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बिका हुआ माल वापस नहीं होता

पंकज कुमार पाठक प्रभात खबर, रांची मेले से अपने बेटे के लिए खराब खिलौना लेकर आये मित्र बहुत परेशान थे. एक तो पैसे बर्बाद हो गये. दूसरा, उनके बेटे ने रो-रो कर पूरा घर सर पर उठा लिया था. मुङो देखते ही अपनी समस्या की गेंद मेरे पास फेंकते हुए बोले- अब आप ही समझाइए […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 8, 2014 6:00 AM

पंकज कुमार पाठक

प्रभात खबर, रांची

मेले से अपने बेटे के लिए खराब खिलौना लेकर आये मित्र बहुत परेशान थे. एक तो पैसे बर्बाद हो गये. दूसरा, उनके बेटे ने रो-रो कर पूरा घर सर पर उठा लिया था. मुङो देखते ही अपनी समस्या की गेंद मेरे पास फेंकते हुए बोले- अब आप ही समझाइए इसे. देखिए कैसे रो रहा है? मैंने रोने का कारण पूछा, तो बोले-कल इसे मेला दिखाने ले गये थे. एक आकर्षक ऑफर (खिलौना गाड़ी के साथ गैस लाइटर फ्री) के चक्कर में फंस यह खिलौना खरीद लिया. आज लाइटर और खिलौना दोनों खराब हो गये. अब यह रो रहा है कि आप खराब खिलौना ले आये. वापस करके नया ले आओ.

मैंने कहा-समस्या क्या है? चलो, इसे वापस कर नया ले आते हैं. आखिर पैसा लगा है? वह बोले- कहां वापस करूं? कल मेले का अखिरी दिन था. अब तो साल भर के बाद ही लगेगा यह मेला. जाने कैसे खराब हो गया? डिब्बे में तो बढ़िया था? बेचनेवाले ने भी इसका खूब गुणगान किया था. मैंने थोड़ा गुस्सा होते हुए कहा- तुम भी न! स्कीम और ऑफर और आकर्षण देख कर कुछ भी ले लेते हैं. कुछ सोचते-विचारते, तो आज यह बच्च नहीं रोता. मेले या किसी उत्सवों पर लगनेवाले अल्पकालिक बाजार से खरीदते वक्त बहुत समझदारी से काम लेना चाहिए, ताकि बाद में पछताना न पड़े. अब देखो, कैसे झूठे आकर्षण में असली कीमत पर नकली सामान ले आये. बच्च भी रो रहा है और तुम्हें कोस रहा है.

पेशे से शिक्षक और मेरे मित्र के दिमाग में यह बात बैठ गयी. वह फौरने बोले- अरे! यह बात आम चुनाव पर भी फिट बैठती है. बढ़िया उदाहरण है. मुङो समझाते हुए बोले- देखिए, इस चुनावी ‘मेले’ का ‘नेता बाजार’ भी बिल्कुल ऐसा ही है. अल्पकालिक. इस बाजार में भी जो खराब प्रोडक्ट (नेता) है, उसे भी बेचनेवाले (पार्टी या प्रचार करनेवाले) कई तरह के झूठे आकर्षण, ऑफर या लालच देकर कहते हैं कि हमारे प्रोडक्ट को खरीदो, यह गरीबी दूर कर देगा, सभी को रोजगार देगा, मंहगाई कम कर देगा, महिलाओं को सुरक्षा देगा, सच्चे दिल से आपकी सेवा करेगा. वगैरह-वगैरह.. और हम अपने कीमती वोट की कीमत देकर उसे खरीद लेते हैं.

जब तक हमें पता चलता है कि हमारे साथ धोखा हुआ है. हमने खराब प्रोडक्ट खरीद लिया है, तब हमारे पास सिर्फ पछताने का ही विकल्प रह जाता जाता है. खराब प्रोडक्ट को चाह कर भी नहीं बदल पाते. क्योंकि अगले पांच साल के लिए यह ‘नेता बाजार’ भी ‘चुनावी मेले’ के साथ खत्म हो जाता है. हमें पछतावा होता है कि आफर के चक्कर में आकर गलत माल न खरीदा होता, सावधान रहते, सोच-समझ कर अपना कीमती वोट देते, तो अच्छी चीज घर लेकर आते. फिर न घर में बच्च (भविष्य) रोता, न मुङो कोसता. हमेशा हंसता रहता. खुश रहता.

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