हमारा मतदान ही लायेगा बदलाव
लोकतंत्र का महापर्व शुरू हो चुका है. देश की जनता को एक बार फिर अपना भाग्यविधाता मताधिकार के माध्यम से तय करना है. आजाद भारतवासियों को मताधिकार यूं ही नही मिला, इसके लिए लाखों लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी है. आजादी के दीवानों का सपना था कि आजाद भारत के लोगों का अब […]
लोकतंत्र का महापर्व शुरू हो चुका है. देश की जनता को एक बार फिर अपना भाग्यविधाता मताधिकार के माध्यम से तय करना है. आजाद भारतवासियों को मताधिकार यूं ही नही मिला, इसके लिए लाखों लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी है. आजादी के दीवानों का सपना था कि आजाद भारत के लोगों का अब अपना शासन होगा.
वे अपनी नीतियां खुद बना कर देश की खोई प्रतिष्ठा एवं समृद्धि को वापस लाकर फिर से इसे विश्व का सिरमौर बनायेंगे. आजादी के 67 वर्षो बाद भी क्या ऐसा हो पाया, इस पर आज मंथन करने का वक्त आ गया है. आजादी की लड़ाई हमारे पूर्वजों ने विभिन्न आंदोलनों के बल पर लड़ी थी, लेकिन देश निर्माण की लड़ाई के लिए हमारे पास एक ही हथियार है और वह है वोट. रामदेव और अन्ना के आंदोलनों का हश्र हम देख चुके हैं. हमारा वोट ही बदलाव ला सकता है.
दयानंद कुमार, ई-मेल से