मशीन खाली बिठा देगी बेटा
संतोष उत्सुक व्यंग्यकार पिछले चालीस बरस से, रोजमर्रा का सामान जिस दुकान से हम लेते रहे हैं, वह एक पुरानी छोटी दुकान है. सब सामान मिल जाता है. दुकानदार मिलनसार है, तभी ग्राहक नियमित हैं. कल शाम जब मेरी पत्नी ने कुछ सामान लाने को कहा, तो हम उस दुकान पर पहुंचे और कहा- अंकलजी, […]
संतोष उत्सुक
व्यंग्यकार
पिछले चालीस बरस से, रोजमर्रा का सामान जिस दुकान से हम लेते रहे हैं, वह एक पुरानी छोटी दुकान है. सब सामान मिल जाता है. दुकानदार मिलनसार है, तभी ग्राहक नियमित हैं.
कल शाम जब मेरी पत्नी ने कुछ सामान लाने को कहा, तो हम उस दुकान पर पहुंचे और कहा- अंकलजी, आप तो पुराने बंदे हो, स्वाइप मशीन नहीं लगवायी. बोले- बेटा, पुराने बंदे हैं, तभी तो नहीं लगवायी, हमें क्या करनी है. हमें तो मोबाइल का सिस्टम भी ज्यादा नहीं आता. मशीन के लिए अलग से बंदा रखना पड़ेगा. उस बंदे पर नजर रखनी पड़ेगी. हम जैसे फुटकर व्यापारी अपना सामान बेचेंगे या मशीन से उलझते रहेंगे. किस-किस को समझाते रहेंगे.
हमने कहा- आप नोट गिनने से बचोगे. वो बोले- वो तो हमारी पत्नी बहुत बढ़िया करती है. पर, भगवान न करे हमारी मशीन खराब हो गयी, तो ग्राहक तो अगली दुकान की तरफ दौड़ेगा, जहां मशीन ठीक चल रही होगी या हमें दोनों तरीके रखने पड़ेंगे.
इसमें बिजली का रोल भी होगा, जो हमारे एरिया से रोज दौड़ी रहती है और गांव में तो बहुत बुरा हाल है, जाती है तो लौटकर कब आयेगी, पता नहीं होता. फोन करो तो बिजलीवालों ने रिसीवर पलट कर रखा होता है.
हमने कहा धीरे-धीरे आदत पड़ जायेगी. अरे आदत तो है हमें बिना लाइट के रोज काम करने की. मशीन तो हमें खाली बिठा देगी बेटा.
वैसे बात तो ठीक कही लालाजी ने. मशीनों ने सचमुच लाखों को खाली बिठा दिया है.
तकनीकी खराबी हो गयी, तो और पंगा. छुट्टे के अभाव में लोग वहां जायेंगे, जहां भुगतान की सुविधा होगी और इस बार भी वह लोग कमाई करेंगे, जिनकी मशीन चल रही होगी. बंद मशीन वाले मायूस बैठे रहेंगे और दूसरे मनमाना कमायेंगे. हैरानी तो मुझे तब हुई, जब उन्होंने बताया कि सुना है कि डिजिटल लेनदेन से जुर्म भी बढ़ जायेंगे.
हमारे देश में विशाल बेसिक नेटवर्क नहीं है, जिससे डिजिटल अपराधों को पकड़ने में मदद मिल सके. हमने कहा कि सरकार मदद करेगी. वे बोले- कैसे मिलती है सरकारी मदद? कितनी, किसे मिलती है, हम बचपन से देख रहे है. उन्होंने मुझे यह भी बताया कि जिस अमेरिका और कई मुल्कों के हम दीवाने हैं, वहां भी अभी जेब में डॉलर रखने का रिवाज है.
इसलिए बाबूजी ‘कैशलेस’ नहीं ‘कैश से लैस’ होना ज्यादा जरूरी है और नोटबंदी ने किस-किस का कितना भट्ठा बिठाया है, सबको पता चल गया है. बड़ी मुश्किल से धंधा संभला है बेटा. अपना तो पुराना तरीका ही ठीक है. लालाजी अंकल की बॉलिंग ने मेरी गिल्लियां ऐसे उड़ा दी, जैसे अनुभवी व्यवसायी के सामने प्रसिद्ध इंस्टीट्यूट का एमबीए फेल हो जाये.