सब्सिडी में बचत

खाद्य-सब्सिडी पर देश के कुल घरेलू उत्पादन का करीब एक फीसदी खर्च होता है. साल 2013 से खाद्य-सब्सिडी के मद में खर्च का बोझ बहुत बढ़ा है और पेंशन तथा सूद की अदायगी के बाद सबसे ज्यादा खर्चा सरकार को खाद्य-सब्सिडी के मद में ही करना पड़ रहा है. इस बोझ को कम करने के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 7, 2017 6:37 AM
खाद्य-सब्सिडी पर देश के कुल घरेलू उत्पादन का करीब एक फीसदी खर्च होता है. साल 2013 से खाद्य-सब्सिडी के मद में खर्च का बोझ बहुत बढ़ा है और पेंशन तथा सूद की अदायगी के बाद सबसे ज्यादा खर्चा सरकार को खाद्य-सब्सिडी के मद में ही करना पड़ रहा है.
इस बोझ को कम करने के लिहाज से एक अच्छी खबर है. जिन राज्यों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत सरकारी राशन दुकानों पर प्वाॅइंट ऑफ सेल मशीन लगाने और लाभार्थियों की आधार संख्या से जोड़ने का काम एक हद तक पूरा हो चुका है, वहां फर्जीवाड़े में कमी आयी है तथा राशन लेने लाभार्थी कम संख्या में पहुंच रहे हैं.
उदाहरण के रूप में हरियाणा में सभी 9,543 सरकारी राशन-दुकानों में आधार से जुड़ीं प्वाॅइंट ऑफ सेल मशीनें लगाकर खाद्यान्न का वितरण किया जा रहा है. राज्य में लाभार्थियों की संख्या 1.24 करोड़ है, पर इनमें से 30 लाख लाभार्थी बीते जून महीने से राशन नहीं ले रहे हैं. हरियाणा में सरकारी राशन दुकानों से जून के पहले प्रति माह 66,000 टन खाद्यान्न का वितरण होता था, जो आधार सीडिंग वाली मशीन लग जाने के बाद घटकर प्रतिमाह 50,000 टन हो गया है.
इससे सरकारी सब्सिडी की रकम में बचत हो रही है. आंकड़ों के आईने में देश के स्तर पर भी यही रुझान देखने को मिली है. बेशक यह एक अच्छी खबर है, लेकिन मसला तनिक ठहरकर सोचने की मांग करता है. खाद्य-सुरक्षा के मुद्दे पर सक्रिय स्वयंसेवी संस्थाओं और अर्थशास्त्रियों ने ध्यान दिलाया है कि सब्सिडी में बचत के आंकड़े पेश करते समय सरकार यह नहीं बताती है कि मशीनें ठीक से काम करती हैं या नहीं?
पिछले साल राजस्थान सरकार ने भी कहा था कि नकली पहचान के आधार पर फर्जीवाड़े के जरिये सरकारी राशन-दुकान से खाद्यान्न लेनेवाले लोगों की संख्या में कमी आयी है. उस वक्त राज्य में जमीनी स्तर पर निगरानी कर रही स्वयंसेवी संस्थाओं ने ध्यान दिलाया था कि प्वाॅइंट ऑफ सेल मशीन कई दफे तकनीकी गड़बड़ी का शिकार होती है और लाभार्थियों को खाद्यान्न नहीं मिलता है. खाद्यान्न न ले जाने को आधार बनाकर लाभार्थी का नाम सूची से हटा दिया जाता है.
वर्ष 2013 से देशभर में करीब 2.48 करोड़ फर्जी राशन कार्ड अवैध करार दिये गये हैं, जिससे 14 हजार करोड़ रुपये की बचत का अनुमान है, लेकिन जमीनी स्तर पर काम कर रहे कार्यकर्ताओं के आरोपों की भी गहन परीक्षा होनी चाहिए. ध्यान रखना होगा कि मशीनीकरण के सहारे भ्रष्टाचार मिटाने के नाम पर कहीं जरूरतमंदों को उनके कानूनी हक से वंचित तो नहीं किया जा रहा है.

Next Article

Exit mobile version