Loading election data...

महामारी से त्रस्त देश

बीते आठ महीने में स्वाइन फ्लू से देशभर में 1,094 मौतें हो चुकी हैं. बीते तीन महीने में ही 342 लोग मर चुके हैं. इस बीमारी के महामारी में बदलने का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अब तक 22 हजार से अधिक मामले सामने आ चुके हैं. पिछले साल की तुलना […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 28, 2017 6:46 AM
बीते आठ महीने में स्वाइन फ्लू से देशभर में 1,094 मौतें हो चुकी हैं. बीते तीन महीने में ही 342 लोग मर चुके हैं. इस बीमारी के महामारी में बदलने का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अब तक 22 हजार से अधिक मामले सामने आ चुके हैं. पिछले साल की तुलना में चार गुना अधिक लोग मारे गये हैं. ये सरकारी आंकड़े हैं. वास्तव में संख्या कहीं अधिक हो सकती है, क्योंकि निजी अस्पताल अपने मरीजों की संख्या सरकार को नहीं बताते हैं. हमारे देश की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था स्वाइन फ्लू के कहर के आगे लाचार नजर आती है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक महाराष्ट्र और गुजरात सर्वाधिक प्रभावित हैं. ये राज्य अपेक्षाकृत अधिक समृद्ध और सुविधासंपन्न हैं, लेकिन इसके बावजूद वहां मौतों का सिलसिला जारी है. महामारी से निपटने में असफलता यही साबित करती है कि 2009-10 और 2015 से कोई सबक नहीं लिया गया है. उन वर्षों में हजारों लोग स्वाइन फ्लू से पीड़ित हुए थे और मृतकों की आधिकारिक संख्या दो से तीन हजार के बीच रही थी. वर्ष 2009 में मेक्सिको में इस रोग का वायरस पहली बार सामने आया था और देखते-देखते पूरी दुनिया में पसर गया. अनेक देशों ने त्वरित पहल करते हुए इस पर काबू कर लिया है, पर भारत विफल रहा है. कई जानकारों का कहना है कि महाराष्ट्र और गुजरात से अधिक संख्या इस कारण भी सामने आ रही है, क्योंकि वहां रोग की पहचान करने की बेहतर व्यवस्था है.
इसका एक मतलब यह भी निकलता है कि गरीब और पिछड़े राज्यों में रोग की पहचान ठीक से नहीं हो रही है और अगर ऐसा है तो मरीज के लिए एक खतरनाक स्थिति है. चूंकि ज्यादातर मामलों में रोगी में कोई लक्षण नहीं दिखता या फिर बहुत मामूली परेशानी होती है. गंभीर होने से पहले एक रोगी वायरस को फैला चुका होता है और अपने लिए भी मुश्किल पैदा कर चुका होता है.
देश की राजधानी दिल्ली तो अजीब हालत से दो-चार है, जहां स्वाइन फ्लू के साथ चिकनगुनिया और डेंगू भी फैला हुआ है. डाक्टरों का कहना है कि वायरस-जनित बीमारियों का ऐसा तेज प्रसार वे पहली बार देख रहे हैं. शहरी इलाकों में गंदगी, भीड़ और अव्यवस्था के कारण इन रोगों से लोगों को जूझना पड़ रहा है. जलवायु परिवर्तन और तापमान में बढ़त से भी महामारियों का खतरा बढ़ता जा रहा है. ऐसे में जरूरी है कि सरकारें ठोस और तेज पहल करें और अपनी प्राथमिकताओं में स्वास्थ्य को अधिक महत्व दें.

Next Article

Exit mobile version