टूट सकते हैं लाखों युवाओं के सपने!
नव-उदारवाद का साढ़े तीन दशकों का वैश्विक इतिहास आर्थिक सुधारों के दावों के बुलबुलों के लगातार फूटने का इतिहास है. बिजनेस प्रॉसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ) के 70 फीसदी व्यापार के अब भारत से बाहर जाने की प्रक्रिया को इसी कड़ी में देखा जाना चाहिए. एसोचैम और केपीएमजी के एक अध्ययन के अनुसार भारत के कॉल सेंटरों […]
नव-उदारवाद का साढ़े तीन दशकों का वैश्विक इतिहास आर्थिक सुधारों के दावों के बुलबुलों के लगातार फूटने का इतिहास है. बिजनेस प्रॉसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ) के 70 फीसदी व्यापार के अब भारत से बाहर जाने की प्रक्रिया को इसी कड़ी में देखा जाना चाहिए. एसोचैम और केपीएमजी के एक अध्ययन के अनुसार भारत के कॉल सेंटरों का व्यापार तेजी से फिलीपींस और पूर्वी यूरोप के देशों में जा रहा है.
रिपोर्ट के मुताबिक, इस पलायन से मौजूदा दशक में भारत को 30 बिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ सकता है. यह धन फिलीपींस की ओर रुख करेगा, जो पहले भारत में निवेश करनेवालों का अब पसंदीदा देश है. बीते दो दशकों में भारत में सेवा-क्षेत्र के तेजी से विकास में कॉल सेंटरों की बड़ी भूमिका रही है. बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार देने और विदेशी निवेश आकर्षित करने के कारण बीपीओ भारतीय अर्थव्यवस्था की सफलता की कहानी का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है. लेकिन इस ताजा अध्ययन से भविष्य के लिए चिंताजनक तसवीर उभर रही है. वैसे भी देश की अर्थव्यवस्था इस समय बहुत संतोषजनक स्थिति में नहीं है.
इस शोध में कई अन्य पहलुओं को भी रेखांकित किया गया है, जिनका संबंध सिर्फ अर्थव्यवस्था से नहीं है. रिपोर्ट के मुताबिक इन कंपनियों द्वारा कारोबार फिलीपींस ले जाने का एक बड़ा कारण यह भी है कि वहां के 30 फीसदी ग्रेजुएट युवा नौकरी पाने के योग्य हैं, जबकि भारत में सिर्फ 10 फीसदी ग्रेजुएट को नौकरी के योग्य माना गया है. यह हमारी शिक्षा-व्यवस्था पर भी गंभीर टिप्पणी है. इसका उपाय सुझाते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि बीपीओ के कामकाज के एक हिस्से को महानगरों से हटा कर अपेक्षाकृत छोटे शहरों में ले जाने की जरूरत है, ताकि खर्च में कमी आ सके.
कुल मिलाकर कॉल सेंटरों का भारत से पलायन चिंताजनक है, जिसे रोकने के लिए उद्योग और सरकार द्वारा जरूरी कदम तत्काल उठाये जाने चाहिए. साथ में, यह भी सोचा जाना चाहिए कि पूंजी के पलायन का यह खेल दुनिया आर्थिक संकट के रूप में मैक्सिको से मलयेशिया तक और यूरोप से अमेरिका तक देख चुकी है. संकेत साफ हैं, कृषि और घरेलू उद्योग जैसे बुनियादी क्षेत्रों की उपेक्षा कर किसी देश की अर्थव्यवस्था में स्थायित्व नहीं आ सकता.