भारत-जापान संबंधों में नयी रफ्तार
गति ही जीवन है और ठहराव मृत्यु है. यह स्वामी विवेकानंद ने कहा था. इस पंक्ति के भाव को देखें, तो हमारे जीवन के लिए बहुपयोगी होने के बावजूद बैलगाड़ी पुरातन युग का प्रतीक है और बुलेट ट्रेन भविष्य का प्रतीक है. जापान में 1959 में बुलेट ट्रेन पर काम शुरू हुआ और टोक्यो ओलिंपिक […]
गति ही जीवन है और ठहराव मृत्यु है. यह स्वामी विवेकानंद ने कहा था. इस पंक्ति के भाव को देखें, तो हमारे जीवन के लिए बहुपयोगी होने के बावजूद बैलगाड़ी पुरातन युग का प्रतीक है और बुलेट ट्रेन भविष्य का प्रतीक है. जापान में 1959 में बुलेट ट्रेन पर काम शुरू हुआ और टोक्यो ओलिंपिक के समय 1964 में उसका उद्घाटन भी हो गया.
प्रथम वर्ष में उसने एक करोड़ यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाया और अगले 12 वर्षों में उसने एक अरब यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहंुचाया. दुनिया में सबसे सुरक्षित तीव्रगति की रेलगाड़ी जापान की ‘शिंकान्सेन’ यानि ‘मुख्य पथ की रेल’ मानी जाती है, जो 320 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है तथा चुंबकीय रेल पथ पर उसने 603 किमी प्रति घंटे की गति का कीर्तिमान स्थापित किया है.
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सत्तर साल लग गये एक भविष्योन्मुखी रेलगाड़ी को भारत लाते-लाते. 14 सितंबर को गुजरात के शहर अहमदाबाद में बुलेट ट्रेन निर्माण कार्य के भूमिपूजन समारोह में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एवं जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे- दोनों भावुक दिखे, तो इसमें आश्चर्य की नहीं है. वह दिन इन दो देशों में मुधर एवं आत्मीय संबंधों से परे अटूट विश्वास और अपनत्व का उत्सव बन गया. समारोह में दिये गये शिंजो आबे के संबोधन में बहुत कुछ सामरिक संदेश निहित था. उन्होंने कहा- एक शक्तिशाली भारत ही जापान के हित में है. हम दोनों देश मिलकर काम करें, तो कुछ भी असंभव नहीं. जल्द ही भारत विश्व का कारखाना बन सकता है. (उल्लेखनीय है कि अब तक चीन को दुनिया की फैक्ट्री कहा जाता है.)
जापान के प्रधानमंंत्री शिंजो आबे अपने भाषण से भारत में मित्रता का नया सागर बना गये. वस्तुत: भारत-जापान संबंधों में आपसी विश्वास का जो सेतु है, वह अप्रतिम है, जिसका दुनिया में कोई जोड़ नहीं है. ऐसी मिसाल अन्यत्र कहीं नहीं मिलती. जापानी सहयोग से बनी मारुति कंपनी ने देश का थलमार्गीय नक्शा ही बदल दिया था. मेट्रो, मुंबई-हावड़ा-मालवाही रेल गलियारा, नागरिक परमाणु शक्ति सहयोग, रक्षा एवं विशेषकर भारतीय नौसेना के लिए यूएस-2 शिन मायवा युद्धक विमान, रोबोटिक्स तथा मानवरहित थलमार्गीय वाहनों के क्षेत्र में जापान से सामरिक समझौते हमारे देश के लिए असीम संभावनाओं के संकेत देते हैं.
भारत और जापान के बीच यह सहयोग भारत में निर्माण के क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति ला सकता है, जिससे बेरोजगारी दूर होगी और नये क्षेत्रों में आर्थिक उपार्जन के अवसर खुलेंगे. केवल बुलेट ट्रेन ही बीस हजार प्रत्यक्ष और एक लाख परस्पर आश्रित रोजगार के अवसर देगी. इस तरह से यह प्रोजेक्ट बेरोजगारी की समस्या से निपटने में यह बहुत ही कारगर सिद्ध होगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे पहचाना और बार-बार शिंजो आबे को भारत का परम मित्र, मेरे ‘अंतरंग मित्र’ के नाते संबोधित किया. संभवत: इस्राइल के अलावा अन्य किसी देश के नेता के लिए नरेंद्र मोदी ने इतने भावपूर्ण अंतरंग शब्दों का उपयोग नहीं किया होगा. उनके भाषण में भारत-जापान संबंधों को सीमा और समय से परे परिभाषित करना भी असामान्य था. मेरे जापानी मित्र तो इन्हीं शब्दों के वास्तविक और गहरे अर्थ का विश्लेषण करने में ही उलझ गये. सचमुच भारत-जापान के रिश्तों में यह एक नया आयाम ही है, जो हम सबके लिए जरूरी भी है.
विश्व राजनीति में लोकतांत्रिक देशों में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन- ये चारों एक शक्तिशाली चतुष्कोण के रूप में उभरे हैं पूरी दुनिया में. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप अपनी विचित्र राजनीति के कारण हालांकि काफी अलग दिखते हैं. सामरिक दृष्टि से भविष्य एशिया में उभरते भारत एवं उसके अन्य लोकतांत्रिक देशों के साथ सहयोग पर निर्भर करता है. विश्व का 90 प्रतिशत व्यापार जलमार्ग से होता है. इसका 80 प्रतिशत केवल पलक्का की खाड़ी से और चीन का प्राय: 90 प्रतिशत तेल व अन्य सामान इसी मार्ग से गुजरता है. हिंद महासागर विश्व का एकमात्र ऐसा जल-विस्तार है, जो किसी एक देश के नाम पर है. भारत हिंद महासागर में अपना प्रभाव शनै: शनै: बढ़ा रहा है. और उसकी सीधी प्रतिस्पर्धा चीन से है, जो श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार, व पाकिस्तान में अपना सामरिक महत्व निरंतर बढ़ा रहा है. डोकलाम के बाद चीन पर अविश्वास और बढ़ गया है. इस परिदृश्य में भारत तथा जापान के मध्य आर्थिक, प्रौद्योगिक एवं सामरिक सहयोग राष्ट्रीय सुरक्षा एवं स्वदेशी अर्थव्यवस्था दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है.
रेल सुरक्षा एक दूसरा विषय है, जहां जापान के साथ सहयोग बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है. साल 2000 के बाद भयानक 89 रेल दुर्घटनाएं हुई हैं. हर साल रेलपथ पार करते हुए 15 हजार भारतीय मारे जाते हैं, उनमें से छह हजार यात्री केवल मुंबई उपनगरीय रेल मार्गों पर अपनी जान खोते हैं. गत वर्ष 28,260 रेल दुर्घटनाओं में 25 हजार भारतीय यात्री मारे गये थे और 3,882 घायल हुए थे. इस क्षेत्र में जापान का सहयोग न सिर्फ हमारे आर्थिक विकास के लिए जरूरी है, बल्कि जानों को बचाने के नजरिये से भी उचित है.
जापान रेल सुरक्षा की दृष्टि से विश्व का क्रमांक एक पर है. इस दृष्टि से वह भारत का बहुत बड़ी सहायता कर सकता है. रेल मंत्रालय में पीयूष गोयल जिद और धुन के पक्के मंत्री माने जाते हैं. शिंजो आबे केवल बुलेट ट्रेन ही नहीं, बल्कि रेल सुरक्षा, सामरिक रक्षा कवच और विश्वसनीय आर्थिक सहयोग का सेतु भारत लाये हैं. नवरात्रों से पूर्व इसे शक्ति संचय की नयी रफ्तार का प्रतीक ही मानना चाहिए.
जय भारत-जय जापान!
तरुण विजय
पूर्व सांसद, भाजपा
tarunvijay55555@gmail.com