लव-चार्जर से मोक्ष तक

आलोक पुराणिक व्यंग्यकार विलियम शेक्सपियर बाहर के थे, इसलिए कह पाये कि नाम में क्या रखा है. भारत में नाम में ही सब कुछ रखा है. राम और रहीम दोनों ही नाम में शामिल कर लो, तो खाने-कमाने का स्कोप बढ़ जाता है. मुल्क वैसे बड़ा ही फ्लैक्सिबल है, आध्यात्मिक बाबा के नाम से प्रसिद्ध […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 4, 2017 6:37 AM
आलोक पुराणिक
व्यंग्यकार
विलियम शेक्सपियर बाहर के थे, इसलिए कह पाये कि नाम में क्या रखा है. भारत में नाम में ही सब कुछ रखा है. राम और रहीम दोनों ही नाम में शामिल कर लो, तो खाने-कमाने का स्कोप बढ़ जाता है. मुल्क वैसे बड़ा ही फ्लैक्सिबल है, आध्यात्मिक बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुए बाबा सिर्फ मोक्ष ही नहीं बांटते, लव चार्जर दे रहे हैं. पब्लिक को लगता है कुछ मिल ही रहा है, बाबा कुछ लेकर नहीं जा रहा है. नेता पुल लेकर निकल जाता है. सड़क लेकर निकल जाता है. बाबा दे रहा है, ले लो.
राम के नाम पर जो कुछ चल रहा है, उसे देख कर तो कुछ समय बाद अधिनियम बनाना पड़ेगा कि राम का नाम लगाने के लिए जरूरी लाइसेंस लिया जाये और ये ये हरकतें राम के नाम पर ना की जायें.
महात्मा गांधी को भी चिंतित होना चाहिए. महात्मा गांधी रोजगार योजना में घोटाला, महात्मा गांधी विवि में घोटाला, महात्मा गांधी काॅलेज में घोटाला, महात्मा गांधी एयरपोर्ट में घोटाला, महात्मा गांधी मेडिकल काॅलेज में घोटाला, इतने घोटाले गांधी के नाम पर हो लिये हैं कि ऊपर उनकी आत्मा का परेशान होना बनता है कि नीचे नयी पीढ़ी मुझे समझ क्या रही है.
गोरखपुर में एक महात्मा के नाम से बने अस्पताल में बच्चे मर रहे हैं और लगातार कई बरसों से मर रहे हैं. महात्मा की नेकनामी, महान काम अपनी जगह हैं, पर अब उस अस्पताल का नाम आते ही बच्चों की मौत आंखों में घूमने लगती है. बाबा की नेकनामी उनके नाम पर बना अस्पताल डुबा रहा है. बाबा से जुड़े भक्तों को आपत्ति करनी चाहिए कि या अस्पताल का नाम बदल दिया जाये या उसके काम करने के तौर-तरीके बदले जायें. अस्पताल का नाम पूतना या कंस पर रख दिया जाये.
दिल्ली में राम मनोहर लोहिया अस्पताल में मरीजों की देखभाल कई बार ठीक से ना हो पाती. लोहिया ऐसे महापुरुष थे, जिनसे अंग्रेज भी खौफ खाते थे और आजाद भारत की सरकारों के मंत्री भी. उनके नाम पर बने अस्पताल में कई निकम्मे कर्मी किसी से खौफ ना खाते. जयप्रकाश नारायण के नाम पर बने अस्पताल का हाल भी कुछ अलग नहीं है. लोहिया, जयप्रकाश नारायण जैसे महापुरुषों की आत्माएं ऊपर कराहती होंगी- हाय नेकनामियों पर अब वो कर्म भारी पड़ रहे हैं, जो हमारे नाम से बने संस्थानों में बने हैं.
नामों को लेकर कुछ ठोस करना चाहिए. दिल्ली के एक कारोबारी शिक्षा देनेवाले काॅलेज का नाम शहीद सुखदेव पर है. सुखदेव खालिस क्रांतिकारी थे, कारोबार धंधा कभी ना किया. बिजनेस काॅलेजों के नाम तो अब सिर्फ उन महासंतों के नाम पर रखे जाने चाहिए, जो लव चार्जर से लेकर मोक्ष तक सब कुछ एक ही साथ बेच सकते हैं.

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