नया भय!
कभी रेल की सवारी सबसे अच्छी, सुरक्षित और बड़ी आरामदेह मानी जाती थी, मगर आज इनके निरंतर बेपटरी होने और इनमें लूटपाट होने से इनसे बड़ा भय लगने लगा है. नये रेलमंत्री के बाद भी ये घटनाएं नहीं रुक रही हैं. इसलिए अब चेहरे बदलने या किसी के इस्तीफे लेने से भी कुछ नहीं […]
कभी रेल की सवारी सबसे अच्छी, सुरक्षित और बड़ी आरामदेह मानी जाती थी, मगर आज इनके निरंतर बेपटरी होने और इनमें लूटपाट होने से इनसे बड़ा भय लगने लगा है. नये रेलमंत्री के बाद भी ये घटनाएं नहीं रुक रही हैं.
इसलिए अब चेहरे बदलने या किसी के इस्तीफे लेने से भी कुछ नहीं होगा क्योंकि असली समस्या तो कर्मचारियों, सही इंफ्रास्ट्रक्चर और पारदर्शी दायित्व के घोर अभाव की है. बड़ी अजीब बात है कि जनसंख्या वृद्धि के बाद भी यह सब उलटे घटता ही जा रहा है जिससे हालात और अधिक खराब हो रहे हैं. कर्मचारियों और साजोसामान की मांग को पूरा करना ही सही हल है, पर सरकार का ध्यान ही नहीं है.
वेद मामूरपुर, नरेला