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धर्म, राजनीति और हिंसा

रविभूषण वरिष्ठ साहित्यकार अस्सी के दशक के मध्य से ‘धर्मगुरुओं’ की संख्या जिस प्रकार बढ़ी है, उसने एक साथ कई प्रकार की चुनौतियां और समस्याएं खड़ी कर दी हैं. ये समस्याएं वस्तुत: कानून-व्यवस्था और प्रशासन से संबंधित हैं. 29 अप्रैल, 1948 को डेरा सच्चा सौदा की स्थापना एक सामाजिक संगठन के रूप में की गयी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 28, 2017 6:48 AM
रविभूषण
वरिष्ठ साहित्यकार
अस्सी के दशक के मध्य से ‘धर्मगुरुओं’ की संख्या जिस प्रकार बढ़ी है, उसने एक साथ कई प्रकार की चुनौतियां और समस्याएं खड़ी कर दी हैं. ये समस्याएं वस्तुत: कानून-व्यवस्था और प्रशासन से संबंधित हैं.
29 अप्रैल, 1948 को डेरा सच्चा सौदा की स्थापना एक सामाजिक संगठन के रूप में की गयी थी. सामाजिक संगठन हों या सांस्कृतिक संगठन, बाद में चलकर इन सबके कार्य-व्यापार और तौर-तरीके भिन्न हो गये. बलूचिस्तान में शाह मस्ताना द्वारा स्थापित डेरा सच्चा सौदा शाह सतनाम के समय भी सुर्खियों में नहीं था, जब वे 1948 से 1960 तक इस संस्था के प्रमुख रहे. 15 अगस्त, 1967 को जन्मे गुरमीत राम रहीम सिंह को सात वर्ष की उम्र में 1974 में सतनाम महाराज ने अपना शिष्य बनाया था. 23 सितंबर, 1990 को उन्होंने बाबा राम रहीम को डेरा प्रमुख का पद सौंपा. विगत सत्ताइस वर्ष में बाबा राम रहीम ने अपना साम्राज्य खड़ा कर लिया. आज पूरी दुनिया में डेरा की 250 से अधिक शाखाएं हैं और अनुयायियों की संख्या छह करोड़ से अधिक है. आसाराम बापू, बाबा रामपाल, स्वामी नित्यानंद, स्वामी परमानंद, स्वामी भीमानंद के असली किस्से सर्वज्ञात हैं.
किसी भी ‘धर्मगुरु’ के अनुयायियों, भक्तों और समर्थकों की संख्या और उसकी संपत्ति-परिसंपत्ति में बेतहाशा वृद्धि कैसे संभव होती है? गरीबी, अशिक्षा के कारण धर्मगुरु, समाज के गरीब, पिछड़े, वंचित समुदायों में अपनी पैठ जमाकर अपने प्रति, ‘श्रद्धालुओं’ में आस्था उत्पन्न करता है.
अंधास्था सदैव न्याय-प्रणाली और कानून-व्यवस्था में यकीन नहीं रखती. विवेकशून्यता के कारण ‘धर्मगुरु’ का प्रचार-प्रसार और विस्तार होता जाता है. आज 700 एकड़ में डेरा का मुख्य कैंपस है. जमीन-जायदाद और संपत्ति के प्रति धर्मगुरुओं में यह आकर्षण बाजार अर्थव्यवस्था और नवउदारवादी अर्थव्यवस्था के दौर में अधिक बढ़ा है. बाजार और व्यापार से अलग आज का कोई ‘आधुनिक’ धर्मगुरु नहीं है. राजनीति और व्यापार दोनों में ‘धर्मगुरुओं’ की पैठ नयी परिघटना है. डेरा प्रमुख राम रहीम की ‘प्रतिभा’ बहुस्तरीय है.
उन्होंने पांच फिल्में बनायी हैं, जिनमें एमएसजी अधिक प्रसिद्ध है. उनके गीतों के कई एलबम हैं. अपने अनुयायियों की दृष्टि में वे समाज सुधारक, धार्मिक शिक्षक, इंजीनियर, कृषि-कर्म से जुड़े होने के साथ लेखक भी हैं. अभिनेता, फिल्म निर्देशक, कला निर्देशक, संगीत निर्देशक, गीतकार सभी रूपों में ‘धर्मगुरु’ को क्यों आना पड़ता है? एक नयी बाजार अर्थव्यवस्था में डेरा साम्राज्य के साथ डेरा संस्कृति भी विकसित हुई है.
जैसे धर्मगुरु, वैसे धर्मानुयायी. राम रहीम की अपनी निजी सेना है, कमांडो है, हेलीकॉप्टर है. राज्य की बदौलत उसने अकूत संपत्ति इकट्ठी की. हरियाणा में सरकार किसी भी राजनीतिक दल की रही हो, राम रहीम की शक्ति-संपदा में कभी कोई कमी नहीं आयी. अनुयायियों की आस्था राज्य और सरकार से कहीं अधिक अपने ‘ईश्वर’ में है, उस नये ‘ईश्वर’ में, जिसकी इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया में अच्छी-खासी पकड़ है.
जमींदार मगहर सिंह का अपने इलाके में जितना रोबदाब और वर्चस्व नहीं था, उससे कई गुना अधिक उनके बेटे राम रहीम का है. उनके आश्रम की शाखायें हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, दिल्ली और चंडीगढ़ में हैं. सरकारें उसके समक्ष नतमस्तक होती रही हैं. हरियाणा की चालीस विधानसभा सीटों पर उनकी पकड़ है. वोट बैंक की राजनीति का यह वह वास्तविक चेहरा है, जिससे कोई पार्टी अलग नहीं है.
राम रहीम पर साध्वियों ने यौन-शोषण और बलात्कार की शिकायत लिखित रूप में 2002 में भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और हरियाणा-पंजाब हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से की थी. 15 वर्ष बाद एक गंभीर मामले में इंसाफ हुआ है.
जज जगदीप सिंह के फैसले ने न्याय-व्यवस्था में आस्था बढ़ायी है. 30 व्यक्तियों की मृत्यु, दो-चार सौ घायल और पंचकूला तथा अन्य स्थानों पर हुई दुर्घटनाएं नये सिरे से सरकार की, प्रशासन की भूमिका पर सबको सोचने-विचारने को आमंत्रित करती है. राम रहीम की शक्ति के इजाफे में सरकारों की भूमिका रही है. धर्म और राजनीति दोनों मिलकर हिंसा को बढ़ावा देते हैं. उन्नाव के भाजपा सांसद साक्षी महाराज अदालत के निर्णय पर प्रश्न खड़े करते हैं. पंचकूला में सेना, अर्द्धसैनिक बल और सैनिकों का कोई असर नहीं होता.
धर्म और राजनीति दोनों ने मिलकर भीड़ की संस्कृति पैदा की. सिरसा के पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने 2002 में राम रहीम का असली सच प्रकाशित किया था, जिसने डेरा हेडक्वाॅर्टर की अवैध गतिविधियों को नहीं बख्शा. उनके वाहनों की तोड़फोड़ की गयी. हिंदी-अंग्रेजी अखबारों और विदेशी न्यूज एजेंसियाें पर हमले हुए. राम रहीम के समर्थकों ने हिंदुस्तान का अस्तित्व मिटा देने की घोषणा की थी. जेएनयू में राष्ट्रद्रोही ढूंढ लिये गये थे, लेकिन हरियाणा में हजारों की संख्या में ऐसी घोषणा करनेवाले राष्ट्रद्रोहियों पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया.
आज राम रहीम को सजा सुनायी जायेगी. असली सवाल धर्म और राजनीति के सह-संबंध का है, जहां से हिंसा फैलती है. हमारी सरकारें हिंसा फैलानेवालों से सर्वत्र एक समान सलूक नहीं करतीं. धार्मिक गुरु और नेता दोनों फलते-फूलते रहते हैं.

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