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तकनीकी शिक्षा में चुनौतियां

देश में तकनीकी शिक्षा की शीर्ष संचालक संस्था एआइसीटीइ ने करीब 800 इंजीनियरिंग कॉलेजों को बंद करने की मंशा जाहिर की है. ये ऐसे कॉलेज हैं जहां प्रवेश लेनेवाले छात्रों की संख्या साल-दर-साल गिरती जा रही है. समुचित इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव और पांच सालों तक 30 फीसदी से कम प्रवेश होने पर कॉलेजों को बंद […]

देश में तकनीकी शिक्षा की शीर्ष संचालक संस्था एआइसीटीइ ने करीब 800 इंजीनियरिंग कॉलेजों को बंद करने की मंशा जाहिर की है. ये ऐसे कॉलेज हैं जहां प्रवेश लेनेवाले छात्रों की संख्या साल-दर-साल गिरती जा रही है. समुचित इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव और पांच सालों तक 30 फीसदी से कम प्रवेश होने पर कॉलेजों को बंद करने जैसे कड़े नियमों के कारण हर साल लगभग 150 कॉलेज स्वेच्छा से ही बंद हो जाते हैं. इंजीनियरिंग जैसी शिक्षा का विस्तार देश के विकास से सीधे जुड़ा हुआ है.
इसी कारण बड़ी संख्या में निजी कॉलेजों को मंजूरी दी गयी है, लेकिन कई संस्थानों में योग्य शिक्षक, प्रयोगशालाएं और इमारतें जरूरत से कम हैं. जाहिर है कि ऐसी जगहों में प्रवेश लेने से छात्र कतराते हैं. अनेक रिपोर्टों में यह बात भी सामने आयी है कि छात्रों से फीस के नाम पर मोटी रकम वसूलने के बावजूद जरूरी सुविधाएं नहीं मुहैया करायी जाती हैं. ऐसे में तकनीकी शिक्षा परिषद की इस मंशा का स्वागत किया जाना चाहिए.
यदि कॉलेजों में ठीक से पढ़ाई नहीं हो पा रही है, तो उनके बने रहने का कोई औचित्य नहीं है. पिछले साल एक सर्वेक्षण में बताया गया था कि महज सात फीसदी इंजीनियरिंग ग्रेजुएट ही रोजगार पाने के लायक हैं. इसका मतलब यह है कि बहुत से कॉलेज सिर्फ डिग्रियां बांट रहे हैं जिनकी कोई कीमत बाजार में नहीं है. देश के कुल 6,214 इंजीनियरिंग संस्थानों से हर साल करीब 15 लाख लोग पास होकर रोजगार खोजने निकलते हैं. ऐसे में यह आवश्यक है कि कॉलेजों पर कड़ी नजर रखी जाये ताकि छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ न हो. इंजीनियरिंग के अलावा मैनेजमेंट की शिक्षा व्यवस्था का भी हाल कुछ ऐसा ही है.
शिक्षा को व्यवसाय बना कर मुनाफा कमाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना बहुत जरूरी हो गया है. निजी कॉलेजों को खोलने की अनुमति देते समय नियामक संस्थाओं को सतर्क रहना चाहिए. देश में तकनीकी और पेशेवर शिक्षा के लिए बड़ी संख्या में कॉलेजों की जरूरत है, लेकिन सिर्फ कॉलेज खोलने से कुछ लाभ नहीं होगा. इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ शिक्षकों की कमी और पाठ्यक्रम तैयार करने में लापरवाही जैसी समस्याओं का निराकरण भी करना होगा.
उम्मीद है कि तकनीकी शिक्षा परिषद के तेवर कॉलेजों को बेहतर होने का दबाव बना सकेंगे. कुछ संस्थाओं को छोड़ दें, तो अधिकतर सरकारी कॉलेजों का हाल भी अच्छा नहीं है. उन पर भी ध्यान देना होगा. मुस्तैद प्रबंधन के साथ हमारी शिक्षा प्रणाली में व्यापक सुधार के लिए दीर्घकालीन नीतिगत पहलों की भी आवश्यकता है.

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