लॉ बोर्ड का अच्छा फैसला

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड ने बीते 11 सितंबर को भोपाल में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की अपनी बैठक में तलाक-ए-विदअत (एक बार में तीन तलाक) को लेकर एक अहम फैसला लिया कि अब निकाह के वक्त ही काजियों के जरिये लड़के और लड़की वालों के बीच यह सहमति बन जाये कि रिश्ते को खत्म करने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 15, 2017 9:28 AM

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड ने बीते 11 सितंबर को भोपाल में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की अपनी बैठक में तलाक-ए-विदअत (एक बार में तीन तलाक) को लेकर एक अहम फैसला लिया कि अब निकाह के वक्त ही काजियों के जरिये लड़के और लड़की वालों के बीच यह सहमति बन जाये कि रिश्ते को खत्म करने की सूरत में तलाक-ए-विदअत का सहारा न लिया जाये. बोर्ड ने मशवरा भी दिया कि बेहतर होगा लोग इस तलाक पर अमल न करें और इसके लिए काजियों-मौलानाओं की राय लें. बीते 22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिये जाने के फैसले का सम्मान करते हुए ही बोर्ड ने यह फैसला लिया. तलाक-ए-विदअत के खिलाफ बोर्ड अब जागरूकता फैलाने का अभियान शुरू करेगा, जिसके लिए वह एक समिति का गठन करेगा.

काफी अरसे से सुन्नी मुसलमानों के हनफी संप्रदाय में तलाक-ए-विदअत की प्रथा रही है. शरीयत के हिसाब से भी इस तलाक को तलाक का सही तरीका नहीं माना जाता है. इसलिए बोर्ड ने यह माना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लोगों की सोच बदलनी जरूरी है.

बोर्ड के द्वारा लिया जानेवाला यह फैसला देर से ही सही, पर दुरुस्त है. लेकिन, अगर बोर्ड ने यह फैसला तीन तलाक को इस्लाम धर्म की एक बुराई समझकर और इसको दूर करने के लिहाज से पहले ही ले लिया होता, तो इसके खिलाफ मुस्लिम औरतों को कोर्ट जाने की जरूरत नहीं पड़ी होती.

बरसों से मुस्लिम समाज में इस बुराई के होने के बावजूद शुरू से ही तलाक-ए-विदअत पर बोर्ड का रवैया ढुलमुल रहा है, जबकि उसे सख्त होना चाहिए था. इस ऐतबार से इस बुराई के खिलाफ जाकर और शरीयत को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के काम की शुरुआत के लिए बोर्ड ने जो कदम उठाया है, वह अच्छा है. क्योंकि आज भी मुस्लिम समुदाय में ज्यादातर लोग शरीयत की बहुत सी बातों से अंजान हैं. ऐसे में बोर्ड के इस कदम से लोग जिंदगी जीने के सही तरीकों से रूबरू हो सकेंगे.

तलाक-ए-विदअत तो अपने आप में एक बुराई है ही, और इसके लिए कदम भी उठाये जा चुके हैं, लेकिन इसी की तरह और भी कई बुराइयां हैं, जिन्हें वक्त रहते दूर कर लिया जाये, तो इस्लामी मआशरे में काफी हद तक सुधार आ सकता है. 21वीं सदी में भी मुस्लिम कौम का यह हाल है कि परदे के नाम पर लड़कियों को इल्म की रोशनी से दूर रखा जा रहा है. ये लोग मानते हैं कि दुनियावी तालीम की कोई जरूरत नहीं है, लड़कियां दीनी तालीम ही हासिल कर लें, वही काफी है. शरीयत के हिसाब से तो लड़का और लड़की दोनों के लिए हर तरह की तालीम जरूरी है. बोर्ड अगर इस समस्या को सुधारने के लिए भी आगे आता है, तो इससे कई समस्याएं खत्म हो सकती हैं. क्योंकि लाइल्मी ही समस्याओं को जन्म देती है.

शफक महजबीन

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