मंडल-कमंडल का कॉकटेल लेकर घूमेगी बीजेपी
-प्रेम कुमार- नरेंद्र मोदी के बारे में कहा जाता है कि वे कभी छोटा गेम नहीं खेलते. राजनीति करते हैं लेकिन दायरा बड़ा होता है, नतीजा दूरगामी होता है. 2019 की राजनीति का एजेंडा सेट करना अभी उनकी प्राथमिकता में है. इस दिशा में उनकी ताज़ा पहल है ‘कोटा में कोटा’ यानी ओबीसी में पिछड़े […]
-प्रेम कुमार-
नरेंद्र मोदी के बारे में कहा जाता है कि वे कभी छोटा गेम नहीं खेलते. राजनीति करते हैं लेकिन दायरा बड़ा होता है, नतीजा दूरगामी होता है. 2019 की राजनीति का एजेंडा सेट करना अभी उनकी प्राथमिकता में है. इस दिशा में उनकी ताज़ा पहल है ‘कोटा में कोटा’ यानी ओबीसी में पिछड़े ओबीसी को खोज निकालना. कमंडल की तैयारी भी चल रही है, जिसे भविष्य की राजनीति का हिस्सा बनाया जाएगा. एक तरह से नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी 2019 की सियासत के लिए मंडल-कमंडल का कॉकेटल तैयार करने में जुटी है.
बीजेपी थिंक टैंक के निशाने पर है गैर कांग्रेसी विपक्ष
बीजेपी के पास राजनीतिक अनुभवों का इतिहास है. जब मंडल कमीशन को लागू करने की राजनीति से समाज टूटता है, तो बीजेपी का दावा रहा है कि कमंडल की राजनीति करती हुए पार्टी आम लोगों को एक-दूसरे से जोड़ती है. बीजेपी के थिंक टैंक ने अब जो चाल चली है, उसके निशाने पर है गैर कांग्रेसी विपक्ष. यूपी विधानसभा चुनाव से सबक लेकर बीजेपी अब उसी राह पर बड़ा फ़ॉर्मूला गढ़ रही है जिस पर चलते हुए निश्चित परिणाम की वह अपेक्षा कर सकती है.
यूपी का अनुभव, नीतीश का साथ : मतलब पूरा विश्वास
यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने यादवों को छोड़कर बाकी ओबीसी और दलितों को अपने साथ जोड़ा था. यादव समाजवादी पार्टी के साथ जुड़े रहे, लेकिन बाकी जातियों के अलग हो जाने के बाद समाजवादी पार्टी अलग-थलग पड़ गयी. अब बीजेपी का अगला कदम ओबीसी से क्रीमी लेयर निकालना है. इस नारे के तहत ओबीसी के अंतर्गत आने वाला बड़ा हिस्सा जो आरक्षण के लाभ से दूर है और जिसके मन में क्रीमी लेयर के लिए गुस्सा है, वो आंदोलित होंगे.
2019 में यूपी दोहरानी की कोशिश
वैसे भी आरक्षण ऐसा मुद्दा है, जिसमें आरक्षण का लाभ लेने वालों की संख्या हमेशा कम रहने वाली है और आरक्षण के लाभ की हसरत रखने वालों की तादाद हमेशा ज्यादा रहने वाली है. वोट बैंक के तौर पर आरक्षण प्राप्त वंचित तबके पर ही राजनीतिक दलों की नज़र होती है. यूपी विधानसभा चुनाव में गैर यादव पिछड़े-अति पिछड़े लोगों को आकर्षित कर बीजेपी ने जो कमाल दिखाया है, अब वह इस प्रदर्शन को लोकसभा चुनाव में भी दोहराना चाहती है.
मोदी-शाह की जोड़ी को भरोसा है सोशल इंजीनियरिंग पर
नरेंद्र मोदी-अमित शाह को अपनी सोशल इंजीनियरिंग पर भरोसा इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि अब उनके साथ नीतीश कुमार हैं. नीतीश कुमार को सोशल इंजीनियरिंग में मास्टरी हासिल है. नीतीश कुमार ने बिहार में लालू प्रसाद की राजनीतिक दुकान को इसी सोशल इंजीनियरिंग के जरिये बंद कराया था. उन्होंने सोशल इंजीनियरिंग का दलित-महादलित का जो फॉर्मूला ईजाद किया है, वह मिसाल बन चुका है. अब मोदी-शाह की जोड़ी इस फॉर्मूले को 2019 के लिए इस्तेमाल करने जा रही है.
ओबीसी में क्रीमी लेयर अब 8 लाख रुपये
मोदी सरकार ने ओबीसी के लिए क्रीमी लेयर की उच्चतम सीमा 6 लाख रुपये से बढ़ाकर 8 लाख रुपये कर दी है. इसके साथ ही ओबीसी जातियों के बीच सब कैटेगरी बनाने की भी कवायद शुरू कर दी है. प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में बैठी कैबिनेट ने इस विषय पर आयोग के गठन को मंजूरी दी है, जो 12 महीने में यानी 2019 से पहले 2018 में अपनी रिपोर्ट दे देगा. इस रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी के क्रीमी लेयर से इतर जातियों में सपने बेचे जायेंगे. इसी सपने की बिक्री वोट बनकर मोदी को 2019 में सत्ता के सिंहासन पर दोबारा बिठाएगी, ऐसी उम्मीद वे पाले बैठे हैं.
आरक्षण पर पुनर्विचार की आशंका खारिज कर रही है बीजेपी
लगे हाथ सरकार उन आशंकाओं को भी खारिज कर देना चाहती है, जिसमें आरक्षण पर पुनर्विचार को लेकर अटकलें लगायी जा रही हैं. बीजेपी यह संकेत तो देना चाहती है कि आरक्षण की समीक्षा करना ज़रूरी है, लेकिन यह काम करने से पहले वह लोगों को मानसिक रूप से तैयार भी कर लेना चाहती है. अगर 2019 में मोदी-शाह की सोशल इंजीनियरिंग का मेगा प्लान सफल रहता है ,तो बीजेपी के नेतृत्व वाली नयी सरकार में पूरे विश्वास के साथ आरक्षण की समीक्षा करने का आत्मबल आ जाएगा.
मंडल-कमंडल कॉकटेल का साइड इफेक्ट भी तय
हालांकि मंडल-कमंडल के कॉकटेल का साइड इफेक्ट भी तय है. बिहार में नीतीश के जो साथी दलित-महादलित में बंटने-बांटने की राजनीति के खिलाफ थे, वे आज बीजेपी के ही साथ हैं. मगर, बीजेपी ऐसे छोटे-मोटे झटके सहने को तैयार है क्योंकि सामने बड़ा मकसद है. बीजेपी एक साथ यूपी और बिहार में लालू-अखिलेश-मायावती पर इस बहाने बड़ा राजनीतिक हमला करेंगे, वहीं गुजरात और राजस्थान में भी आरक्षण पर आंदोलित समाज को अलग-थलग कर देंगे और उन्हें नये सिरे से एकजुट करेंगे. इसका असर तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों में भी बीजेपी के हक में होगा, जहां पार्टी अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद लगाये बैठी है.
ओबीसी में सब कैटेगरी की पहल से मोदी सरकार ने चौंकाया
मोदी सरकार ने ओबीसी के भीतर सब कैटेगरी बनाने की पहल से लोगों को चौंकाया है. सरकार यह कदम हाल में खत्म हुए संसद सत्र में भी कर सकती थी, लेकिन इससे बचते हुए सरकार ने आयोग बनाने की चाल चली है. जब तक यह आयोग रिपोर्ट देगा, तब तक बीजेपी दलितों में महादलितों की भावनाओं को झकझोर चुकी होगी. इस वोट पर जिनकी सियासत टिकी है, उन्हें जबरदस्त नुकसान हो चुका होगा. इसलिए यह तय है कि बीजेपी की इस पहल पर जाति को ध्यान में रखकर राजनीति करने वाली पार्टियां एकजुट होकर इस पहल का विरोध करेगी और, मोदी-शाह की जोड़ी चाहती भी यही है.
(21 साल से प्रिंट व टीवी पत्रकारिता में सक्रिय, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखन। संप्रति IMS, नोएडा में एसोसिएट प्रोफेसर MAIL : prempu.kumar@gmail.com TWITER HANDLE : @KumarPrempu )