13.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

धनबल से विकृत हो रही राजनीति

पिछले 67 सालों में हमारे लोकतंत्र में कई बड़े बदलाव आये हैं. एक तरफ दलितों, पिछड़ों की भागीदारी मजबूत हुई है, तो दूसरी तरफ यह धारणा भी बनी है कि भारतीय लोकतंत्र धनबल का दास बन गया है. एक-दो दशक पहले तक बाहुबल का बोलबाला था, लेकिन चुनाव आयोग की सक्रियता से इस पर काबू […]

पिछले 67 सालों में हमारे लोकतंत्र में कई बड़े बदलाव आये हैं. एक तरफ दलितों, पिछड़ों की भागीदारी मजबूत हुई है, तो दूसरी तरफ यह धारणा भी बनी है कि भारतीय लोकतंत्र धनबल का दास बन गया है. एक-दो दशक पहले तक बाहुबल का बोलबाला था, लेकिन चुनाव आयोग की सक्रियता से इस पर काबू पा लिया गया. बूथ पर कब्जे और डरा-धमका कर वोट डलवाने की बातें पुरानी हो चुकी हैं. अब चुनावों पर धनबल का काला साया है. आज आर्थिक संसाधन से हीन, किसी व्यक्ति के लिए चुनाव लड़ने की कल्पना करना भी कठिन है.

छोटी पार्टियों के लिए, नैतिकता में विश्वास रखनेवाली पार्टियों के लिए चुनाव गैरबराबरी का मैदान बन गया है. एक खबर के मुताबिक, झारखंड में एक-एक प्रत्याशी सिर्फ बूथ प्रबंधन पर औसतन 30 लाख रुपये खर्च कर रहा है. यह तो वह रकम है जो नेता-कार्यकर्ता स्वीकार कर रहे हैं. वास्तविक आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा हो सकता है. आज लोकसभा चुनाव में खर्च की कानूनी अधिकतम सीमा 70 लाख रुपये कर दी गयी है. पर जमे-जमाये नेता इससे ज्यादा ही रकम खर्च करते हैं. अब जिन प्रत्याशियों और पार्टियों के पास इतना पैसा नहीं है, वो तो दौड़ में पहले ही पीछे हो जाते हैं. सवाल है कि आखिर चुनाव लड़ना इतना महंगा क्यों हो गया है? क्यों भाड़े के कार्यकर्ताओं की जरूरत पड़ रही है? क्यों वोटरों में पैसा बांटना पड़ता है? जवाब सीधा है- अब मुख्यधारा की राजनीति बदलाव के लिए, अपने विचारों के लिए संघर्ष का औजार नहीं रह गयी है. यह धंधा बन गयी है. यानी, इस हाथ ले और उस हाथ दे.

जब नेता जी चुनाव सिर्फ अपने निजी हित के लिए जीतना चाहते हैं, तो कार्यकर्ता और जनता भी क्यों न उनसे अधिक से अधिक उगाहने की सोचें. कुल मिला कर, राजनीति अब पूरी तरह पैसे का खेल बन चुकी है. बाहुबल हमारी राजनीति में सामंतवाद के वर्चस्व का प्रतीक था, तो अब धनबल राजनीति के पूंजीवाद में संक्रमण को बता रहा है. सांठगांठ पूंजीवाद (क्रोनी कैपिटलिज्म) ने बड़े राजनीतिक दलों को इफरात धन उपलब्ध कराना शुरू कर दिया है. यह धन पूरी राजनीति को विकृत कर रहा है. अब व्यापक चुनाव सुधारों के बिना धनबल पर लगाम मुश्किल है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें