐसी खबरें आती रही हैं कि चीनी सेना ने भारत में उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश या फिर सिक्किम से लगती सीमा की तरफ से घुसपैठ की कोशिश की है. चीन के साथ भारत की एक जंग भी हो चुकी है और उस वक्त भी भारत के सामने यह जाहिर था कि दुर्गम इलाकों में लड़ने के लिए विशेष तैयारी जरूरी है.
तत्कालीन राष्ट्रपति डाॅ राधाकृष्णन ने तब अपने एक भाषण में इस जरूरत पर खास जोर दिया था. चिंता का एक सबब यह भी है कि चीन ने तिब्बत को हाल के सालों में अपने लिए एक सैन्य अड्डे के रूप में तैयार किया है. सड़क बनाना, हवाई अड्डे तैयार करना, रेल-मार्ग बिछाना तथा समुद्री परिवहन मार्ग तैयार करने का काम चीन एक अरसे से करता आ रहा है. चीन की इस घेरेबंदी के बरक्स वास्तविक नियंत्रण रेखा तक सेना की पहुंच को सुगम बनाने के मामले में हमारी कोताही कभी भी घोर संकट का कारण बन सकती है.
अच्छी बात यह है कि सरकार का ध्यान इस तरफ गया है और सीमावर्ती इलाके में सड़क बनाने की जिम्मेदार संस्था सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) को विशेष प्रशासनिक तथा वित्तीय अधिकार देकर सड़क-निर्माण की शेष परियोजनाओं को जल्दी से जल्दी पूरा करने का निर्देश दिया गया है.
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