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रेलवे में व्यापक सुधार जरूरी

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक प्रभात खबर दुर्गा पूजा, दिवाली और फिर छठ आनेवाला है और यह एक तरह से रेलवे की परीक्षा की भी घड़ी है. पिछले दिनों हुए दो रेल हादसों ने पूरी रेल व्यवस्था को हिला कर रख दिया है. पहले उत्कल एक्सप्रेस और फिर कैफियत एक्सप्रेस की दुर्घटना के बाद रेलवे की […]

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक
प्रभात खबर
दुर्गा पूजा, दिवाली और फिर छठ आनेवाला है और यह एक तरह से रेलवे की परीक्षा की भी घड़ी है. पिछले दिनों हुए दो रेल हादसों ने पूरी रेल व्यवस्था को हिला कर रख दिया है. पहले उत्कल एक्सप्रेस और फिर कैफियत एक्सप्रेस की दुर्घटना के बाद रेलवे की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है. रेलवे हम आप सबसे जुड़ा मामला है, इसलिए चिंता और बढ़ जाती है.
बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए रेल एक तरह से जीवनरेखा है. देश के अन्य हिस्सों से रेल ही हमें जोड़ती है. इन दुर्घटनाओं ने आम यात्री के मन में डर भर दिया है. यह सच है कि रेल के बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई हुई है. रेलवे बोर्ड के चेयरमैन केके मित्तल को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. इनके अलावा रेलवे के तीन वरिष्ठ अधिकारियों को छुट्टी पर भेजा गया है और तीन अन्य को निलंबित कर दिया गया है. किसी दुर्घटना के बाद वरिष्ठ अधिकारियों पर इतनी व्यापक कार्रवाई की कम मिसाल है. होता यह है कि जांच के बाद गाज नीचे के अधिकारियों और कर्मचारियों पर गिरती है. लेकिन यह समस्या का हल नहीं है.
रविवार को केंद्रीय कैबिनेट में हुए फेरबदल के तहत पीयूष गोयल को रेल मंत्रालय सौंपा गया है. निश्चित तौर पर उनके सामने ट्रेन यात्रा को सुरक्षित और निरापद बनाना तथा आम यात्रियों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की बड़ी चुनौती होगी. आज जरूरत यह भी है कि पूरी रेल व्यवस्था का ऑडिट हो और उसके आधार पर प्राथमिकताएं तय कर उस दिशा में समयबद्ध ढंग से काम हो.
रेल व्यवस्थाओं की पड़ताल के लिए कोई भारी भरकम सर्वे की जरूरत नहीं है. बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल के लोगों से बात कर लीजिए, उनके अनुभव सुन लीजिए, तो तस्वीर साफ हो जायेगी. रिजर्वेशन खुलता नहीं कि सारी सीटें भर जाती हैं और फिर एक-एक सीट के लिए कैसी मारामारी होती है, यह लोग ही जानते हैं.
दुर्गा पूजा, दिवाली और छठ पर तो बुरा हाल होता है. छठ पर दिल्ली से खुलने वाली ट्रेनों में यात्रियों की मारामारी की हर साल तस्वीरें छपती हैं, वर्षों से छप रही वैसी तस्वीर आज तक नहीं बदली है. इस दौरान ट्रेनें और यात्री भगवान भरोसे ही चलते हैं.
रेल दुर्घटनाओं के बाद लोगों का यह सवाल पूछना जायज है कि रेलवे कितनी सुरक्षित है. ट्रैक पर भारी ट्रैफिक और मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर में अपर्याप्त सुधार दुर्घटनाओं के दो मुख्य कारण हैं. हालांकि रेल दुर्घटनाएं कई अन्य कारणों से भी हो सकती हैं. जैसे, गलत सिग्नल, कर्मचारी की लापरवाही, खुले फाटक पर सड़क इस्तेमाल करने वाले की गलती आदि. साथ ही आतंकवादी और अराजक तत्व भी ट्रेनों को निशाना बनाते हैं. लेकिन, चिंताजनक बात है कि पिछली दोनों दुर्घटनाएं रेल कर्मचारियों की चूक वजह से हुईं हैं.
इस साल की कुछ बड़ी दुर्घटनाओं पर नजर डालते हैं, उससे थोड़ी तस्वीर स्पष्ट होगी. 17 अगस्त, 2017 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के पास पुरी-उत्कल एक्सप्रेस के हादसे में 23 लोगों की जान चली गयी और 150 से ज्यादा जख्मी हुए. 21 मई, 2017 को उन्नाव स्टेशन के पास लोकमान्य तिलक सुपरफास्ट के आठ डिब्बे पटरी से उतरने से 30 यात्री गंभीर रूप से घायल हो गये थे. 15 अप्रैल, 2017 को मेरठ-लखनऊ राजरानी एक्सप्रेस के आठ डिब्बे रामपुर के पास पटरी से उतर गये. इसमें लगभग एक दर्जन यात्री घायल हो गये थे. 30 मार्च, 2017 को महाकौशल एक्सप्रेस महोबा के पास पटरी से उतर गयी.
इसमें 50 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. 20 फरवरी, 2017 को दिल्ली जा रही कालिंदी एक्सप्रेस टूंडला जंक्शन पर पटरी से उतर गयी थी. इस हादसे में सवारी और मालगाड़ी की आपस में टक्कर हुई थी. तीन दर्जन यात्री घायल हो गये थे. 22 जनवरी, 2017 को आंध्र प्रदेश के विजयनगरम जिले में हीराखंड एक्सप्रेस के आठ डिब्बे पटरी से उतरने की वजह से लगभग 39 लोगों की जान चली गयी थी.
इसके अलावा खुली रेलवे क्रासिंग की समस्या से अब तक हम निजात नहीं पा पाये हैं. राज्यसभा में एक लिखित जवाब में रेल राज्यमंत्री राजेन गोहिन ने कहा था कि 2016-17 में खुली रेलवे क्रासिंग पर 20 ट्रेन दुर्घटनाओं में 40 लोगों की जान गयी.
यह अच्छी पहल है कि रेलवे भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल करता है. ऐसी खबरें भी आती हैं कि ट्वीट पर कार्रवाई हुई और व्यवस्था सुधरी. ऐसी पहल से यात्री को एहसास होता है कि उनकी कोई सुनने वाला है.
लेकिन चिंताजनक स्थिति यह भी है कि रेलवे में लगभग दो लाख कर्मचारियों की कमी है जिसमें रखरखाव करने वाले स्टॉफ की बड़ी संख्या है. यानी कर्मचारियों पर काम का दबाव है, जिससे गलती की संभावना बनी रहती है.
नीति आयोग के एक अध्ययन के हवाले से कहा गया है कि 2012 के बाद से हर 10 में छह दुर्घटनाएं रेलवे कर्मचारियों की गलती से होती हैं. रेलवे ने अपने 66 हजार किलोमीटर के ट्रैक को 1219 सेक्शन में बांटा हुआ है जिसमें से लगभग 500 सेक्शन 100 फीसदी क्षमता पर कार्य कर रहे हैं. कहीं-कहीं तो क्षमता से अधिक ट्रेनों का परिचालन हो रहा. ट्रेन दुर्घटनाएं अधिकतर इन्हीं सेक्शन पर होती हैं. दबाव की वजह से ट्रैक के रखरखाव के लिए पर्याप्त समय उपलब्ध नहीं है. ट्रेनें समय पर नहीं चलती, सुविधाएं नाकाफी हैं, यह एक अलग समस्या है. फरवरी, 2015 में रेल मंत्रालय ने रेलवे की स्थिति पर एक श्वेत पत्र प्रकाशित किया था.
इसमें भी पटरियों के रखरखाव को लेकर गंभीर चिंता जाहिर की गयी थी. इसमें कहा गया था कि 1,14,907 किलोमीटर पटरी में से 4,500 किमी पटरी का हर साल नवीनीकरण होना चाहिए. लेकिन वित्तीय कमी के कारण पिछले छह साल से नवीनीकरण पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. 2014 में 5300 किमी पटरी को नवीकरण का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, जबकि रेलवे 2100 किमी का लक्ष्य पूरा नहीं कर पा रहा है.
लब्बोलुआब यह कि नवीनीकरण लगातार पिछड़ता जा रहा है, नतीजतन रखरखाव पर भारी खर्च करना पड़ रहा है और यह दुर्घटनाओं का एक कारण भी बनता है. इन तथ्यों को देखते हुए यात्रियों के मन में रेलवे की व्यवस्था पर सवाल उठना लाजिमी है. रेलवे को अपनी कार्यप्रणाली में सुधार कर इन आशंकाओं को दूर करने की आवश्यकता है.

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